बहरहाल कविता अपनी मौत के कदमों की आहट समझती है।
कविता यदि केवल सुंदर , मनोरंजक ,उत्तेजक , आकर्षक हो और उसे छंद-अनुप्रास-अलंकार के ऐतिहासिक आभूषण सीधे पिंगल शास्त्र के के खजाने से निकाल कर पहना उढ़ा कर समाज में ले आईये , आज का समाज उसे स्वीकार नहीं करेगा जब तक की उसे समाज की समस्या , सरोकार , नित्य उपलब्ध नवीं ज्ञान ,विज्ञानं ,और सबसे उपर सामाजिक ,आर्थिक , सांस्कृतिक उपयोगिता से नहीं जोड़ा जायेगा .
रीतिकालीन कवियों ने तो काव्य-विन्यास का प्रदर्शन करते करते कविता को तो मार ही डाला था -
द्रुत-विलम्बित,,म्द्ग्यन्द , मात्रा ,श्लेष सौ पचास डाक्टरेट करने वालों के तो काम की चीज हो सकती है -
समाज तो बेतुका दर्द-आख्यान, सहभागिता ,कवि का समाज से जुड़ाव ,कविता के माध्यम से बच्चों को कुछ पढ़ा पाने का अर्थ , या सत्ता के शीर्ष पर बैठे मठाधीशों को चिकोटी काट जगाने वाली कविता , या हिम्मत हारी जनता को नया सन्देश दे पाने वाली कविता खोजता है.-
अब समाज के पास पढने ,सुनने ,समझने के लिये बहुत कुछ है , समाज पहले वह सब पढ़ेगा .
वैसा ही पठनीय कुछ कविता में भी खोजने का समाज का अधिकार है .
कथित कवि सैकड़ों साल पुरानी कविता -कला में कोई अन्तर क्यों नहीं करना चाहते ? .
कविता क्या कवि की , कवि के लिये ,कवि के द्वारा समझने , वाह वाह,इरशाद ,बेहतरीन आदि विशेषणों के लिए रची जाती है.
यदि हाँ ,तो उसे कवि समाज को संभाल कर रखना चाहिए.
अथवा नये समाज को समझें.
कविता यदि केवल सुंदर , मनोरंजक ,उत्तेजक , आकर्षक हो और उसे छंद-अनुप्रास-अलंकार के ऐतिहासिक आभूषण सीधे पिंगल शास्त्र के के खजाने से निकाल कर पहना उढ़ा कर समाज में ले आईये , आज का समाज उसे स्वीकार नहीं करेगा जब तक की उसे समाज की समस्या , सरोकार , नित्य उपलब्ध नवीं ज्ञान ,विज्ञानं ,और सबसे उपर सामाजिक ,आर्थिक , सांस्कृतिक उपयोगिता से नहीं जोड़ा जायेगा .
रीतिकालीन कवियों ने तो काव्य-विन्यास का प्रदर्शन करते करते कविता को तो मार ही डाला था -
द्रुत-विलम्बित,,म्द्ग्यन्द , मात्रा ,श्लेष सौ पचास डाक्टरेट करने वालों के तो काम की चीज हो सकती है -
समाज तो बेतुका दर्द-आख्यान, सहभागिता ,कवि का समाज से जुड़ाव ,कविता के माध्यम से बच्चों को कुछ पढ़ा पाने का अर्थ , या सत्ता के शीर्ष पर बैठे मठाधीशों को चिकोटी काट जगाने वाली कविता , या हिम्मत हारी जनता को नया सन्देश दे पाने वाली कविता खोजता है.-
अब समाज के पास पढने ,सुनने ,समझने के लिये बहुत कुछ है , समाज पहले वह सब पढ़ेगा .
वैसा ही पठनीय कुछ कविता में भी खोजने का समाज का अधिकार है .
कथित कवि सैकड़ों साल पुरानी कविता -कला में कोई अन्तर क्यों नहीं करना चाहते ? .
कविता क्या कवि की , कवि के लिये ,कवि के द्वारा समझने , वाह वाह,इरशाद ,बेहतरीन आदि विशेषणों के लिए रची जाती है.
यदि हाँ ,तो उसे कवि समाज को संभाल कर रखना चाहिए.
अथवा नये समाज को समझें.
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