Monday, 17 July 2017

न कोई ब्यक्ति , न ही विचार , न कोई क्रिया , न ही कोई काल , न ही कोई मत - कोई  भी पूर्ण नहीं , सभी अपने फ्रेम में  संगत , आउट ऑफ़ फ्रेम - इरिलिवेन्ट।
फिर पसंद भी अपनी अपनी।
हर ब्यक्ति को अपना अतिरेक शायद पसन्द आते रहता है।  यही स्वभाव है।  यही स्वाभाविक है।  और इन्हीं दो विकल्पों का संघर्ष ही जीवन है। 

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