Saturday, 13 September 2014

समर्थ लोग आरोपों के संदर्भ में अपने चुप रहने के विधि के अंतर्गत अधिकार का प्रयोग कर लेते हैं .वे इन परिस्थियों में आरोपों को इंकार करने के अपने अधिकार का प्रयोग कर झूठ बोलने तक से परहेज नहीं करते .

निरीह सीधे सादे लोगों कोआरोपों को प्रमाणित करने के दायित्व की आड़ में अपमानित किया जाता है , जिरह कर ,भद्दे तर्क दे और अंत में समर्थ लोग संदेह के लाभ के सुराख़ से अंतर्धान हो जाते हैं ,पाप मुक्त हो जाते हैं

.ऐसे समर्थ लोग आपस में एक होते हैं हैं और सभी एक दुसरे को अभय दान दते रहते हैं ,-केवल मेरे मन का हो जा ,जो मैं कहूँ बिना चिल्लपों हीला हवाल किये किये जा , मैं तुम्हे सारे आरोपों से बचा लूँगा .आज मैं तुम्हे बचा रहा हूँ कल तुम  मुझे बचा लेना .

क्या मजाल पञ्च की कुर्सी तक वे सर्व साधारण को पहुँचने देंगें .व्यास गद्दी उन्हीं के लिए -उन्हीं के द्वारा उन्हीं की  थी ,है ,रहेगी .


निरीह पीड़ित उनके इस खेल को समझता ही नहीं ,वह बहुप्रचारित सत्य की शक्ति पर विश्वास किये न्याय की आश करता है .

उसे पता ही नहीं यह बहुप्रचारित सत्य ही सब कुछ नहीं है ,

इन समरथ लोगों ने अपनी रक्षा के लिए कुछ नियम बना रखे हैं जिनका प्रचार प्रसार नहीं किया जाता , वे बस किताबों में रहते हैं और उनका प्रयोग समरथ  लोगों की रक्षाके लिए होते आया है .

इन नियमों की जानकारी सर्वसाधारण को नहीं दी जाती .

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