Friday, 23 June 2017

RSS को कांग्रेस ने जीवित रखा , उसे ताकत देते रहे ताकि कुछ लोगों को कुछ समझाया जा सके ,पर कांग्रेस को मात्रा-विज्ञानं का ज्ञान था , डोज कब, किसको , कितनी देनी है और कब भूखे उपेक्षित छोड़ देना है अतः RSS को   हद में रखने में कांग्रेस वाले समर्थ रहे।
काल क्रम में RSS  के साथ अन्य लोग भी यही खेल खेलने लगे की वे भी खास लोगों को समझावेंगे।  उन्होंने समझाया भी।  पर RSS पर अधिक तवज्जह  दे गये , मात्रा का ख्याल नहीं रख सके , RSS की उपेक्षा करने की कला नहीं जानते थे - यहाँ  तक की खुद भी RSS  के वैसे ही समझने लगे जैसे कांग्रेस ने RSS  से कुछ लोगों को समझाया था। अब RSS को सभी जगह सभी लोग जानने समझने लगे वैसे ही जैसे कांग्रेस ने शुरुआत में समझाना  शुरू किया था। यहाँ कांग्रेस के लिए दुविधा पैदा हो गई। वह अब सार्वजनिक रूप से यह कह नहीं सकती थी की RSS  का तो मैंने हौव्वा खड़ा कर  रखा था कुछ खास लोगो को समझाने के लिये।
अब आरएसएस शक्तिशाली हो चला।  इसी बीच आडवाणी , मोदी आगे आये।  फिर कांग्रेस ने चतुराई से काम ले पहले आडवाणी का हौव्वा खड़ा कर खास लोगो को फिर समझाया।  एक बार सफल भी हुए।अन्य लोग भी कांग्रेस की देखा  देखि आडवाणी से खेलने लगे।  कांग्रेस को तो मात्रा का अनुभव था पर अन्य लोगों को नहीं। कांग्रेस को तो पता था की RSS विरोध से ही शक्ति प्राप्त करती है।
मोदी विरोध का भी यही हाल  हुआ।
जितना प्रखर गैरअनुपातिक विरोध करोगे उतना ही शक्ति आप अपने विरोधी को  देते चले जाओगे।
अभी कोविन्द  को जनता के बीच चर्चा का  विषय बना फिर एक बार ऐतिहासिक गलती कांग्रेस पक्ष के लोग करेंगे।
राष्ट्रपति चुनाव में जनता की इतनी रूचि ही तो RSS की योजना है।  इसी कारण तो आरएसएस ने प्रथम उपलब्ध अवसर कोविंद जी के नाम कर  दिया और जन संवाद का नया अवसर पैदा कर  लिया। इस संवाद को जितना प्रखर- ब्यापक बनने देगा, जनता तक पहुंचने देगा ; कांग्रेस खेमा , उतना ही अपना ही अहित करेगा। 

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