Tuesday, 30 September 2014

सफाई पसंद तो सब को आती है ,सफाई देख कर खुश भी होते हैं - पर सफाई अपने हाथों से करने को अधिकांश लोग तैयार नहीं , सार्वजनिक स्थान की सफाई तो कोई भी करने का उत्साह नहीं रखता - असली सफाई तो सार्वजनिक स्थानों की हमको आपको करनी होगी - निजी सफाई में इतना ही करें तो पर्याप्त होगा की अपनी व्यक्तिगत गंदगी - कूड़ा सार्वजनिक स्थानों पर न निष्पादित किया जाये -उन्हें निर्धारित स्थान पर निर्धरित विधि से ही निष्पादित किया जाये .
सफाई पुलिस का विचार आता है .सफाई कर्मियों को ही गंदगी करने वालों को तत्काल फाइन करने का अधिकार दिया जा सकता है .इससे जहाँ एक और सफाई कर्मी को प्रतिष्ठा इज्जत अधिकार मिलेगा वहीं सफाई कर्मी भी सफाई करने को प्रेरित होंगे तथा हम आप गन्दगी नहीं करेंगे ऐसे विचार के साथ चलने को विवश
Selecting the right team just doesn’t mean selecting the most qualified people; it also means selecting highly committed people
अपने आप को अफवाहों से न जोड़े ,न किसी अन्य को जोड़े , न किसी को जोड़ने दे .
अपुष्ट सामयिक परिस्थिति , तथ्य के वाहक ,प्रवाहक (फ़ैलाने वाले ) न बने 
यदि ऐसा किया गया तो हम ,आप सभी इस समाज के प्रति उपकार करेंगें 
आज के इस आई टी युग में मेरी या आपकी थोड़ी सी लापरवाही समाज का स्थाई नुकसान कर सकती है ,
हमे अपनी गलतियों की सजा हमारे बच्चों के भविष्य को देने का कोई ह्क नहीं हैं
स्वप्न नहीं होते तो अच्छा
होते तो होते -
कमसे कम आते तो नहीं
बिना बुलाये
दिन-रात कभी भी चले आते हैं
आते तो आते
जाते क्यों नहीं
ठहर ही क्यों जाते हैं
ठहरे तो ठहरे
सुस्ताते क्यों नहीं
दिन रात बस ठकठकाते क्यूँ रहते हैं
ये ठकठकाते स्वप्न भी क्या
कोई पता  ही नहीं बताते
कहाँ से आये ?
किसके है ?
कौन लाया ?
क्यों आये हैं ?
अब आ ही गये हैं तो
चुपचाप पड़े क्यों नहीं रहते
नींद के पीछे पड़े है
चैन चुरा ले जा रहे
और मैं - बेबस टुकुर टुकुर
इन्हें साकार करने को विवश हूँ
आप में से कोई तो होगा
इन सपनों को वापस बुलवा सके
पर सावधान
एक भी सपने को कहीं  ठेस भी पहुंची तो !
ये मेरे हो चुके हैं
अब मेरे है
ये और मैं
साथ साथ जियेंगें
साथ साथ मरेंगें 
हर सुबह दीया बुझा देते हैं वे ही हाथ
जिन्होंने साँझ होते होते दीया जलाया था

मेरे हिस्से का सूरज चुरा ले जाते हैं वे ही हाथ
जिन्होंने मुझे और मेरे सूरज को पहले जगाया था .

ओस की बूंद सूरज की किरण चढ़ वापस लौट गयी
मुझे प्यासा खड़ा छोड़ वहीं ,समन्दर जहाँ बनाया था

आग का दरिया है ,पर मैं जलता नहीं हूँ अब
ओट कर दी है उसी ने ,आंचल जिसने ओढ़ाया था

Monday, 29 September 2014

भारतीय संविधान के अनुच्छेद १४२ की ब्यापकता दुधारी तलवार है , सुप्रीम कोर्ट पर अनावश्यक दबाव बनाता है , काम का दबाव ,अपेक्षाओं का दबाव ,महत्वाकांक्षाओं का दबाव ,खुद पर नियंत्रण का दबाव ,संविधान की रक्षा का दबाव ,अनावश्यक संघर्ष से बचने का दबाव ,अनावश्यक दबाव से बचने -बचाने का दबाव 
बस दो चार जज हो मेरे अपने ,मुझे भगवन बनने में वे मदद कर देंगे ,वे आ कर  चरण छुएंगें तो बाकी भी ऐसा ही करेंगे .
बस दो चार जज हो मेरे .
जज की ताकत है उसका अबध्य होना ,प्रश्नों से परे  होना, अनंतिम रूप से सुरक्षित एवं परीक्षा , परिक्षण से परे होना . 
भूखे रह जाना ऐ मेरे यार,
नौबत कर्ज की मत आने देना 
भीख ओ कर्ज के खाने से भूख भली 

खुशामदी तत्काल पद पा जाते हैं , पद से यश का आभाष पा जाते है , पर वह कपूर की तरह उड़ जाने के लिए ही होता है , ठहरता ही नहीं - पद जायेगा ही ,पद गया और आभाष भी चला ही जायेगा
बस इतना ही न ,
सही कहा तुमने
हम खानदानी बड़े नहीं हैं .
हम अपने बीज 
हमारी जड़ें भी हम
तना ,शाख ,पत्ते भी हम ही है
न कोई माली
तुमने खाद नहीं डाली
अब फल चखने क्यों आये हो .
पर जानता हूँ
किसी दिन काट ही लोगे
इमारती लकड़ी बना लोगे अपने लिए .
बस इतना ही न ,
सही कहा तुमने
हम खानदानी बड़े नहीं हैं 
I , me , my , mine ,they live by that
No,never they care, we ,us , our ,ours.
Dirty union, pushes and pulls
they teach n learn it at their schools .
closed doors,,ganged gangs
wrongs, dirts,and great bangs.
साथ हो तो अच्छा है न
आजादी उतनी ही लो जो पचे
आजाद उतने ही हो जो जंचे .
किनारे न हो तो नदी नहीं होती 
बीच समन्दर से भी किनारे ही तलाशते हैं लोग
धरती के बिना आकाश को कौन पूछेगा
आसमान और धरती को इतना अलग न करो
दिन और रात भी अलग, फिर भी मिलते रहते हैं
क्षितिज और शाम , दोनों का भ्रम रहने दो , रहने दो न .
L


मुजरा ,मैं नाचूँगा नहीं
राग दरबारी गाना मुझे आता नहीं
मैं चंदबरदाई भी नहीं हूँ.
न भूषण भी नहीं
न मैं तुम्हारे सर का मुकुट
न तुम्हारे हाथ की तलवार
बहुत है सूखी दो रोटियां
घी के लिये बिकुं क्यूँ ?
जो बादशाहत नहीं माने
वह दिल है मेरा
बात तो रोटियों से ही आती है
घी वाली रोटी से बोली बंद हो जाती है
पेट में रोटी हो तो बात आती है
नहीं हो तो रोटी की बात आती है
रोटी अधिक हो तो बाँट की बात आती है
रोटी कम हो बात बंटती चली जाती है
रोटी होती है तो पगड़ी है टोपी है
न हो रोटी तो पगड़ी टोपी उछल जाती है .
खिलौना बेचता बचपन दो रोटी के लिये
खेलता बचपन से वह दो रोटी के लिये
एक यही है
बस अकेली यही
जिसने मुझे कभी दुत्कारा नहीं
जिसने कभी मुझे उघाड़ा नहीं
हर रोज सुबह
मुझे सिर चढ़ाती रही
कभी सिर से उतारा नहीं

मैं
मेरा
सब कुछ
जो भी है
जैसा भी है
जहाँ भी है
इसी का दिया है
इसी ने दिया है
इसी से हुआ है
इसी ने किया है
मुझे इसी ने बनाया
इसी का है
रहेगा
और किसी का कुछ भी नहीं 
एक यही है
बस अकेली यही
जिसने मुझे कभी दुत्कारा नहीं
जिसने कभी मुझे उघाड़ा नहीं
हर रोज सुबह
मुझे सिर चढ़ाती रही
कभी सिर से उतारा नहीं

मैं
मेरा
सब कुछ
जो भी है
जैसा भी है
जहाँ भी है
इसी का दिया है
इसी ने दिया है
इसी से हुआ है
इसी ने किया है
मुझे इसी ने बनाया
इसी का है
रहेगा
और किसी का कुछ भी नहीं 
एक यही है
बस अकेली यही
जिसने मुझे कभी दुत्कारा नहीं
जिसने कभी मुझे उघाड़ा नहीं
हर रोज सुबह
मुझे सिर चढ़ाती रही
कभी सिर से उतारा नहीं

मैं
मेरा
सब कुछ
जो भी है
जैसा भी है
जहाँ भी है
इसी का दिया है
इसी ने दिया है
इसी से हुआ है
इसी ने किया है
मुझे इसी ने बनाया
इसी का है
रहेगा
और किसी का कुछ भी नहीं 
जाऊँगा तो चला ही जाऊँगा !
रोक लोगे क्या ?
पर सिर झुका कर नहीं जाऊंगा
छिप -छिपा कर नहीं जाऊँगा
तुम्हारा या किसी का भी
सिर नीचा कर नहीं जाऊँगा
किसी अफ़सोस के साथ नहीं जाऊँगा
कोई अफ़सोस छोड़ के भी नहीं जाऊंगा .
छोटा था जरुर पर छोटा हो कर नहीं जाऊँगा .
तुन्हें या किसी को भी छोटा बना कर नहीं जाऊँगा
मेरे जाने का अफ़सोस मत करना .सब कुछ छोड़ कर जाऊंगा
सब कुछ वैसे ही सजते रहना चाहिये , सजा रहना चाहिए
तुम भी !

Sunday, 28 September 2014

I feel----- Alternative renewable sources of perennial energy ( Solar, Wind, Tidal and many more ) are  viable propositions and within next 15 years will be cost wise as end-user friendly as computer,mobile,data-transmission and other E -products (both hardwares and softwares ) of today.

