Saturday, 10 June 2017

मेरे यश को भंजाने की इत्ती जल्दी !
जब मैं सुखी जमीन जोत  रहा था -
कड़ी धुप में जला जा रहा था
बदन श्याह और सूखा जा रहा था
या फिर
जब आंधी तूफान में भींगा जा रहा था
गला जा रहा था, या डूबा जा रहा था
शायद तुमने देखा भी था
मेरी लहू लुहान हथेलियाँ ,
बिवाई फ़टी एड़ी
बुखार से तपता  मेरा शरीर
रात रात   जगती आँखे
बन्द सी हो चुकी रक्त शिराएं
पर उस वक्त तुम न आये ,
देखा तो था तुमने पर तुम्हें दिखा ही नहीं
सुन कर  भी तुमने सुना नहीं
मेरी भूख तुम्हें महसूस क्यों होती ?
मेरी प्यास  अपनी थी न !
मेरा दर्द मेरा , मेरी पीड़ा मेरी !
शायद तुमने मुझे यही था न
की भूख , प्यास ,दर्द आपका , आप भोगें।
आज तुम यहाँ  कैसे?
अच्छा सुनहरी अनाज की बालियाँ  तुम्हें दिखने लगी !
मेरा यश तुम्हे दिखने लगा !
मेरी जयकार तुम्हें  दिखने लगी !
अच्छा ???

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