Saturday, 24 June 2017

कब तक केवल इतिहास से बदला लेने की रणनीति बनाते रहोगे।  इतिहास में बहुत कुछ है सितम के सिवा। इसी इतिहास में हमारे आपकी पसीने की गंध मिली पैसि हुई है।
कितनी नादानियाँ , कितनी पीढ़ियों की शरारतें , कितने मिलेजुले सपने , कितनी हसरते , कितने फुट पड़े ज्वालमुखियों का लावा , एक एक कदम चलता  सदियों तक फैला यह मंजर - देखोगे तो बहुत कुछ है आगे ले जाने को।
न कुछ मिटा है , न कुछ मिटेगा।  न्य बनते जाने से न तुम रोक सकते हो न मैं। है मैं तुमसे या तुम मुझसे डरते रह सकते हो।  मैं तुमसे व्य तुम मुझसे बदला लेने की बरसों पीछे से बरसों आगे तक की कभी न खत्म होने वाली कवायद करते रह सकते हो।
विवेक तुम्हारा और हमारा साझा।  इतिहास भी था साझा।  आगे भी रहेगा साझा।  तय तुम्हे और मुझे ही करना है हम अब और अब से आगे कैसे रहेंगे।
हाथों में तलवार लहराते न मैं जी सकता न तुम।  खंजर के मंजर कभी सकूं और बहार , कामयाबी और रौशनी तो नहीं ही ला सकेंगे।  ये सुल्तानों की अहमक सनक है - जो अपनी अपनी सनक और सल्तनत के लिए हमारी शांति से खेल रही है।
आओ हम सब बच सके तो बचें।
 बदला लेने के उकसावे से बचे।
इतिहास तो इतिहास है ; उसे उखाड़ने से बचे।
अपना आज नया  इतिहास बनाने में लगावें। 

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