Only around thirtyfive years ago mobile phones and its technology was considered really too expensive and not even viable. And to-day!

I fear-----
There will be disruption of the entire Petro- Coal ( fossil-fuel )  industry, starting with present so called energy-production-distribution companies — which will face declining demand and then bankruptcy.

 Several of them see the writing on the wall.
 
The smart ones are embracing solar and wind power
.
 Others are lobbying to stop the progress of solar power — at all costs.

Not much in media. Media is almost gagged by world wide Petro-Coal- Energy barons
Be an event, and not merely event manager
.
Be a news and not merely news reporter.

When you can be a center ,why rest on periphery?

Sacrifice yourself to claim dignity.

Own service ,do not only serve or sell.

Produce and not only stock to sell.

Walk to march ahead ,do not march to follow only .

Serve and earn, never earn money alone.

As a human being ,never get domesticated.

Know more and let all know all.

Practice art of dying, dying a glorious death to live beyond death.

Saturday, 27 September 2014

जो जीतने के बाद हारने के पहले मृत्यु को प्राप्त हो वह , महापुरुष
जो जीतने के बाद मृत्यु के पहले हार जाये उसका श्रेय औ वह गये
हार पवित्र नहीं होती ,जीत न होती अपवित्र
हारना ही पाप है ,जीतना ही पूण्य
सत्य की ही विजय होती है ,ऐसा भ्रम फैलाया गया ताकि सत्य पर आश्रित पवित्र लोग आश्वस्त हो के बैठ जाये और जब सत्य और असत्य में वास्तविक निर्णय की घड़ी आये तो समुचित रणनीति के अभाव में सत्य असत्य के सामने उभर ही न पावे और तब असत्य खुद को ही सत्य घोषित करवा लेने में सफल हो जावे .
संघर्ष की स्थिति में सत्य अपनी रक्षा नहीं कर पाता ,उसकी रक्षा के लिए यदि सारे भेद -उपाय नहीं किये गए तो सत्य की पवित्रता ही सत्य को पराजित करने के लिए पर्याप्त है .
सफाई कर्म को राज -मर्यादा दिया जाना ---- मेरा प्रणाम इस निश्चय को.
वर्षों पहले शौचालय को अपने मन , साधन ,कर्म ,क्रिया सब का केंद्र मान अहर्निश तपस्या करने वाले बिहार -भारत के क्रन्तिकारी मनस्वी और उसके द्वारा शौचालय शौचकर्म ,सफाई कर्म को मर्यादा दिलाने के संक्ल्प को मेरा प्रणाम . प्रार्थना है की इस स्थान - कर्म को राज मर्यादा प्राप्त हो 
बता सकते हो ?
सत्य कैसा होता है ?
कैसा दीखता है ?
कहाँ रहता है ?
किससे कब मिलता है ?
क्यों होता है ?
हुए बिना रहता क्यूँ नहीं ?
यह मत कहना
सत्य सत्य होता है
सत्य सत्य जैसा दीखता है
सत्य है तो होगा ही
और सत्य सत्य के साथ ही उठता बैठता है
यह सब सुनते सुनते कान पक चुके है
अब यह  मत कहना

कि सत्य सभी जगह होता है
यह भी नहीं कि
यह सभी समय में होता है
कान पक गये
यदि यही है तो
हर बार यह दुबका छिपा
क्यों रहता है
हर बार रूप बदलता क्यों रहता है
भागे भागे क्यों फिरता है ,
सामने क्यों नहीं आता ?
भागे भागे क्यों फिरता है ,
सामने क्यों नहीं आता ?
हर बार यह दुबका छिपा
क्यों रहता है
क्या सत्य इतना ही 
तीता,कडुआ ,कड़ा 
भयानक,वीभत्स,रौद्र
अन्यथा,विपरीत,अभद्र
अकेला,वीतराग
आदि आदि 
होता है 
The Judge's life is very restrained and even after retirement, people expect from them the very same high standards as a sitting Judge, none compelled anyone to 'suffer' that lifestyle, but once somebody has accepted that lifestyle, it is not proper to have other political ambitions.
Once a judge , be a judge and nothing but a judge.
Practice judge's aloofness .
Let others believe that you will be aloof , temptation resistant ,impartial and updated even after your retirement so that they can rely on you and your advice without a pinch of salt.
Judges, your trustworthiness is your worth. Let not it come under cloud.
Withstand all criticism against you, your judgement.You are not their to claim and expect .ovation,greetings.Judges never please nor fear.
Generally speaking,Judges are not law-maker .
Now a days the discredited executive and the exposed legislature is seeking solace in trying to raise question against Judges,and not the LAW.
Judges, keep calm. Do not compromise with your aloofness and let not any force brow-beat you.


पर यात्रा विवरण बताते रहोगे तो अच्छा लगेगा ,मैं भी कुछ सिख लूँगा -कुछ बताऊंगा भी ,मानो या न मानो ,तुम जानो
पर अंत में अच्छा लगता है , अपनी शर्तों पर चला , मन से चला ,बेदाग चला ,गले में बिना किसी चेन के चला , किसी भी डमरू पर नाचे बिना चला -----
--- यही न मदारी की दी हुई दो चार फ्राक नहीं मिली , नहीं पहनी ,मदारी ने रस्ते की धुल चुटकी में उठा मेरे माथे पर टेलकम पाउडर बता, नहीं लगाया ,दो घुंघुरू मेरे गले में नहीं बांधें -
--- मदारी के लिए मैंने किसी के सामने हाथ तो नहीं पसारे ----.
मैं गले में बेल्ट लगा स्वामिभक्त नहीं हुआ -इशारों पर नाचना . चाटना , इशारा मिलते ही बिना सोचे समझे किसी पर झपट पड़ना , किसी को काट खाना, किसी का बुरा भला कर स्वामिभक्ति प्रमाणित करते रहना . इतना तो नहीं किया - नहीं किया तो नहीं ही किया
जीवन यात्रा के अंत में संतोष तो देता ही है .
यात्रा तो उन स्वमिभाक्तों की भी खत्म तो होती ही न है -
तब वे सोचते होंगें -- इतना कुछ किया किसके लिए !
----क्या इसी के लिए अब तक मर कर भी जी रहा था !
क्या सच इतनी पीड़ा देता ही है
क्या सच इतनी ही पीड़ा देता है
क्या सच ही इतनी पीड़ा देता है
क्या सच इतनी पीड़ा ही देता है
जहर का प्याला
सलीब या शूली
नाम बाप का बताना
या अपनी जात बताना
चीर हरण करना
या कि करवाना
घर छोड़ देना
या घर छुडवा देना
जंगल चले जाना
या जंगल भेज दाना
इसके हाथ मरना
या उसके हाथ मरना
सच की खोज में मरना
खोज लिया सच तब मरना
सच खोजते हो , मरो
सच क्यों खोजा , मरो .
सच बोलते हो , मरो
सच क्यों बोला , मरो
सच देखते हो , मरो
सच क्यों देखते हो ,मरो
यही सच है ,तब मरो
यह सच क्यों है तब मरो
सच कहने सुनने पर
लिखने , दिखाने पर
इतना पहरा क्यों
इतना सन्नाटा क्यों
सच, पीड़ा और मौत
क्या पचा नहीं पाते हम
क्यों
क्यों
We elected , selected and appointed them and we are still not ashamed of ourselves.
We did not impeach nor remove and we are not ashamed of..........
They are our heroes, and we are not ashamed of them .
Are they our own reflection ?
Never did we disown them ,not even to-day. We are not ashamed of all these !!!!
Are we!!!!
बहुत सी कमियाँ हैं , मानता हूँ , यह व्यवस्था भी पूर्ण या सर्वोत्तम नहीं है ,
विश्व की कोई भी व्यवस्था सम्पूर्ण या पूर्ण नहीं हो हकती , न है .
पर हमारे लोकतंत्र में कुछ तो आश्चर्यजनक है , चमत्कारी है , पूर्ण भले ही न हो ,सुन्दर ,सार्थक है
.
पर हमारे संविधान  में  भी कुछ तो आश्चर्यजनक है , चमत्कारी है , पूर्ण भले ही न हो ,सुन्दर ,सार्थक है

.
और  हमारे लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत हमारी न्याय व्यवस्था , में कुछ तो आश्चर्यजनक है , चमत्कारी है , पूर्ण भले ही न हो ,सुन्दर ,सार्थक है

चारों  और निहीत स्वार्थ वाले केवल आलोचना ही करते हैं . कभी तो ईमानदारी से प्रशंसा भी कर दें

क्या ये लोग नहीं खरीद सकते थे जिन्हें आज भोगना पड़ रहा है .

