Friday, 30 June 2017

एक ही दिन दो हिस्ट्री शीटर पुलिस इनकाउंटर में एक ही प्रान्त के दो हिस्सों में मारे गये।
दूसरे दिन अखबारों में निकला -
 ' दुर्दांत अपराधी  ---------- मारा गया '    ****    ' कई केसों में वांछित -------------- मारे  गये '
यह होता है जाति प्रभाव। 
कुकर्म ,कुतर्क आदि करने की योग्यता , बातों को गोल गोल घुमाने की क्षमता और खुद निष्क्रीय रह दूसरे का श्रम -फल भोगने का षड़यँत्र करने वाला , आत्मश्लाघा में लिप्त, दुराग्रही जब ब्यवस्था के केन्द्र में स्थापित हो जब ढोल-गँवार---- की घोषणा बेशर्मी से करे और पूजीये .... ग्यान -शील हीना का पाठ पढ़े तो जो वाद जन्म लेता है वही ".......... वाद " है ।

Thursday, 29 June 2017

एक सफाई कर्मी ने आपका , समाज का भला किया , सेवा की , आपको सुख दिया , सुरक्षा दी ,अपना जीवन जोखिम में डाला।
बदले में आपने क्या दिया।
उसे अपमान दिया , जीवित रहने भर ही मजदूरी दी। नीच कहा।  उसके कुल -परिवार को एक ऐसी सामूहिक संज्ञा दे डाली जिसे आप हेय -घृणा -दुर्दिन का परिचायक , गाली , श्राप मानते है।
आपकी सेवा करने वाले से आप ऐसा ही बर्ताव करते है।  ऐसे सेवक के पुरे परिवार का बहिष्कार कर  डालते है।  उसे ऐसी परिस्थिति में जीने के लिए विवश करते है की वह  आपके लिए केवल नई सफाई कर्मी  की  नस्ल ही पैदा करता रहे।  आप उसे मुख्य धारा के आस पास भी फटकने नहीं देना चाहते।
सेवा परमो धर्मः , परन्तु सेवक  परम् अधमः ।
बोलने में सेवा का फल मेवा - पर वास्तव में सेवा का फल धिक्कार - असहयोग - बहिष्कार -अपमान - भूख। 
बात एक कदम आगे बढ़ी और मैं धन्य हो गया।
आपका उपकार  _/\_
अन्याय और अपमान को पहचानने , समझने और उसको भोगते हुए उसकी पीड़ा तक पहुंचना सभी के लिये  सम्भव नहीं होता - सभी को वह सलाईयत कहाँ !
यदि मुझे सम्मान देने में आपको इतना संकोच होगा तो मेरे सारे , मैंने कहा 'सारे' विकल्प खुले।  हमारा गिरवी रखा सम्मान ,समता का अधिकार हमे मिलना चाहिये - यही हमारा खूंटा ,यही धर्म , यही मर्म  
तब तक जब आप हमारे विरुद्ध न जायें।  हमारा अपमान करने वाला हमारा कैसे।  हम आपके यदि आप होंगे हमारे।  यदि आप नहीं हमारे तो हम नहीं आपके।  हमें किसी खूंटे से बाँध क्र अब नहीं रख सकेंगें।  आप बने हमारे तब हम बनेंगें आपके।  हम क्यों अधम , नीच ,पापी , पातकी , और आप कैसे हमारे मालिक। 
मैंने प्रत्यक्ष देखी है , एकाधिक बार देखी है।  कहीं कहीं  मैंने खुद चरणरज को सर पर रखने की शर्त को भोगा भी है 
इस ओर या उस ओर  !!
अब दुबारा गले में घंटी नहीं
बराबरी के बिना कुछ भी मंजूर नहीं 

Wednesday, 28 June 2017

मुझे कुन्ती बनने से बचाओ ,  मैं नहीं चाहती बिन ब्याही माँ बनना ,
कोई  कौमार्य हर ले ,मुझे भोगे , मैं कत्तई इसके लिये तैयार नहीं।

