Tuesday, 30 September 2014

हर सुबह दीया बुझा देते हैं वे ही हाथ
जिन्होंने साँझ होते होते दीया जलाया था

मेरे हिस्से का सूरज चुरा ले जाते हैं वे ही हाथ
जिन्होंने मुझे और मेरे सूरज को पहले जगाया था .

ओस की बूंद सूरज की किरण चढ़ वापस लौट गयी
मुझे प्यासा खड़ा छोड़ वहीं ,समन्दर जहाँ बनाया था

आग का दरिया है ,पर मैं जलता नहीं हूँ अब
ओट कर दी है उसी ने ,आंचल जिसने ओढ़ाया था

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