जिन लोगों ने आज यह कर दिखाया है , पहले भी अनंत बार कर दिखाया है , क्या वे हमारी इसी व्यवस्था से ही नहीं आये हैं और इसी समाज में रहते हुए इन लोगों ने यह सब नहीं किया है . कहाँ सब कुछ उड़ गया . कम से कम हमारी व्यवस्था में जो कुछ अच्छा है ,उसे भी तो स्वीकारो ,

बहुत सी कमियाँ हैं , मानता हूँ , यह व्यवस्था भी पूर्ण या सर्वोत्तम नहीं है ,
विश्व की कोई भी व्यवस्था सम्पूर्ण या पूर्ण नहीं हो सकती , न है .
पर हमारे लोकतंत्र में कुछ तो आश्चर्यजनक है , चमत्कारी है , पूर्ण भले ही न हो ,सुन्दर ,सार्थक है
.
पर हमारे संविधान में भी कुछ तो आश्चर्यजनक है , चमत्कारी है , पूर्ण भले ही न हो ,सुन्दर ,सार्थक है
.
और हमारे लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत हमारी न्याय व्यवस्था , में कुछ तो आश्चर्यजनक है , चमत्कारी है , पूर्ण भले ही न हो ,सुन्दर ,सार्थक है
चारों और निहीत स्वार्थ वाले केवल आलोचना ही करते हैं . कभी तो ईमानदारी से प्रशंसा भी कर दें
क्या ये लोग नहीं खरीद सकते थे जिन्हें आज भोगना पड़ रहा है .
जिन लोगों ने आज यह कर दिखाया है , पहले भी अनंत बार कर दिखाया है , क्या वे हमारी इसी व्यवस्था से ही नहीं आये हैं और इसी समाज में रहते हुए इन लोगों ने यह सब नहीं किया है . कहाँ सब कुछ उड़ गया .
कम से कम हमारी व्यवस्था में जो कुछ अच्छा है ,उसे भी तो स्वीकारो ,

Friday, 26 September 2014

पर अंत में अच्छा लगता है , अपनी शर्तों पर चला , मन से चला ,बेदाग चला ,गले में बिना किसी चेन के चला , किसी भी डमरू पर नाचे बिना चला -----
--- यही न मदारी की दी हुई दो चार फ्राक नहीं मिली , नहीं पहनी ,मदारी ने रस्ते की धुल चुटकी में उठा मेरे माथे पर टेलकम पाउडर बता, नहीं लगाया ,दो घुंघुरू मेरे गले में नहीं बांधें -
--- मदारी के लिए मैंने किसी के सामने हाथ तो नहीं पसारे ----.
मैं गले में बेल्ट लगा स्वामिभक्त  नहीं हुआ -इशारों पर नाचना . चाटना , इशारा मिलते ही बिना सोचे समझे किसी पर झपट पड़ना , किसी को काट खाना, किसी का बुरा भला कर स्वामिभक्ति प्रमाणित करते रहना . इतना तो नहीं किया - नहीं किया तो नहीं ही किया
जीवन यात्रा के अंत में संतोष तो देता ही है .
यात्रा तो उन स्वमिभाक्तों की भी खत्म  तो होती ही न है -
 तब वे सोचते होंगें -- इतना कुछ किया किसके लिए !
----क्या इसी के लिए अब तक मर कर भी जी रहा था  !
पर यात्रा विवरण बताते रहोगे तो अच्छा लगेगा ,मैं भी कुछ सिख लूँगा -कुछ बताऊंगा भी ,मानो या न मानो ,तुम जानो

अपना चला बताते जा ओ राही !!!!!

बड़े है वे जो अकेले चलते हैं , आगे चलते हैं ,साहसी हैं वे जो अकेले चलने निकल पड़ते है -बढ़ते चढ़ते हैं :,बडप्पन हैं उनका जिन्होंने अपनी यात्रा का प्रारम्भ विवरण शेयर किया --- आशा है वे और बड़े होंगे  ,बहुत बड़े , मेरे से बहुत बड़े और बहुत आगे जायेंगें -----

पर अपना यात्रा विवरण बताते रहना ,अच्छा लगेगा .मैं कुछ तो सीख  जाऊंगा ,सीखने  की कोशिश तो जरुर करूंगा - कुछ तो मैं भी बोलूँगा , बताऊंगा - मानो या न मानो मर्जी तुम्हारी !
फिर उनके बाद आने वालों कोभी तो जानने योग्य जानने का हक तो है ही न .
मेरे लिये न सही , अपने बाद वालों के लिए अपनी यात्रा का वृतांत सार्वजनिक करते जाओ.
बस य्हिमंगता हूँ - सरेआम मांगता हूँ .

अपना चला बताते जा ओ राही !!!!!
सफाई कर्म को राज -मर्यादा दिया जाना ---- मेरा प्रणाम इस निश्चय को.
वर्षों पहले शौचालय को अपने मन , साधन ,कर्म ,क्रिया सब का केंद्र मान अहर्निश तपस्या करने वाले बिहार -भारत के क्रन्तिकारी मनस्वी और उसके द्वारा शौचकर्म ,सफाई कर्म को मर्यादा दिलाने के संक्ल्प को मेरा प्रणाम .
बता सकते हो  ?
सत्य कैसा होता है ?
कैसा दीखता है ?
कहाँ रहता है  ?
किससे कब मिलता है ?
क्यों होता है ?
हुए बिना रहता क्यूँ नहीं ?

यह मत कहना
सत्य सत्य होता है
सत्य सत्य जैसा दीखता है
सत्य है तो होगा ही
और सत्य सत्य के साथ ही उठता बैठता है
यह सब सुनते सुनते कान पक चुके हैं
अब्य्ह मत कहना
कि सत्य सभी जगह होता है
यह भी नहीं कि
यह सभी समय में होता है .

कान पक गये
यदि यही है तो
हर बार यह दुबका छिपा
क्यों रहता है
हर बार रूप बदलता क्यों रहता है
भागे भागे क्यों फिरता है ,
सामने क्यों नहीं आता ?

या की सत्य है ही नहीं !
सबसे बड़ी विडम्बना
"कि सत्य खिन है "
जाने का वक्त करीब आ चला ,
कुछ कुछ मन भी अनमना हुआ
बोझ बढ़ा तो है मगर
बोझ ढोया भी बहुत है
बोझ उतारता ही रहा हूँ
बोझ बढ़ाया नहीं है
बोझ बना भी नहीं हूँ
बोझ उठाया बहुत है
फिर भी अभी बाकी है
बहुत सा बोझ ढोना
बहुत सा बोझ उतरना
थका तो नहीं हूँ अभी
थकता भी हूँ तो
थकने नहीं देता
उबा भी नहीं हूँ अभी
उबता भी हूँ तो
उबने नहीं देता
हाँ वक्त हो ही चला है
बोझ उठाये खूब चला हूँ
मन भी कुछ अनमना सा हो चला
जाने के पहले कुछ बना डालूं
निशान वक्त की छाती पर
इतिहास को ढक सकूं
वह चादर अभी बुनना है
जाने के वक्त को टालना ही पड़ेगा
अनमने मन को समझाना ही पड़ेगा
काम बीच  में छोड़ कर कोई उठा है क्या ?
धत्त पगले ! अभी वक्त ही क्या हुआ है ?
हो भी गया तो क्या ?
वक्त को इंतजार करने दो !
वक्त को इंतजार करने दो !
कह दो वक्त से
अभी इंतजार करे .!!

Thursday, 25 September 2014

क्या कोई बता सकता है ओं लाइन ओं पेमेंट क्या ,कितना और किसके द्वारा पढ़ा जा रहा है ?
फ्री एक्सेस पठनीय या उपलब्ध ऑनलाइन  सामग्री का इकोनोमिक -फईनेंसियल वर्थ ,वॉल्यूम ,फिजिबिलिटी ,मार्केट  पेनित्रेसन  क्या है .क्या यह ट्रेड-वर्थ -इनटेंजीबल है , इसका आई पी वर्थ भी है क्या , क्या यह इकोनोमिक प्रोपर्टी है या बनाया जा सकता है .
शायद मैंने बचपन में पिछली रोटी खाई थी इसी लिए पीछे समझ आ रही है
शायद मैंने बचपन में पिछली रोटी खाई थी इसी लिए पीछे समझ आ रही है
दु:खों की मूंज से बनी है यह जीवन खाट
जिस पर आशा का बिस्तर बिछा कर
लेटा हुआ हूं मैं पूर्णिमा का इंतजार क्या करता है 
L
सत्य की ही विजय होती है ,ऐसा भ्रम फैलाया गया ताकि सत्य पर आश्रित पवित्र लोग आश्वस्त हो के बैठ जाये और जब सत्य और असत्य में वास्तविक निर्णय की घड़ी आये तो समुचित रणनीति के अभाव में सत्य असत्य के सामने उभर ही न पावे और तब असत्य खुद को ही सत्य घोषित करवा लेने में सफल हो जावे .
संघर्ष की स्थिति में सत्य अपनी रक्षा नहीं कर पाता ,उसकी रक्षा के लिए यदि सारे भेद -उपाय नहीं किये गए तो सत्य की पवित्रता ही सत्य को पराजित करने के लिए पर्याप्त है .
सत्य की पवित्रता ही सत्य को पराजित करने के लिए पर्याप्त है

जो जीतने के बाद हारने के पहले मृत्यु को प्राप्त हो वह , महापुरुष 
जो जीतने के बाद मृत्यु के पहले हार जाये उसका श्रेय औ वह गये 
हार पवित्र नहीं होती ,जीत न होती अपवित्र 
हारना ही पाप है ,जितना ही पूण्य


जो जीत गया वह सत्य , वही धर्म ,केवल वही परम
बाकी सब हार गये सो असत्य , अधर्म औ निराधम
I am indebted to all those who still like me,still like my posts and over all still my life journey.I would not conceal my own journey details. Of late ,now I can understand that fairness has its own cost and success has its own twists .
But then,if you are in war you must be ready and must not complain.
Wars does not have any fair rule-theory. Do everything (EVERYTHING ) to win and if you cannot, die and let others win. No questions asked !

Wednesday, 24 September 2014

अभी जाना है बहुत दूर ,सम्भल,सम्भाल कर चलना
चलना अभी शुरू हुआ ,,सम्भल,सम्भाल कर चलना .

जो जा चुके ,वे जा चुके  तुम को तो आगे ही चलना है ,
जो जा रहे ,वे चल चुके ,संभलो ,उससे आगे चलना है .

मैं भी तो लगभग चल चूका ,तुम्हारा चलना बाकी है
रसद जुटा हिम्मत बांधो , चलना सीखना ही बाकी है

धक्के , गड्ढे बाकी है ,आंधी तूफ़ान भी अभी बाकी है
गहरी खाई अभी बाकी  है ,खड़ी चढ़ाई चढना बाकी है

मैं भी अकेला चला था ,तुम्हें भी अकेले चलना होगा
साथ भी यदि मिल जाये ,आगे तो अकेले होना होगा

ताकत, हिम्मत है तुम्हारी ,वही तो तुम्हारे काम की
रसद जुटाये रखना हरदम , बाकी कुछ नहीं काम की

अभी जाना है बहुत दूर ,सम्भल,सम्भाल कर चलना
चलना अभी शुरू हुआ ,,सम्भल,सम्भाल कर चलना .
 .