मुझे सीता बनने से बचाओ , पहले जनक पर हुई भार , कष्ट हुआ
वन गई , रावण ने हरी ,राम ने त्यागा , पवित्रता पूछी , कष्ट हुआ।

अपनी ही खून पसीने  बनाया था जिसे वही दरवाजे आंगन अब  मेरे अपने लिये  ही  बन्द मिलते है। 
यह अब मेरा , यह तुम्हारा।

तुम अपनी जानो।
मेरे से कोई सवाल मत पूछना।

हाँ , यह भी अब मेरा , तुम्हारा था तब भी ; अब मेरा , जैसे समझना हो वैसे ! यह  मेरा।।।

इतने के बाद रह ही क्या जाता है।
"हमारा"  का अपहरण  गया।
तिरष्कृत , अब "हमारा" जाये तो जाये कहाँ ?
जब उन्हें कोई केंद्र के केंद्र में प्रतिष्ठित होने में मदद करने से इंकार कर देता है , तब गुस्सा आ ही जाता है।
जब कोई उनके केंद्रीय दावे को स्वीकारता प्रतीत होता है तो उन्हें प्रसन्नता होती है , वे उसके लिए बिछते जाते है। जैसे ही  कोइ इस प्रसंग में उनकी अनदेखी करता है या उनको उनके केंद्रीय विकल्प की यद् भी दिलाता है तो उन्हें गुस्सा आता है , उनकी आंतरिक महत्वाकांक्षा का पौधा कुम्हला सा जाता है। 
प्रावधान बनाना ही तो राजनितिक अधिकारिता का प्रयोग है।  प्रावधान भगवान थोड़े बनाता है।  और सरकारें है किस बात के लिये।  देश की जनता जिसे भारत-रत्न समझे उसको समझना , करना सरकार का काम है।  यह तो केबिनेट क्र सकता है। 
भारत रत्न के निर्णय राजनैतिक होते है , ब्यवहारिक  नहीं , भावनात्मक नहीं।  
भावनात्मक नहीं वर्तमान परिस्थितियों में राजनैतिक निर्णय हो सकता है 
बदमाश कहीं के - जो वादा किया था वो क्या हुआ 
संविधान की मूल प्रति जिस पर संविधान सभा के सदस्यों के भी हस्ताक्षर है और जो हस्तलिखित है पर कतिपय चित्र उकेर कर उससे जुड़े आख्यान को सम्मान तथा विशिष्टता दी ही गयी है - वेदों के रचयिता क्या बिलायत के रत्न थे , या अफ्रीका के रत्न थे।  उन्हें सम्मानित करने में असहजता क्यों। 
सेना पर अश्रद्धा दिखाने वाले  को आइना दिखाने इतना तो हमारी श्रद्धा के प्रतिफल स्वरूप ही कीजिये।  देश की एकमात्र रत्न संस्था। 
राष्ट्र गीत के रचयिता भारत रत्न क्यों नहीं अब तक ?
भारतीय सेना को भारत रत्न पुरुस्कार से आभूषित क्यों नहीं किया जा सकता ?
अद्भुत शब्द सौंदर्य एवं शक्ति , नव सृजन के प्रति ममत्व और बीज की अनंत साधना में अटूट विश्वास ही नए की रक्षा करता है ,
लोहिया ने कांग्रेस का विकल्प खोजा , लोहिया वाद जन्मा।
इंदिरा ने भारत का ही विकल्प खोजै ,  इमरजेंसी  जन्मी।
इमरजेंसी के सताये लोहियावादियों ने जनता पार्टी जन्मी।
भ्र्ष्टाचार के सताये परहेजी खूब लड़े , जनता दल जन्मा।
करोल बाग में सिख मारे , भागलपुर में मारे मुसलमान 
लोहियावादियों ने मिल संघर्ष किया ,सरकारें बदल डाली
रथ को रोका , गोली चलाई ,नई लकीर ही खींच तो डाली।
बड़ा मोहक मनमोहक हर्षद मेहता ,लक्खूभाई , चंद्रास्वामी।  '
नरसिम्हा राव ने सोरेन , रामलखन मिला सरकार बचाया।
मनमोहन ने कोयला , कॉमनवेल्थ टूजी से सरकार चलाया।
 लाल ,हरा ,लोहिया  सब को लाके , सबको काला खूब चटाया।


