Friday, 19 September 2014

मैं समझ पा रहा हूँ ,भोर होने को है , रौशनी हो चली है और तुम डर  रहे हो ,डरते जा रहे हो ,डर चुके हो -
तुम्हे छिपने के लिए अँधेरा अब कहाँ मिलेगा , तुम्हे छिपाने वाला अँधेरा तो अब खुद बेघर हुआ भाग चला है .,
मैं तो तुम्हे अभयदान देने से रहा ,दे भी सकता तब भी नहीं देता

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