Who will guard the guards ?
"We The People" have decided to have a democracy and republic.
We cannot be governed by appointed persons' wisdom.

Tuesday, 23 September 2014

काश! हमारे पास हमारे वैज्ञनिको जैसी कुछ और जमात होती .
आज और अभी भी यह पूछने वाले लोग हैं - जी हाँ खाते-पीते  , पढ़े-लिखे लोग - इससे हमें अभी क्या मिलेगा .
काश,मिलावट करने वाले , दो नम्बर की खाता बहियाँ बनाने -बनवाने वाले ,उन पर ठप्पा मरने वाले और उस ठप्पे को मान्यता देने वाले ,हर अपराधी को बच निकलने का रास्ता दिखाने वाले ,बच्चों, बछियों का  एक्सपोर्ट करने वाले ,नकली द्स्तावेज बनाने वाले ,नकली दस्तावेजों को कोर्ट में अपने सामने देख समझने के बाद भी चुप रहने वाले ,कहीं  तो शर्म करना शुरू तो करो ,अपनों को अपनों के लिए अपनों द्वारा ,अपनों का सिस्टम ,,परस्पर बंधेज , अब तो बदलो.
Be with me ,walk along with me.  I may not lead ,I may not follow but I 'll be with you .We must be together.................
What is my utility for you  and here?
राज्य स्तर की राजनीति तथा रष्ट्रीय स्तर की राजनीति दोनों दो बात है .भारतीय सन्दर्भ में तो और भी विकट भिन्नता है . स्थानीय मूल्य,स्थानीय आकांक्षा  तथा राष्ट्रिय प्रश्न तथा सारे राष्ट्र की विविध आयामी अपेक्षाएं परस्पर प्रतियोगी ही नहीं होती परस्पर विरोधी भी होती है . पर कम से कम सभी एक सार्वभौम राज्य के अंतर्गत समाहित हो कर साथ चलने को कृत संकल्प होते हैं अतएव उन्हें संभाला जा सकता है .

पर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति सार्वभौम  के बीच की राजनीति है . प्रत्येक सार्वभौम  को अनन्यतम सार्वभौम अधिकार है .
आंतरिक राजनीति के प्रसंग अलग होते हैं ,रणनीति अलग होती है .
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति बहुत पेचीदा , नाटकीय ,क्षणभंगुर ,विवादित ,भेदभरी ,गंभीर ,व्यापक होती है .उसमे एकाएक कोई घुमाव -मोड़ -टर्न बिना बहुत सावधानी के नहीं किया जा सकता. कोई नई शुरुआत में तो और सावधान होना होगा .
नौसिखियों के बस की बात नहीं है .
Who keeps on selective- reading of some of these posts ?

Monday, 22 September 2014

जिन्होंने कभी कोर्ट नहीं देखा , संसद नहीं देखी , कानून कोस्माज्में चलते फिरते ,अमल  में आते ,अमल  किये जाते नहीं देखा वे कानून पढाते हैं .
जिन्होंने कभी ब्यापा ,उद्योग  नहीं देखा ,ब्यापार, उद्योग किया नहीं ,जोखिम उठाया नहीं ,पूरी जिन्दगी वेतन भोगी थे ,बने रहेंगे ,जिनके आखों में कभी कोई बड़ा सपना है ही नहीं ,न कभी सपना देखा न पता है कि सपनों से क्या होता है , कैसा लगता है ,ब्यापारी,उद्योगपति की जिंदगी  नहीं देखी , उद्योग ,व्यापार को  चलते फिरते ,अमल  में आते ,अमल  किये जाते नहीं देखा वे प्रबन्धन ,मेनेजमेंट ,एन्त्रिप्रेन्योर्शिप  पढाते हैं .
एक ,एक , एक ------
बुद्धिजीवी सोचता है --अकेला चना है क कुछ नहीं होगा ,कुछ नही कर सकता - अकेला चना किस काम का
मजदूर सोचता है ---- एक तो है ही न
किसान सोचता है --- १=१=१ ---- तीन तो हो ही जायेगा
ब्यापारी ,साहसी ,मालिक,कारीगर  सोचता है --एक दुसरे से सहयोग करेंगें तो १११ हो ही जायेंगे 
तुम्हारे किये का आर्थिक मूल्य क्या , कितना और क्यों है ,कल कितना और क्यों उतना ही था , आज इतना ही क्यों है , आगे क्या क्या होगा - कोई आईडिया !
बहरहाल कविता अपनी मौत के कदमों की आहट समझती है।
कविता यदि केवल सुंदर , मनोरंजक ,उत्तेजक , आकर्षक हो और उसे छंद-अनुप्रास-अलंकार के ऐतिहासिक आभूषण सीधे पिंगल शास्त्र के के खजाने से निकाल कर पहना उढ़ा कर समाज में ले आईये , आज का समाज उसे स्वीकार नहीं करेगा जब तक की उसे समाज की समस्या , सरोकार , नित्य उपलब्ध नवीं ज्ञान ,विज्ञानं ,और सबसे उपर सामाजिक ,आर्थिक , सांस्कृतिक उपयोगिता से नहीं जोड़ा जायेगा .

रीतिकालीन कवियों ने तो काव्य-विन्यास का प्रदर्शन करते करते कविता को तो मार  ही डाला था -
द्रुत-विलम्बित,,म्द्ग्यन्द , मात्रा ,श्लेष सौ पचास डाक्टरेट करने वालों के तो काम की चीज हो सकती है -
समाज तो बेतुका दर्द-आख्यान, सहभागिता ,कवि का समाज से जुड़ाव ,कविता के माध्यम से बच्चों को कुछ पढ़ा पाने का अर्थ , या सत्ता के शीर्ष पर बैठे मठाधीशों को चिकोटी काट जगाने वाली कविता , या हिम्मत हारी  जनता को नया सन्देश दे पाने वाली कविता खोजता है.-
अब समाज के पास पढने ,सुनने ,समझने के लिये बहुत कुछ है , समाज पहले वह  सब पढ़ेगा .
वैसा ही पठनीय कुछ कविता में भी खोजने का समाज का अधिकार है .
कथित कवि सैकड़ों साल पुरानी  कविता -कला में कोई अन्तर क्यों नहीं करना चाहते ? .
कविता क्या कवि की , कवि के लिये ,कवि के द्वारा समझने , वाह  वाह,इरशाद ,बेहतरीन आदि विशेषणों के लिए रची जाती है.
यदि हाँ ,तो उसे कवि समाज को संभाल कर रखना चाहिए.
अथवा नये समाज को समझें.

Sunday, 21 September 2014


तख़्त जमीं पर हुकुमत करते है ,
चन्द लम्हों के लिये 
खंजर लिए घूमते फिरते हैं 
किसके लिए ?
फिर वही खंजर पीछा करता है 
उसी तख्त के लिए 
घूमता फिरता है 
उन्हीं की जान के लिये .

एक वे हैं , इन्हें देखो 

दिलों जान पर हुकमत करते हैं 
इनके पीछे जान लिए घूमता हैं 
रु बरु हो तो ,आँख नीची 
सब कुछ कुर्बान किये चलते है . 

A fresh start is never a cake walk
I need to die every day
and
live a new life another day
A life is made up of  everyday traumas, falls
and
I need to rise and walk everyday.
I learn a lesson every day.
I try the lesson another day
Everyday I walk a new way
in a new way.
Start afresh every way
everyday,
forward to go
and
forward the way.
Never to die
Live and try
that is the only way.

Never to die
Live and try
that is the only way.

( I always wondered how they survived in Surinam, Fizi,Africa,Guinea ,Bissau ,Siera leone ,Mogadishu , Madagascar ,)
बस हिम्मत की , ईमान लाया ,दो गज जमीन हाथ से ही पाक की ,खयाल बनाया , वजू बनाया , खयाल किया ,खयाल में लिया और सजदा किया - बस नमाज़ हो गई .
यही तो है ,नारियल ,सुपारी , पत्थर ,गोबर -कुछ भी , हिम्मत किया ,इमान लाया ,धारणा की , संकल्प किया , सिर नवाया ,प्रार्थना की और पूजा हो गई . पत्थर ,इन्सान ,पेड़ ,जानवर , नदी ,पहाड़ , अन्न ,धन , जन ,गुण , नाम ,लिखा पढ़ा , कहा सुना ,देखा -सोचा -कुछ भी -विश्वास किया और निकल पड़े  - यात्रा पूरी हो गई .