  

Tuesday, 27 June 2017

नोटबंदी कर दुश्मनों को जन्म दे बैठी 
हाँ ,प्रकाश ही तो है अंधकार का हत्यारा।
तो सब ओर सब कुछ था अँधेरा पसारा।
 न होती भोर तो ,कुछ अब भी न होता
अँधेरा मजे से सब कुछ छिपाये सोता।
अँधेरा तो सर छिपाये फिरा मारा मारा
सब आया सामने जब हुआ उजियारा। 
देश के आजादी के , टुकड़े के पैरोकारों को आज ईद पर मिला ईरान का सहारा - मारो बच्चों ताली , बोलो आजादी लेके रहेंगे।
स्टीम शिवम सुंदरम हटा के रहेंगे।  सत्यमेव जयते हटा के रहेंगे। राष्ट्र गान , राष्ट्र गीत को आजादी-टुकड़े को समर्पित करके रहेंगे। 
सत्यमेव जयते , भारत के राष्ट्रिय चिन्ह में से आजादी और टुकड़े के लिये हटाया जा चूका है -न आजादी के पैरोकारों द्वारा।
आज कल केवल सैनिकों की ,पुलिस वालों की हत्या कर, या बंगालवीर या केरल वीर या आजादी केम्पस में पढ़ रहे टुकड़े चालीस की उम्र के विद्यार्थी मानवाधिकार-रत्न पुरस्कार  लेने वाले ही घर में रह सकते है। 
उसके पहले घंटों हाथ पर हाथ धरे -
अजगर करे न चाकरी ही होता था
या सब के दाता राम राम होता था 

Monday, 26 June 2017

नोटबंदी ने तो बड़ा दुःख दीन्हा ,
रोए - धोए तक भी नहीं दीन्हा !
अहंकार किस का रहा है - भगवान के प्रत्यक्ष प्रतिनिधि गण नारद , गरुड़ , हनुमान , लक्ष्मण , बलराम , ध्रुव , प्रह्लाद , स्वयं राम-कृष्ण - सीता-राधा -सती  सावित्री ,दुर्वाशा।  गणेश - किसी का भी नहीं। 
कश्मीर में , बस्तर में सुकमा में भीड़ के आड़ में पिटती ( पिटवाई ) जाती , पुलिस और सेना
बच्चों , महिला , छात्र -छात्रा की आड़ में बनती , बनाई जाती , बनवाई, उकसाई  जाती भीड़।

इन्हीं बच्चों , महिला , छात्र -छात्रा की आड़ में छिपती , मारती ,काटती नारे लगाती  भीड़
और कैम्पस में टुकड़े होने की आश  में जश्न मनाते , सेमिनार करते क्लासिकल इंटेलेक्चुल।

कहीं किसी कोने में युवकों की मनबढ़ू हरकतों से आया था उबाल , बहा था खून , शांत हो गया
उन्होंने कागज -पट्ट -शिलायें लिख दी - आज भीड़ के हाथों कानून का सरे आम कत्ल हो गया।


आभार , सहृदय !
किसान अपने परिवेश से ही प्रेरणा लेगा। कृषि संबन्धी चर्चा करेगा , लेन देन - संग्रह-सलाह , दान -विज्ञानं , त्यौहार , पूजा ,पर्व ,पात्र , पहनावा, सोच- विचार - रूचि , कला -संस्कृति , सब उसकी वृत्ति एवं परिवेश के अनुरूप हो जाता है।
 यही बात ब्यापारी के साथ होती है , वृत्ति और परिवेश- गति-संगति ,  अभाव -प्रभाव , मिजाज और एतराज को निर्धारित -प्रभावित करते है।
अमूमन हर शब्द, क्रिया , प्रतिक्रिया ,परिवर्तन , परावर्तन , आवृत्ति , पुनरावृति , पर बरसों के अभ्यास -विरति , निवृत्ति -प्रवृत्ति , शिक्षण -प्रशिक्षण , अवलोकन -अध्ययन , स्वास्थ्य -अवस्था का स्पष्ट प्रभाव होता है।
मैं भी इससे अछूता नहीं हूँ। सुगम नहीं रह पाता हूँ।

