Friday, 19 September 2014

हर घर के लिए नक्शा बनाया ही जाये जरूरी तो नहीं
इंट, मट्टी ,फूस,परिवार की मिहनत,बस घर बन गया
घर बसा , घर बना ,हंसी बसी, गाँव  बसा ,बसाया गया
केवल कागज पर खेंची लकीरों ने कभी कोइ घर बनाया?

कवि यदि कवि के लिए लिखे , तो सजे छंद ,अलंकार
सबके लिए जो कवित्त रचे , तो क्या करे छंद अलंकार .
भोजन जो सुभोजन हो , तो क्या करे पत्तल के श्रृंगार
चित्र चढ़ी पत्तल क्या करे , जो न भोजन न व्यवहार



रीतिकालीन कविताएँ पिंगल शाश्त्र तथा काव्य  शाश्त्र के  दारुण बंधन में रह कर समाज का कौन सा भला कर सकीं -दादू ,सहजो-बाई , भिखारी ठाकुर ,ने क्या साहित्य की सेवा नहीं की .

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