Tuesday, 25 July 2017

जज को ब्यक्ति-समाज-ब्यवस्था , भूत-वर्तमान -भविष्य  के बीच संतुलन का दायित्व है।
स्वयं एक ब्यक्ति हर स्थिति में नीतियों का इतना दबाव सहन नहीं कर  पाता अतएव अपने अधिकार की अंतिम सीमा तक सुरक्षा नहीं कर पाता।
अधिवक्ता को समाज से केवल ब्यक्ति के पक्ष में अंत तक खड़े रहने का अधिकार और प्रशिक्षण प्राप्त है।
और अधिवक्ता सामाजिक - नैतिक - कालिक दबाव में भी ब्यक्ति के अधिकारों की रक्षा ब्यवसायिक चातुर्य से करते है , अपनी ब्यक्तिगत सामाजिक निष्ठा और मूल्यों को हानि पहुंचाए बिना। 

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