तुम उपकार रमेशहिं  कीन्हा .
पोस्ट शेयर करि यश दीन्हा 
इतिहास कुल वंश नहीं केवल पुरुषार्थ ही गाता है। वनगमन कथा , ताड़का वध , रावण वध ही गाता है - किसी राजा की भब्यता इतिहास की विषय वस्तु नहीं होती नहीं।
वह रीतिकालीन श्रृंगारोन्मत्त विकृति का हिस्सा हो सकता है , कुमारशम्भवम का हिस्सा हो सकता है , भावी पीढ़ी को बताये जाने वाले इतिहास में तो ऊपर कहा पुरुषार्थ , महाराणा पुरुषार्थ , शिवाजी पुरुषार्थ , कोलंबस पुरुषार्थ , मैग्लेन पुरुषार्थ , वराह मिहिर -वाणभट्ट  पुरुषार्थ ही स्थान पायेगा। 
उनके पास तो कुल वंश परम्परा वाले बहुत से लोग है जो केवल विरुदावली गा गा कर ही जीवन गुजार लिये या गुजार सकते हैं या हर स्वयंवर में उपस्थित हो पहला अवसर खोज सकते है या किसी की कुल वंश परम्परा पर अशोभनीय प्रश्न पूछ सकते हैं।  
अमुक के पौत्र , अमुक के बेटे , अमुक के नाती , अमुक की बेटी , अमुक के दामाद , अमुक के..........

औरों की तो जिंदगी ही खत्म हो रही खट  खट कर काम कर अपनी पहचान बनाने में। हर सवाल ( वे कुलीन है जैसे चाहे जो चाहे , जब चाहे , जिससे चाहे सवाल पूछे ) का हर बार ( बिना चूँ  चप्पड़ किये )  जबाब देने में; वह भी पूछने वाले की स्टेटस को ध्यान में रख दरबारी लहजे में - नहीं तो बोलेंगे ससुरे को बोलना ही नहीं आता , फटहा लेखा बोलता है। 
हमारे पोकरण द्वितीय के डेटा  , उनकी मार्शलिंग , उनसे प्राप्त कतिपय निष्कर्ष आज भी हमारी सबसे मूल्यवान सुरक्षा करने योग्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर की अद्भुत बौद्धिक सम्पदा है - उन्हीं  डेटा के आगे अध्ययन से अविश्वसनीय अमूल्य बौद्धिक सम्पदा का हमारे वैज्ञानिक निर्माण किये जा रहे हैं। 
आपात काल के दिनों में ही तो  आपने मुझे देखा था , मैंने भी आपको देखा था 
सभी के साथ सदा खुश -प्रसन्न  रहें 
मैं देखूंगा तो नहीं यह सही है , फिर भी उस वक्त तुम अवश्य आना।  तुम आवोगे ही , इसी भरोसे जाऊंगा।
जाना तो है ही , पर जाने में कोई थ्रिल ही नहीं होता अगर मेरे जाने के बाद तुम्हारे आने का पक्का भरोसा न होता।
आना न !
आओगे न !
बस इसी भरोसे पर  मैं जाने के लिये तैयारी कर  ही लेता हूँ। 
पतली चमड़ी वाले ब्यापारी को राजनीति नहीं करनी चाहिये - इस रास्ते बड़े बड़े तीखे कांटे और धारदार हथियार बिखरे -लटके - नाचते -नचाते मिलेंगे। राजनीति में विनम्रता -प्रेम -प्यार - केवल नहीं चलता। भेद है भाई !
पतली बर्दास्त करने की क्षमता वाले राज पुरुष को ब्यापार नहीं करना चाहिए - ब्यापार में ऐसा कुछ कभी भी नहीं  होता कि हुक्म दिया और हाजिर और सब आपके मन से। ब्यापार में धौंस नहीं चलती। बर्दास्त करना है !