Saturday, 20 September 2014


प्रश्न यह है कि तुमने क्या किया ,क्या दिया ,क्या दे कर जाओगे ,तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारा दिय क्या रह जायेगा .
प्रश्न यह भी है और रहेगा  की तुमने कितनी बार , कब कब और कैसे  अपने आप से ,अपने लालच से लड़ाई लड़ी और जीती .
अपने लालच से हारने वाले ली मिलेंगे .
उससे लड़ कर जीतने वाले कम ही मिलेंगे .
आपपने आप को कहाँ पते हैं .
अपना स्थान स्वयं निर्धारित करें .
मैं तुम्हें जानना चाहता हूँ ,पर पहले तुम तो मुझे जान लो
मैं तुम्हें पहचानना चाहता हूँ ,पर पहले तुम तो मुझे पहचान लो
मुझे खोद- खोद कर , घस- घस कर ,खरोंच -खरोंच कर परखो ,मेरी उपयोगिता को जानो ,मेरे मन को जानो ,मेरी आँखों में झांक कर देखो , मेरे व्यवहार को समझो ,मुझे उलटो -पलटो , खंगालों ,धोओ ,तपा कर चेक करो ,यदि मन भरे तो अपने आप को मुझे जानने ,पहचानने में मदद करो .वैसे मै यदि तुम्हें उपयोगी लगता हूँ तो मेरे बल ,बुद्धि विवेक ,मेरा अपना का प्रयोग करने तुम स्वतंत्र हो , मैं तुम्हें नहीं भी जनता फ्चंताहूँ तब भी .
धीरे धीरे पूरा का पूरा खुल ही गया - ऑटो मोड में खुलता ही चला जा रहा हूँ - स्वेतावृत्त
अपने आप को अभी भी ढूँढ रहा हूँ , अपनी उपयोगिता खोज रहा हूँ - उपसंहार  का प्रसंग क्या होगा --
धीरे धीरे पूरा का पूरा खुल ही गया - ऑटो मोड में खुलता ही चला जा रहा हूँ 
 reminded me of my old mischievous nature... kitna sukoon milta tha...tang krne mein... पचास साल पहले हम भी बच्चे थे -पर सच्चे थे ,कच्चे थे पर अच्छे थे -पचास साल पहले हम भी बच्चे थे -------- अब  तो " समझदार " हो गये -- अब हम खुद पुरे के पुरे "ब्यापार "हो गए ----
सच्चे बच्चे ,अच्छे बच्चे ,कच्चे बच्चे  अब केवल नफा नुकसान देखने वाले पके हुए फल  हो गये  --- जाने कब पेड़ से टपक जाये पर क्या मजाल है "समझदारी " या "ब्यापार " कोइ भी छोड़ देने को तैयार हो - 
हौले हौले संकोच के साथ माउस स्क्रौल करते मुझे महसूस करने ,सूंघने -जानने -पहचानने की कोशिश करने करने वाले तुम कौन हो - इतना डर क्यों ,इतनी झिझक क्यों - बुबुदाते पढ़ते मुझे अच्छे लगते हो -साफ साफ बताओ मुझे यूँ क्यों पढ़ कर अपने आप को भारी क्यों कर रहे हो .
 THE DARK SIDE OF SUCCESS?------ क्या कभी किसी ने ईमानदारी से बताया है .
किसी  व्यापारी ,उद्योगपति ,वैज्ञानिक ,खिलाड़ी ,सैनिक ,सेनापति , संगीतज्ञ, शिक्षक , विद्यार्थी , अभिनेता , नेता  याकिसी ने भी कभी भी .उज्ज्वल पक्ष तो बताये जाते है .
Why the dark side of success is not made public.?
आपने बहुत कुछ किया होगा .सही क्या क्या किया ,आज तक सभी को खूब बताया ,वाही वाही ली ,प्रशंसा प्राप्त की ,
कुछ गलतियाँ भी हुई होगी , आपने की होगी , हो गई होगी . उसे जी कड़ा कर कर बता तो दीजिये .
शिक्षक , चिकित्सक , राजा ,सैनिक और न्यायाधीश  को शीलवान धीर पर निष्ठुर होना ही चाहिए  , उनके धर्म शायद उनसे कठोर स्पष्टवादी एकरूप आचरण की मांग करते हैं जो शायद उचित ही है .
अनावश्क विनम्रता इन्हें नहीं शोभती .
शिक्षक , चिकित्सक , राजा ,सैनिक और न्यायाधीश  को शीलवान धीर पर निष्ठुर होना ही चाहिए  , उनके धर्म शायद उनसे कठोर स्पष्टवादी एकरूप आचरण की मांग करते हैं जो शायद उचित ही है .
अनावश्क विनम्रता इन्हें नहीं शोभती .

Friday, 19 September 2014

Many ways lead to greatness -----
There are several points of greatness.-----
एक पद आपका कद नहीं बताता .आपका कद तो आपका किया बताता है .राजदंड धारण करते ही आप चाटुकारों से घिर जाते हैं जो आपकी पूजा-वन्दना कर आपके अहं को जगाते हैं ,पुष्ट करते हैं और आप अपनों से तथा सत्य से क्रमशः दूर हो जाते हैं
रीतिकालीन कविताएँ पिंगल शाश्त्र तथा काव्य  शाश्त्र के  दारुण बंधन में रह कर समाज का कौन सा भला कर सकीं -दादू ,सहजो-बाई , भिखारी ठाकुर ,ने क्या साहित्य की सेवा नहीं की .
IP Law; Technology Law; Corporate Law; International Law; Legal History; Legal Philosophy;-- how many of us are interested in a way  to cater the needs of Academicians, Students and Industry, courts and litigants alike.
Yes men are winners on "power-turf". Power rewards"my men",
Cream always goes to loyalist .
यह भूल क्षमा करने लायक नहीं थी।

-----कुछ होती है , उन्हें क्षमा किया जाना चाहिए .
क्षमा नहीं करने लायक  ( नहीं होने लायक ) भूलों  के सम्बन्ध में सामाजिक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए . ऐसी भूलों से बचना सीखना ,सिखाना  चाहिए
बेटे , बहुत दिन हुए , तुम भी नहीं आये , वे भी नहीं आये ,कोई नहीं आता ,
कोई बात नहीं ,कल मैंने बाजार से आधा दर्जन टेडी बड़े बड़े खरीदे है , अच्छे है
कुछ को सोफे पर बैठा दिया है ,एक बड़ा वाला तुम्हारे बेड पर है , एक मेरे बेड पर सबसे बड़ा वाला ,एक दीवान पर पड़ा रहता है , अब अच्छा लगता है , उम्मीद है अब मेरा समय कट ही जायेगा , समय कैंची की तरह शायद मुझे काटे  जा रहा था ----- मैं तो शाय.. ..द ..अ..ब ...... .भी...क..टी..जा...र...ही..........

मैं समझ पा रहा हूँ ,भोर होने को है , रौशनी हो चली है और तुम डर  रहे हो ,डरते जा रहे हो ,डर चुके हो -
तुम्हे छिपने के लिए अँधेरा अब कहाँ मिलेगा , तुम्हे छिपाने वाला अँधेरा तो अब खुद बेघर हुआ भाग चला है .,
मैं तो तुम्हे अभयदान देने से रहा ,दे भी सकता तब भी नहीं देता
हर घर के लिए नक्शा बनाया ही जाये जरूरी तो नहीं
इंट, मट्टी ,फूस,परिवार की मिहनत,बस घर बन गया
घर बसा , घर बना ,हंसी बसी, गाँव  बसा ,बसाया गया
केवल कागज पर खेंची लकीरों ने कभी कोइ घर बनाया?

कवि यदि कवि के लिए लिखे , तो सजे छंद ,अलंकार
सबके लिए जो कवित्त रचे , तो क्या करे छंद अलंकार .
भोजन जो सुभोजन हो , तो क्या करे पत्तल के श्रृंगार
चित्र चढ़ी पत्तल क्या करे , जो न भोजन न व्यवहार



रीतिकालीन कविताएँ पिंगल शाश्त्र तथा काव्य  शाश्त्र के  दारुण बंधन में रह कर समाज का कौन सा भला कर सकीं -दादू ,सहजो-बाई , भिखारी ठाकुर ,ने क्या साहित्य की सेवा नहीं की .
शिखर अनंत हैं .शिखरों की यात्राएँ अनंत है . नये शिखर बनते रहते हैं .नई यात्राएँ होती रहती है .नये यात्री आते रहते हैं ,उपर चल  पड़ा जो यात्री वह यात्रा ,जो जहाँ उपर रुका उसका वही शिखर .हर यात्री का , यात्रा का अपना शिखर .
क्या न्याय वकील होने और न होने की स्थिति पर बेबस भाव से आश्रित है . क्या जज ही न्याय का श्रोत है .वकील या जज नहीं तो न्याय नहीं .
अंत यह नहीं है ,यह भी नहीं हैं ,अंत कभी नहीं है ,आज और अभी भी नहीं , कभी भी नहीं .
हर पल केवल शुरुआत भर ही है , नई शुरुआत  ,हर पल हर चीज नई है , नये का आरम्भ , नया बिहान .
अंत न कभी था ,न होगा ,न कभी आया था न कभी आएगा .
बस एक निरंतरता का चक्र है 

Thursday, 18 September 2014

शून्य को पार करती एक रेखा
शून्य से पार पाती एक रेखा
शून्य से एक को जाती एक रेखा
एक अनंत यात्रा है ,अनंत तक की यात्रा .

विकराल कौन ? शायद आज तक पता नहीं चला . भूख की देह भी देखी है और देह की भूख --- भूख ही विकराल है -चाहे जिसकी भी हो - भूख समस्त पापों का ताला खोल देती है - सारे भय हर लेती है -सारी  लाज शर्म से अकेले ही लडती है -असफलता दिखती रहे वहाँ  भी जो लड़े वह  है भूख - विकराल भूख 
I want to stay with you. I want to touch you and feel you . I want to be touched by you and to be felt by you. If this is not possible I want to see you and be seen by you . I want you in my memories and myself in your memories.
I want it when I am about to go , to leave and take rest.
I want it when I am to depart finally.
I want to depart without complains, pains and agony to you, from you.
Let every thing rest with me,get confined with me.
हर शिक्षक को विद्यार्थी से अधिक मिहनत करनी पडती है तभी वह प्रशिक्षक बन सकता है 

