Wednesday, 30 August 2017

मारवाड़ी सम्मेलन से मेरा जुड़ाव क्रमिक हुआ। (  १९७५  ) पूज्य हरिराम जी गुटगुटिया , खेमचंद्र जी  चौधरी के पास में बाल  सुलभ उत्सुकता में समाज और सम्मेलन के बारे में जानने को अकारण चला जाता था।  याद पड़ता है एक रक्षपाल शास्त्री जी थे।  एक मातादीन जी गोयल थे। इमरजेंसी का समय था, या ठीक उसके बाद का समय था।   आज के झारखंड के चाकुलिया में नमक के कारण समाज के भाईयों पर केश मुकदमे क्र दिए गए थे।  उसमे बाद में भारूका जी जो बाब में माननीय उच्चन्यायालय के न्यायाधीश भी बने , ने अपनी विद्व्ता से वः केश जीता।  पर मेरा मन इस घटना पर बड़ा खट्टा हुआ।  मुझे सम्मेलन की पत्रिका का पटना का पता मिला , मैंने एक पत्र लिखा।  पत्रिका में वह  छपा।  प्रोफेसर विश्वनाथ जी ने उसे सराहा और उस पर  सम्पादकीय लिखा। देहरी ों सोन के मरोडिया जी थे - विनोद मरोडिया।  आश्चर्यजनक सामाजिक उत्साह और संगठन करता।       किसी क्रम में भागपुर निवासी शंकरलाल जी बाजोरिया से अपने प्रारम्भिक वाम-विचाराग्रह के लिये डांट भी १९७७ -१९७८  के आस पास पड़ी थी।

No comments:

Post a Comment