केजरीवाल जी की राष्ट्रपतीय उम्मीदवारी के बिना भारत का राष्ट्रपति चुनाव एक मिली-भगत चाल भर रह गया है , निरर्थक हो गया है ,बदमजा हो गया है। 

Sunday, 25 June 2017

तुम्हारी गुप् चुप बातें छुपती नहीं है।  दीवारें बोल ही जाती है।  जब मेरी वाली बातें नहीं छुपी तो तुम्हारी बातें कैसे छुपेगी ,दीवारें तो वे ही हैं न। 
हाँ , तुम मेरी छिपाओ , मैं  तुम्हारी तो बात बने। 
जनसंघ था केंद्र में साथ तो जग जीवन बाबू उप प्रधानमंत्री
बी जे पी थी केंद्र में तो मंडल
बी जे पी थी तो कलाम  राष्ट्र पति
बी जे पी तो अम्बेडकर भारतरत्न
जनसंघ था बिहार में तो कर्पूरी ठाकुर
बी जे पी  थी तो कल्याण सिंह
बी जे पी  थी तो उमा भारती
बी जे पी थी तो शुशील मोदी
बी जे पी  तो मोदी
बी जे पी  तो नितीश
बी जे पी तो रामनाथ 
कमजोर पर अत्याचार को प्रचार क्यों नहीं होता - टी आर पी  नहीं बढ़ेंगी, इसलिये।
प्रचार वाले या तो पैसा मिलने पर प्रचार करेंगे , या अपने राजनैतिक दृष्टिकोण से। 
क्या अगला उपराष्ट्रपति कोई यादव , और अगला भारतरत्न  एक दलित होगा ?
माना कि जहर मुझमें है , और है भी बड़ा तीखा !
पहले तो था नहीं , पहले पहल था ये कब दिखा ?
बताता तो जा ,आया कहाँ से ,सान किसने चढ़ाई !
कहीं यह जहर तुम्हारा ही दिया हुआ तो नहीं है ?
अपने अन्दर के विद्यार्थी तत्व को और प्रखर करों।
 कुछ और सपने खाओ -पीओ।
थोड़ी नींद और उड़ाओ , भगाओ।
पसीने  को और बहने दो।
कंठ को दो चार बार सूखने दो।
 पेट को कभी कभी जलने दो।
 पुस्तकों के साथ अभिसार करो।
सफलता का जूनून  चढ़ा लो 
यश स्खलित , लक्ष्य स्खलित होने से बचो।

देखो , सफलता सुंदरी ,परी सी -
एक सुबह खुद चली आएगी
तुम्हारे आगोश में
और तब करेंगे खूब चकल्लस
मजे करेंगे , धूम मचायेंगे
सेज सजायेंगे ,सपने नचायेंगे।
सफलता का जश्न मनाएंगे।

बस तनिका सा ठहर एक बार लगो तो सही


हश्र सब का बस  यही होता है 
उगो ,उपजो ,ऊफनो , उधियाओ। 

बीज से बीज तक की यात्रा करो 
सब कुछ करो , यहीं छोड़ भी दो। 

और फिर एक दिन रीते बह जाओ 
समय की रेत का राजा है कौन ?

अमर हो जाने की जुगत में है सब 
दाँव लगेगा देखते है, पर देखो कब ?

  • घोंसला , टूटने पर क्या पीड़ा होती है , एकाधिक बार भोगा है।  
  • बेघर होने का संत्रास भोगा हुआ सत्य है। 
  • पहचान , सम्मान की हानि आज भी याद आते ही कंपकंपी छूट जाती है। 
  • घोसला टूटने का दर्द अंतिम बार कटिहार में देखा और भोगा। 
तुम बर्दाश्त  करना भी क्यों नहीं सीख  सकते 
तलवारों को घर भेज कर  क्यों नहीं जी सकते। 
संगमरमरी मकबरों, रौबदार शहर मत बनाओ 
नन्हीं हँसियों को दरख्तों पे घोसलें बनाने तो दो। 
सितम के इन दीयों के भरोसे नहीं कटेगी ये रात
उम्मीद की शबनमी भोर हुई , इन्हे रुखसत करो। 