Wednesday, 17 September 2014

I 'll live before I leave. Life is to live kissingly.
Love and live.
मैंने जीवन में बहुत सारी गलतियां की है। भयंकर भूलें भी हुई हैं मुझसे।
लेकिन मेरा  मानना है कि अगर आपमें भयानक भूलें करने का माद्दा नहीं है तो आप अपने समूचे जीवन में कुछ नहीं कर सकते। लेकिन मेरी भूलें हिमालय जैसी नहीं थीं - उससे बहुत छोटी थी।
सँभालने और संभलने लायक थी ,आज भी आप सब के  सामने बता सकने लायक है .
पर गलतियाँ तो गलतियाँ है , हो गई , की गयी , कर ली गई पर थी गलती , उससे बचा जाना चाहिए था , नहीं वैसी गलती होती तो अच्छा होता
 -पर उन्हीं गलतियों ने बहुत कुछ सिखाया , बहुत से भेद खोल दिये ,बहुत से लोगों के अन्दर के चल -चरित्र को दिखा -समझा डाला ,
बहुत सी गलतियों का जो हौआ बना था वह टूट गया - पर थी वे गलतियाँ
 -कुछ जाने में हुई , कुछ हो गई , कुछ अनजाने में हो गई , कुछ एक से अधिक बार जाने अनजाने हुई . बहुत सी गलतियों का बहुत बाद में पता चला की वह गलती थी
पर वे सारी गलतियाँ एक अच्छा टीचर साबित हुई .
कुछ गलतियों ने सजा भी दी . कई बार गलती की भरपाई करने को विवश होना पड़ा .
दारुण परिश्रम करना . बड़ा शर्मिंदा होना पड़ा.उस शर्मिंदगी से उबरने के लिए अतिरिक्त पुरुषार्थ करना पड़ा ,अपने आप को बदलना पड़ा .
कुछ गलतियों की सजा भी मिली .सजा ने मुझे सजा दिया , सजने में मदद की ,मांज  दिया , तपा कर साफ भी किया , गलत क्या ,क्यों ,और कैसे होता है बताया .भोगी हुई गलती   सब से बड़ी शिक्षा है . गलतियों ने प्रायश्चित का मार्ग प्रशस्त किया .
वैसे गलतियों से कभी कभी अपूरणीय क्षति हो जाती है जिसके बाद रह जाता है केवल पछतावा . कभी कभी तो आप पछतावे के लिए जिन्दा ही नहीं बचते .कई बार आपकी एक गलती को पुरे समाज ,को भोगना पड़ता है . ऐसी गलतियाँ पुरे समाज को समस्या में डाल देती है . कभी कभी एक गलती स्थायी समस्या को जन्म दे जाती है.
इलाहबाद की घटना देखने के बाद समझ में  आया की उस दिन मैंने आप लोगों को कैसे निकाल लेने में सफलता पाई होगी ,
आप लोगों के विरुद्ध मेरे समक्ष कोई विपरीत सामग्री तो थी नहीं , तब भी मुझे ऐसा कुछ कहा जा रहा था जिसके लिए मैं तैयार हो ही नहीं सकता था.
आप सब आज सुरक्षित हैं ,यह मेरे लिए संतोष की बात है .उससे भी बड़ी बात है आप सब की अस्मिता सुरक्षित है , अब तो आप में से लगभग सभी सुरक्षित हो चुके हैं
मेरे पास जब विपरीत सामग्री है ही नहीं तो मैं क्यों आप के भविष्य से खेलूं .
आप सभी मेरे पुत्रादि समान हैं , मैं आपकी अस्मिता पर किसी को भी अन्यथा देखने तक का अवसर कैसे दे सकता हूँ .
आप ससम्मान रहें .
आप सभी के भविष्य तथा सम्मान की कोई भी कीमत बड़ी नहीं हो सकती .  

Tuesday, 16 September 2014

मैंने जीवन में बहुत सारी गलतियां की है। भयंकर भूलें भी हुई हैं मुझसे। लेकिन गांधी जी की तरह मेरा भी मानना है कि अगर आपमें भयानक भूलें करने का माद्दा नहीं है तो आप अपने समूचे जीवन में कुछ नहीं कर सकते। लेकिन मेरी भूलें हिमालय जैसी नहीं थीं - उससे बहुत छोटी थी।
फिर फिर घिर आती है ये घटायें स्मृतियों की
खट्टे-मीठे ,तीते-नमकीन रोते -हंसते बचपन की .

बचपन तेरा हो या मेरा , सबका एक जैसा होता है
हाँ रे पगले , बचपन ऐसा ही ,बस ऐसा ही होता है

बचपन कुछ खोता रहता है ,शायद वह बचपन ही होता है
बचपन कुछ लुटता रहता है , हाँ , वह बचपन ही होता है .

कल का बचपन , अब लूटता बचपन
बचपन को बचपन कौन कहता है .
मैं पूछ रहा हूँ पचपन में 
कई सवाल अब बचपन से .

सिक्सटी में भी आते हो 
सिक्सटीन बना जाते हो !.

थर्टी में तो न आये थे 
थर्टीन को बुलाया था .!

अरे हाँ , तुम तो आये थे 
मैंने ही तुम्हे भुलाया था.!

फोर्टी में लुकते आये थे 
फोर्टीन को न अपनाया था .!

फिफ्टी में तुम छिपते थे 
फिफ्टीन ने छकाया था !

पचपन में फिर याद आया 
बचपन फिर क्या आयेगा .?

पूछा मैंने खुद अपने से 
सिक्सटी में सिक्सटीन क्यूँ आया है 

अगला सवाल में नहीं पूछूँगा 
सेवेंटी में सेवेनटीन आयेगा ?

इसके परे तो मैं क्या जानू 
एट्टी या एट्टीन कब आयेगा ?. 

बस हर शख्स को उसके होने का एहसास हो जाने दो
बस हर सांस को पूरा जीवन जीने को मचल जाने दो
हर इंट को ताजमहल का मालिकाना एहसास होने दो
हर दीवार को पूरी दिल्ली बनने के ख्वाब में खोने दो.

हर बीज को जगने दो ,धरती को नभ तक ले जाने दो
हर पक्षी को उड़ जाने दो , नभ को धरा तक ले आने दो
हर बचपन देख सके सपना ,इतना तो हर्षित हो जाने दो
हर यौवन होसके अपना , इतना तो पुलकित हो जाने दो
.
पूरा सपना ,सबका सपना ,इतना तो बस हो जाने दो
सबका जीवन ,सबका अपना ,इतना तो बस हो जाने दो .
किस रास्ते जायेंगें आप ,निर्णय तो आप ही को करना पड़ेगा .
हाँ , यदि आप चलना ही नहीं चाहते तो इस निर्णय की परेशानी से बच सकते हैं .
और हाँ यदि आगे आगे चलने का साहस नहीं है तो किसी भी भीड़ के साथ हो जाईये , भीड़ आपको अपने में समा ले जाएगी , झा भीड़ पहुंचेगी वहां पहुँच जाईयेगा ., और रास्ता खोजने , रास्ते के सम्बन्ध में सारे निर्णयों की परेशानी से भी बच जाईयेगा . चलने पर तो रास्ते के सरे जोखिम भी आपके .हाँ चलने का इनाम भी चलने के बाद आपके ही नाम होगा

हाँ , चलने की जोखिम ,उसके थ्रिल , चल कर पहुंचने के आनंद तथा अनुभूति, चलने का रिवार्ड  तो नहीं ही मिलेगी
आपने बहुत कुछ किया होगा .सही क्या क्या किया ,आज तक सभी को खूब बताया ,वाही वाही ली ,प्रशंसा प्राप्त की ,उससे जो सफलता मिली उससे आप आज महान भी हो गए .
पर क्या आपने अपने जीवन में केवल सब कुछ सही ही किया . गलत कुछ नहीं किया . गलत कुछ नहीं हुआ .
हुआ तो होगा ही .कुछ अतिरेक में , कुछ अज्ञानता वश , कुछ जानते भर , कुछ अनजाने में .
कई बार करने चले गलत हो गया सही .
किसी गोदाम में खुद घुसे चोरी छिपे चोरी करने . पहले से ही वहां चोर था ,खट पट हुई , आपने चोर को पकड़ कर हल्ला कर दिया -प्रचारित हुआ आपने चोर पकड़ा .आप खुद चोरी करने उस गोदाम में गये थे आज तक किसी ने न जाना .वह चोर तो जानता है पर न कह सकता है न उसका कहा कोई विश्वास करेगा .
बस आपकी गलतियाँ आपके सिवा कोई नहीं जानता
आपके अनुभव केवल आपकी बुद्धिमानी से किये कार्यों से ही पैदा नहीं हुए .आपके क्रोध,लालच ,काम-आवेग , आपके अहंकार ने ,आपकी लापरवाही ,आपके आलस्य ,आपकी बेवकूफी , मुर्खता ,अज्ञान आदि ने भी आपको ढेर सारा ज्ञान दिया ,अनुभव दिया .
आप उसे भी बता  देते तो अच्छा  होता .
आपने पूण्य तो किये ही होंगे तभी तो आज आप महान है पर आपने बहुत से पाप भी जाने अनजाने , कहे पर ,बहकावे में , नासमझी में ,लोभ वश किये होंगे .कुछ मजबूरी में किये होंगें .
उनका खुलासा कर  देते तो हम बहुत से लोग आश्वस्त होते की वैसे पाप केवल हमारे हाथों ही नहीं होते बल्कि  महान  लोगों ने भी किये हैं .  हमारा अपना पाप बोझ उतर जाता .
वैसे आप यह करते तो हैं ही .जो सब कुछ छोड़ आपके पास आपके मन का हो कर आपके कहे में चला जाता है उसे तो आप पाप-बोझ तथा पाप बोध दोनों से मुक्त कर ही देते है , पाप प्रभाव से भी .
उसे तो आप बताते ही होंगें की कोई खास बात नहीं है ,ऐसा मैं भी कर चूका हूँ ,या  मेरे हाथ से या मन से भी ऐसा हो चूका है और मैं उससे इस रास्ते मुक्त हुआ था .
मैं तो केवल आपको सर्व जन हिताय यही सब सार्वजनिक करने का आग्रह भर कर रहा हूँ .

