न कोई ब्यक्ति , न ही विचार , न कोई क्रिया , न ही कोई काल , न ही कोई मत - कोई भी पूर्ण नहीं , सभी अपने फ्रेम में संगत , आउट ऑफ़ फ्रेम - इरिलिवेन्ट।
फिर पसंद भी अपनी अपनी।
हर ब्यक्ति को अपना अतिरेक शायद पसन्द आते रहता है। यही स्वभाव है। यही स्वाभाविक है। और इन्हीं दो विकल्पों का संघर्ष ही जीवन है।
फिर पसंद भी अपनी अपनी।
हर ब्यक्ति को अपना अतिरेक शायद पसन्द आते रहता है। यही स्वभाव है। यही स्वाभाविक है। और इन्हीं दो विकल्पों का संघर्ष ही जीवन है।
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