Saturday, 17 June 2017

जेल की खिड़की से
तुमने कैदी को
ये क्या दिखाया
और क्यों यही दिखाया।
निराश था कैदी
खिड़की तक आ ही गया था
तो - खिड़की से ?
तुमने दिखाया यह ठूँठ ?
तिस पर भी यह जला हुआ ?
कहीं एक फुनगी तक न दिखने को छोड़ी ?
कोई चिड़िया कहीं कोइ घोसंला न बना ले ?
जीवन से इतनी चिढ़  क्यों ?
तुम तो एक कवि  हो
निराश नहीं होते !
फिर इतना शान्त नैराश्य !!
क्यों , अज्ञेय ! क्यों , कुछ तो बोलो 

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