मैं व्यक्ति परक अथवा घटना के तथ्य परक ,अथवा विवादित विचार परक उद्यम नहीं करता .
समसामयिक घटनाओं का मूल्यांकन  करने का मैं प्रयास घटना निष्ठ हो कर कभी नहीं करता .
व्यक्ति अथवा घटना की विवेचना मेरा विषय नहीं .
मैं तो विचार नद का एक प्रवाह मात्र हूँ - जल मेरा मूल तत्व हैं - वनस्पति मात्र को लाभ होता ही होगा तभी तो प्रवाह है .हर जीव को प्राण मिले ,प्राण सिंचन हो . होता ही होगा तभी तो अस्तित्व है .इस प्रवाह के उर्जा श्रोत को मैं स्वीकार करता रहूँगा- उस अभिदान को कृतज्ञ नमन .
गया जमाना सिखाने वाला .पढ़ाने अब कोई नहीं आयेगा.खुद ही पढ़ना , सीखना पड़ेगा .अपने आप को सुरु से ही सजग करना होगा. अपनी जिम्मेवारी के लिए खुद ही आगे आना होगा.अपना बोझ खुद ही उठाना होगा .अपनी गलतियों के लिए दूसरों को अब जिम्मेवार नहीं  ठहरा सकते . तुम्हारे माता पिता तक तुम्हारी जिम्मेवारी अब उठाने को तैयार नहीं है .
सच तो यह है कि आत्म निर्भरता हर स्तर पर बढ़ी है .हर पीढ़ी अब अपनी जिम्मेवारी समझने को तैयार है .कोई भी दूसरे के सहारे  जीना नहीं चाहता . सभी अपनी अपनी स्वतंत्रता का उपभोग करना चाहते हैं . पराश्रयी होना कोई नहीं चाहता .उस अर्थ में आराम करना भी कोई नहीं चाहता है . हर  पीढ़ी शुरू से लेकर अंतिम समय तक सक्रिय ,उपयोगी होना चाहती  है. मौज मस्ती तो चाहती है पर अपने टर्म पर , अपनी शर्तों पर .
पुरानी  पीढ़ी नई पीढ़ी द्वारा शासित होने को तैयार नहीं .
नई पीढ़ी को नए सोच पर भरोसा है .नये को अपनी क्वालिटी पर गुमान है . वह पुराने से दबने को तैयार नहीं. नया अपने प्रयोग खुद करना चाहता है .  नया अपने किये की रिस्क भी समझता है ,उसे वहन करने को तैयार है .वह सफलता का श्रेय किसी दुसरे को नहीं देना चाहता . वह तैयार है असफलता के लिये भी .उसे भी भोगने को तैयार है .उस वक्त भी वह पुराने के पास भीख मांगने जाने को तैयार नहीं . जाने कहाँ से नए में इतनी शक्ति आ गयी है .पर यह है .
फलस्वरूप पुराने ने भी नये  से अपने संबंधों को नया रूप दे डाला .न श्रेय मांगेंगे न तोहमत झेलेंगें .
पीढ़ियों ने अलग अलग जीना शुरू कर दिया .पुराने ने भी नये के लिए कुछ बचाना , सोचना छोड़ दिया या छोड़ रहा है .
एक पीढ़ी ने दूसरी पीढ़ी के लिये जीना छोड़ दिया .परस्पर सहारा बनना ,बनाना छोड़ दिया .पीढ़ियों की श्रेष्ठता में वृद्धि हुई है .परस्पर आश्रिति कम हुई है .
हर पीढ़ी अधिक स्वावलम्बी हुई है .शायद अधिक मजबूत भी.
नये का नया ज्ञान पुराने तक पहुँच रहा है .
अनुभव के साथ उत्साह तथा नई प्रेरणा का अद्भुत संयोग हो रहा है .
गया जमाना जब हर विचार को पुराने विचारों से लड़ना झगड़ना पड़ता था , पुराने के पास जा इम्तिहान देना पड़ता था , पुराने से पास होने पर ही उसे स्वीकार किया जायेगा नहीं तो शूली पर लटका दिया जायेगा ,या झर पिने को मजबूर किया जायेगा .
अब तो हर नया आता है बिना किसी झिझक के ,आता है  और जम जाता है ,पुराना उसे बुला रहा है ,स्वागत कर रहा है
अब पुराना जाने से नहीं डर रहा . जबरदस्ती नहीं रहना चाहता . पुराना नये से अब रहने देने की भीख नहीं मांगने को तैयार . पुराना अपने हक से अपना जीवन जीना चाहता है .
गिडगिडाने को न पुराना तैयार न नया .

Monday, 15 September 2014

एक एनाटोमी के प्रोफेसर फ्रेशर्स के साथ एक डेड बड़ी के पास खड़े हो डेड बड़ी टच कर अंगुली अपने मुंह में रखने के बाद सभी फ्रेशर्स को वैसा ही करने को कहे .
फ्रेशर्स ने दिल कड़ा किया , मन को मारा और वैसा ही किया .चित्त गडबडा सा गया .
प्रोफेसर ने कहा -डाक्टरी का पहला लेसन - कीनली ऑब्जर्व करो, तब कुछ करो . मैंने इंडेक्स फिंगर से टच किया था पर मुंह में मिडिल फिंगर रखा था .
विद्यार्थी सब अवाक्
ऑब्जर्व करो ,सावधानी से ऑब्जर्व करो , जरूरी हो तो समय लो , तब कुछ करो .
हो सकता है जिसे आपने अपराध समझ लिया हो और स्वयं पर बार बार आपको लज्जा आ रही है वह वस्तुतः अपराध हो ही नहीं .
अपने अपराध बोध को बाँटिये तो आप बहुत से अपराध बोधों से मुक्त हो जायेंगें .
अपने अनुभवों को नई पीढ़ी के साथ साफ साफ शेयर करेंगें तो नई पीढ़ी को बल मिलेगा ,
अपने अपराधों के बारे में ,गलतफहमियों के बारे में , गलतियों के बारे में , अपनी कमियों के बारे में अब तो दुनिया को बताते जाईये ,
शायद आपका कुछ तो अपराध बोध हल्का हो , नई पीढ़ी का भी कुछ भला हो जायेगा .
नये का आत्म-विश्वास बढ़ जाये तो आपका क्या जायेगा .
इस दुनिया से जाने के पहले अपने आपको महान  नहीं , साधारण दिखाते जाईये .
सन ६६ की बात है .नई स्कूल में मेरा दाखिला क्लास सिक्स में करवाया गया था .कलकत्ता की हिंदी मीडियम अच्छी स्कूल थी .हाल में ही ड्रील करवाई जाती थी .
हाफइयरली एग्जाम हुए .ड्रील का भी एग्जाम हुआ
सभी बच्चे कतार में बैठे थे .एक एक कर सामने बैठे एक्जामिनर के सामने लिफ्ट-राईट करते जाना था और सैल्यूट करना था . मैं भी गया ,सैल्यूट किया.
रिजल्ट आया . अकेला मैं ही ड्रील में फेल वह भी जीरो .
बड़ी निराशा .
पता ही नहीं चला ऐसा क्यों हुआ .
बादमें पता चला की मैं सरे काम बाएँ हाथ से करता थे ,और सैल्यूट भी मैंने बाएँ हाथ से कर दिया था.
उसी एक्जाम में मुझे ड्राइंग में भी शून्य ..
ज्योग्रेफी में विश्व के नक्शे पर कुछ भरना था ,रिजल्ट में ज्योग्रेफी में भी जीरो . रो रो कर बूरा हाल था .
खैर फईनल में मैं क्लास में थर्ड रहा .फर्स्ट शायद नाहटा ,सेकेण्ड शिव कुमार थर्ड मैं .
बाद के सेवेंथ क्लास में मैं हिंदी के शिक्षक उपद्याय जी से अनुस्वार के प्रयोगों के लिए अच्छी डांट सुनता था. नहीं लिखते समय मैं अक्सर अनुस्वार छोड़ देता था .एक आध बार मार भी पड़ी .
ये एक दाना गेहूँ है
दाना दाना गेहूं है
हर दाना ही गेहूँ है
हर दाना गेहूँ ही है

हर दाना गेहूँ है तो
यह गेहूँ है
नहीं तो यह कुछ भी हो
यह गेहूँ नहीं है .

यह गोदाम नहीं गेहूँ
यह बोरा नहीं गेहूँ
यह गद्दी नहीं गेहूँ
यह दाना गेहूँ है .

मट्टी का बेटा गेहूँ है
खेत में लेटा गेहूँ हैं
किसान का सपना गेहूँ है
उसका अपना गेहूँ है .


बोरे  तक तो मिहनत थी
गोदाम में तो बस लालच है
गद्दी में तो हेरा फेरी हैं
इन सब में न अपना गेहूँ है .
जीत नहीं सकता ,तो क्या मैं लड़ना छोड़ दूँ .
मंजिल नहीं मिलेगी ,तो क्या मै चलना छोड़ दूँ
तुम नहीं आओगे तो क्या मैं इंतजार करना छोड़ दूँ
तुम चिट्ठी नहीं पढ़ोगे तो क्या मैं चिट्ठी लिखना छोड़ दूँ
इस रास्ते कोई नहीं आता तो क्या मैं दिया जलाना छोड़ दूँ
वो किसी की नहीं सुनता तो क्या मैं पुकारना ही छोड़ दूँ
वह अब नहीं बचेगा तो क्या मैं उसका ईलाज कराना छोड़ दूँ
वह नहीं पढ़ेगा तो क्या  मैं उसे पढ़ाना छोड़ दूँ
वह नहीं सुधरेगा तो क्या मैं आस करना छोड़ दूँ
अब नहीं बरसेगा तो क्या मैं कृषि-कर्म छोड़ दूँ

मैं प्रयास करना नहीं छोडूंगा , तुम्हारे कहने पर भी नहीं
मुझे मैं खुद भी प्रयास करने से नहीं रोक सकता
मैं एक और प्रयास किये बिना नहीं रह सकता
मुझे मत रोको ,रोकोगे भी तो मैं नहीं रुकुंगा .
तुम इतना मुझे क्यों ताड़ते हो ,कुरेदते हो ,टटोलते हो -मुझे पढ़ कर क्या मिलेगा 
कम से कम इतना तो पुरुषार्थ करो ही कि तुम इतिहास को पीछे छोड़ सको और वर्तमान में इतना तो स्थान मिल ही जाये की भविष्य पूरी तरह से परमानेंटली डिलीट न कर दे
कुछ तो और कर के देखो तो सही ,कर सकते हो की नहीं .
कुछ तो ऐसा होने दो जो आज और अभी तक तो न था ,
किसी को इतना तो कहने दो ,यह तुम्हारे कारण संभव हुआ .
न सही , उन्हें यही कह लेने का अवसर दो -उसने अपने भर पूरा प्रयास किया.
प्रयास करने में क्या जाता है .
हाँ ,एक और प्रयास .
बस करते जाना है .
हारोगे ही तो सही , नहीं होगा -बस यही तो सही . नहीं होने दो - प्रयास को तो हो जाने दो .
दांत  पर दांत चढाओ -इस बार फिर एक प्रयास . 

