Tuesday, 16 September 2014

फिर फिर घिर आती है ये घटायें स्मृतियों की
खट्टे-मीठे ,तीते-नमकीन रोते -हंसते बचपन की .

बचपन तेरा हो या मेरा , सबका एक जैसा होता है
हाँ रे पगले , बचपन ऐसा ही ,बस ऐसा ही होता है

बचपन कुछ खोता रहता है ,शायद वह बचपन ही होता है
बचपन कुछ लुटता रहता है , हाँ , वह बचपन ही होता है .

कल का बचपन , अब लूटता बचपन
बचपन को बचपन कौन कहता है .

No comments:

Post a Comment