Saturday, 10 June 2017

तुम आये , अच्छा लगा ,
कम से कम वह कमरा जगा तो सही
वह बेड आज भर अकेला न रहा
डाइनिंग टेबल पर साथ बैठे तुम - सोह रहे थे
शायद खाना तीखा था , तुम सी सी किए जा रहे थे
बस मुझे आखिरी एक और रोटी देकर मजा आ गया।
पर , अखर गया सुबह का तुम्हारा यूँ उठ जाना
आठ बजे तक टाँग फैला निश्चिन्त न सो पाना
मैं कितने अरमान से झाँक रहा था कि तुम्हें उठाऊंगा
बस अच्छा नहीं लगा कि अहले सुबह आँख तुम्हारी खुली थी
काश ! तुम झूठमूठ ही सही आँख बंद किये पड़े ही रहते
मेरे उठाने पर भी न उठते
कहते ,अभी और सोने न दो
आज बड़े चैन की नींद बहुत दिनों के बाद यहाँ आई है

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