Sunday, 14 September 2014

Yesterday is teacher, today is work and tomorrow- a challenge.
Yestarday is teacher, today is work and tomorrow- a chaleenge.
Now, Supreme Court Judges are also pleading for unanswerable freedom, liberty and Independence. 

In individual cases, the Apex Court repeatedly held that Nation’s importance is paramount than individual life, freedom and liberty; as such all the restrictions imposed upon fundamental rights in Part III of the Constitution of India are valid in larger interests of decent society,
. Indian Higher Courts order CBI Inquiry against politicians, bureaucrats and all who prima facie found to have involved in illegal acts of crimes, offences including corruption. Former and sitting CJIs categorically made it clear several times in recent past that corruption has become a major hurdle in Judiciary also. What action the Apex Court taken against alleged corrupt judges of various High Courts as well as Supreme Court to purify Judiciary?
.

Saturday, 13 September 2014

_()_
समर्थ लोग आरोपों के संदर्भ में अपने चुप रहने के विधि के अंतर्गत अधिकार का प्रयोग कर लेते हैं .वे इन परिस्थियों में आरोपों को इंकार करने के अपने अधिकार का प्रयोग कर झूठ बोलने तक से परहेज नहीं करते .

निरीह सीधे सादे लोगों कोआरोपों को प्रमाणित करने के दायित्व की आड़ में अपमानित किया जाता है , जिरह कर ,भद्दे तर्क दे और अंत में समर्थ लोग संदेह के लाभ के सुराख़ से अंतर्धान हो जाते हैं ,पाप मुक्त हो जाते हैं

.ऐसे समर्थ लोग आपस में एक होते हैं हैं और सभी एक दुसरे को अभय दान दते रहते हैं ,-केवल मेरे मन का हो जा ,जो मैं कहूँ बिना चिल्लपों हीला हवाल किये किये जा , मैं तुम्हे सारे आरोपों से बचा लूँगा .आज मैं तुम्हे बचा रहा हूँ कल तुम  मुझे बचा लेना .

क्या मजाल पञ्च की कुर्सी तक वे सर्व साधारण को पहुँचने देंगें .व्यास गद्दी उन्हीं के लिए -उन्हीं के द्वारा उन्हीं की  थी ,है ,रहेगी .


निरीह पीड़ित उनके इस खेल को समझता ही नहीं ,वह बहुप्रचारित सत्य की शक्ति पर विश्वास किये न्याय की आश करता है .

उसे पता ही नहीं यह बहुप्रचारित सत्य ही सब कुछ नहीं है ,

इन समरथ लोगों ने अपनी रक्षा के लिए कुछ नियम बना रखे हैं जिनका प्रचार प्रसार नहीं किया जाता , वे बस किताबों में रहते हैं और उनका प्रयोग समरथ  लोगों की रक्षाके लिए होते आया है .

इन नियमों की जानकारी सर्वसाधारण को नहीं दी जाती .

समर्थ लोग आरोपों के संदर्भ में अपने चुप रहने के विधि के अंतर्गत अधिकार का प्रयोग कर लेते हैं .वे इन परिस्थियों में आरोपों को इंकार करने के अपने अधिकार का प्रयोग कर झूठ बोलने तक से परहेज नहीं करते .

निरीह सीधे सादे लोगों कोआरोपों को प्रमाणित करने के दायित्व की आड़ में अपमानित किया जाता है , जिरह कर ,भद्दे तर्क दे और अंत में समर्थ लोग संदेह के लाभ के सुराख़ से अंतर्धान हो जाते हैं ,पाप मुक्त हो जाते हैं

.ऐसे समर्थ लोग आपस में एक होते हैं हैं और सभी एक दुसरे को अभय दान दते रहते हैं ,-केवल मेरे मन का हो जा ,जो मैं कहूँ बिना चिल्लपों हीला हवाल किये किये जा , मैं तुम्हे सारे आरोपों से बचा लूँगा .आज मैं तुम्हे बचा रहा हूँ कल तुम  मुझे बचा लेना .

क्या मजाल पञ्च की कुर्सी तक वे सर्व साधारण को पहुँचने देंगें .व्यास गद्दी उन्हीं के लिए -उन्हीं के द्वारा उन्हीं की  थी ,है ,रहेगी .


निरीह पीड़ित उनके इस खेल को समझता ही नहीं ,वह बहुप्रचारित सत्य की शक्ति पर विश्वास किये न्याय की आश करता है .

उसे पता ही नहीं यह बहुप्रचारित सत्य ही सब कुछ नहीं है ,

इन समरथ लोगों ने अपनी रक्षा के लिए कुछ नियम बना रखे हैं जिनका प्रचार प्रसार नहीं किया जाता , वे बस किताबों में रहते हैं और उनका प्रयोग समरथ  लोगों की रक्षाके लिए होते आया है .

इन नियमों की जानकारी सर्वसाधारण को नहीं दी जाती .
चुपचाप पहला कदम चल दिया , किसी को पता भी नहीं था ,और एक अनंत जीवन यात्रा शुरू हो चुकी थी .
आज तो कई आगे पीछे हैं ,कुछ साथ में हैं , कुछ विरोध में ,कुछ प्रतीक्षा में .
कितनो को किसी अनहोनी का डर सता रहा , तो कोई उस अनहोनी  को होनी हो जाने की जुगत में लगा , कोई यात्रा की सफलता मनाता  फिरता तो किसी को  सब कुछ एक षड्यंत्र , व्यवसाय ,नाटक , अनावश्यक , असंभव और न जाने क्या क्या लगता है .
पर जिसने विश्वास के साथ पहला कदम उठाया वह इन सबसे बेखबर बस अनंत यात्रा का अगला कदम उठाते जा रहा है , आगे भी चलते ही रहेगा ,स्तुति -निंदा से प्रे , संयोग वियोग से बेफिक्र , सहयोग -विरोध से अन्यमनस्क .
 I am bound to be understood according to the  understanding and mental and intellectual grooming of my readers or listeners. 
They  imagine something in order to get me, understand me and explain me .
They do this always as per their own choice,levels and mindset. 
Confusions and missings can always be there.
An open mind can be more receptive and positive.
If any one has access to me or mine, beyond my words he may intrepret in a different manner.
My deeds also tell a story.My history has a different version.
 I do not know how the reader is going to take and start. Choice is always his.
एक उपहार अप्रतिम , जो किसी को भी दुबारा नहीं मिला ,न मिलेगा -- यह जीवन
किसी के कहे को दुबारा कहने से मुझे क्या प्रयोजन  !
देनहार की जो दिखी देन ,झर झर बरसे मेरे नैन

वे बिन मांगे देत हैं ,हम बिन  समझे लेत

दे दिया सो बहुत है ,और की चाह  अब नाही
किया धिया तो है नहीं ,समरथ भी अब नाही

किया योग तो किया नहीं ,अकर किया सारा
जोड़ करूं तो कुछ है नहीं ,सारा जग मैं हारा .

समझण की जब बेर थी , तब तो समझा नाही
थिर हो जो अब बैठिये ,अब भी उलझा नाही .

Friday, 12 September 2014

Why do not you block me.? Why are you here? What for ?
Gandhijee, for all the Indians, restored  the universal right to touch and to be touched..
Fought to build india through one weapon- abolish untouchability.
What a great statesman he was !
_/\_

गांधीजी ने स्पर्श करने और किए जाने का हमारा मौलिक अधिकार पहचान कर उसे अस्त्र बना भारत निर्माण की नोवं डाली . उनहोंने हमें स्पर्श का अधिकार प्रदान किया , इसकी अवहेलना के विरुद्ध युद्ध भाव से संघर्ष किया , इसी भाव को हम आप कितना आगे बढ़ा पाते हैं , देखना है !.
_/\_
I am trying to start to learn. Please , be my teacher !
स्पर्श अतुल्य दान है , अत्याज्य अधिकार है , अन्यतम क्रिया है ,सबसे ब्यापक इन्द्रीय ज्ञान है . अनंत सुख है ,सर्वोत्तम सुरक्षा है ,स्पष्ट संवाद है ,सर्वजनिनं है ,सर्वकालिक है ,सर्वश्रेष्ठ अभिब्यक्ति है .
 Just do it. Planning, strategizing and weighing options all have important roles within a business. But there comes a point in time when you just have to do it. You know the quote: “Better to do something imperfectly than to do nothing perfectly.

There will always be people who are smarter than you. If you’re lucky enough to find these people, hire them. Focus on the things that you’re best at, and give them the freedom to do the same.
There will always be people who are smarter than you. If you’re lucky enough to find these people, hire them. Focus on the things that you’re best at, and give them the freedom to do the same.
Hire people who are smarter than you.
Work is life, and life’s too short to hate your work.
 Whole thing is about work-life integration. 
 Your personal brand will differentiate you from your competitors, give you authority and credibility in your field, and people will  stick with you in the event your company ultimately experiences failure.

 Build your personal brand as well as your company brand.
 Not all money is good money. This is a lesson many entrepreneurs struggle with early in their career. When you’re getting your business off the ground, it’s easy to fall into the trap of taking money from anyone who offers it. The problem is, not all customers or clients are worth it.
Avoid clients who take up too much of your time, who consistently have unrealistic expectations or who you just generally dread working with. It’s just not worth it!

Ask yourself: What would be a fair wage for the tasks I perform? If someone else can competently accomplish these tasks for less money, let them do it so you can focus on higher level, revenue-generating tasks. As anentreprenure/ business owner, you should only do the tasks that only you can do.
Time, however, is the one commodity you’ll always have a finite amount of.
Time, however, is the one commodity you’ll always have a finite amount of.