Tuesday, 13 June 2017

मारवाड़ी सम्मेलन से मेरा पहला परिचय १९७३ के आस पास।
मैं कलकत्ते से विस्थापित हो तृणमूल हीन सब विधि त्यक्त अपने ननिहाल में शरण लेने को विवश हुआ।  मेरे सारे छोटे से परिवार का मनोबल टुटा हुआ था।
मैं ननिहाल की कपडे की दुकान पर बैठने के लिए आदेशित हुआ। कुछ ही दिनों बाद सम्मेलन के  प्रचारक नवेन्दु शुक्ल ननिहाल की दुकान पर गया होते हुए पहुंचे।  ननिहाल वालों की और से ठंडा रिस्पॉन्स उन्हें मिला। उन्होंने शहर में स्थित अन्य समाज के लोगों तक जाने की इच्छा प्रकट की। मुझे कहा  गया की मैं उन्हें दो चार लोगों के यहॉँ पहुंचा दू. .
बस यही मेरी और सम्मेलन की पहली साझा यात्रा थी।
कलकत्ते से हायर सेकेंडरी कर  के आया था।  बिहार के बारे में कुछ नहीं जानता था।  समाज क्या है , कैसे बनता है ,कितना बड़ा है ,उसकी क्या ब्यापकता है , क्या उपयोगिता है , किताबों या शिक्षकों से जाना था।
जैसे ही ही नवेन्दु जी के साथ दूकान से उतरा , लगभग बाल शुलभ जिज्ञासा से मैंने नवेन्दु जी से कई प्रश्न जल्दी जल्दी  पूछ डाले।  क्यों , कहाँ से , किस लिए , यह क्या होता है , इससे क्या लाभ।  आदि।
उन्होंने मेरी भूख तथा शायद स्थिति को समझ लिया।
उन्होंने सामाजिक संगठन , समाज , मारवाड़ी समाज , और कुछ लोगो का नाम लिया था।  वे अनुभवी और उत्साहवं प्रचारक थे , आज मेरी यह धारणा  बनती है।  सम्मेलन के प्रति मेरी जिज्ञासा के कारण वे ही थे।

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