Monday, 26 June 2017

उनके पास तो कुल वंश परम्परा वाले बहुत से लोग है जो केवल विरुदावली गा गा कर ही जीवन गुजार लिये या गुजार सकते हैं या हर स्वयंवर में उपस्थित हो पहला अवसर खोज सकते है या किसी की कुल वंश परम्परा पर अशोभनीय प्रश्न पूछ सकते हैं।  
अमुक के पौत्र , अमुक के बेटे , अमुक के नाती , अमुक की बेटी , अमुक के दामाद , अमुक के..........

औरों की तो जिंदगी ही खत्म हो रही खट  खट कर काम कर अपनी पहचान बनाने में। हर सवाल ( वे कुलीन है जैसे चाहे जो चाहे , जब चाहे , जिससे चाहे सवाल पूछे ) का हर बार ( बिना चूँ  चप्पड़ किये )  जबाब देने में; वह भी पूछने वाले की स्टेटस को ध्यान में रख दरबारी लहजे में - नहीं तो बोलेंगे ससुरे को बोलना ही नहीं आता , फटहा लेखा बोलता है। 

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