काश मैं पानी ही हुआ होता 
तुम कहते जल ही जीवन है 
मैं समझता मैं ही जीवन हूँ 
तुम कहते जल ही औषधि है 
मैं समझता मै ही औषधि है 
तुम कहते जल को बचाना  है 
मैं समझता ,मैं बच ही जाऊँगा 

Saturday, 24 June 2017

कब तक केवल इतिहास से बदला लेने की रणनीति बनाते रहोगे।  इतिहास में बहुत कुछ है सितम के सिवा। इसी इतिहास में हमारे आपकी पसीने की गंध मिली पैसि हुई है।
कितनी नादानियाँ , कितनी पीढ़ियों की शरारतें , कितने मिलेजुले सपने , कितनी हसरते , कितने फुट पड़े ज्वालमुखियों का लावा , एक एक कदम चलता  सदियों तक फैला यह मंजर - देखोगे तो बहुत कुछ है आगे ले जाने को।
न कुछ मिटा है , न कुछ मिटेगा।  न्य बनते जाने से न तुम रोक सकते हो न मैं। है मैं तुमसे या तुम मुझसे डरते रह सकते हो।  मैं तुमसे व्य तुम मुझसे बदला लेने की बरसों पीछे से बरसों आगे तक की कभी न खत्म होने वाली कवायद करते रह सकते हो।
विवेक तुम्हारा और हमारा साझा।  इतिहास भी था साझा।  आगे भी रहेगा साझा।  तय तुम्हे और मुझे ही करना है हम अब और अब से आगे कैसे रहेंगे।
हाथों में तलवार लहराते न मैं जी सकता न तुम।  खंजर के मंजर कभी सकूं और बहार , कामयाबी और रौशनी तो नहीं ही ला सकेंगे।  ये सुल्तानों की अहमक सनक है - जो अपनी अपनी सनक और सल्तनत के लिए हमारी शांति से खेल रही है।
आओ हम सब बच सके तो बचें।
 बदला लेने के उकसावे से बचे।
इतिहास तो इतिहास है ; उसे उखाड़ने से बचे।
अपना आज नया  इतिहास बनाने में लगावें। 

Friday, 23 June 2017

RSS को कांग्रेस ने जीवित रखा , उसे ताकत देते रहे ताकि कुछ लोगों को कुछ समझाया जा सके ,पर कांग्रेस को मात्रा-विज्ञानं का ज्ञान था , डोज कब, किसको , कितनी देनी है और कब भूखे उपेक्षित छोड़ देना है अतः RSS को   हद में रखने में कांग्रेस वाले समर्थ रहे।
काल क्रम में RSS  के साथ अन्य लोग भी यही खेल खेलने लगे की वे भी खास लोगों को समझावेंगे।  उन्होंने समझाया भी।  पर RSS पर अधिक तवज्जह  दे गये , मात्रा का ख्याल नहीं रख सके , RSS की उपेक्षा करने की कला नहीं जानते थे - यहाँ  तक की खुद भी RSS  के वैसे ही समझने लगे जैसे कांग्रेस ने RSS  से कुछ लोगों को समझाया था। अब RSS को सभी जगह सभी लोग जानने समझने लगे वैसे ही जैसे कांग्रेस ने शुरुआत में समझाना  शुरू किया था। यहाँ कांग्रेस के लिए दुविधा पैदा हो गई। वह अब सार्वजनिक रूप से यह कह नहीं सकती थी की RSS  का तो मैंने हौव्वा खड़ा कर  रखा था कुछ खास लोगो को समझाने के लिये।
अब आरएसएस शक्तिशाली हो चला।  इसी बीच आडवाणी , मोदी आगे आये।  फिर कांग्रेस ने चतुराई से काम ले पहले आडवाणी का हौव्वा खड़ा कर खास लोगो को फिर समझाया।  एक बार सफल भी हुए।अन्य लोग भी कांग्रेस की देखा  देखि आडवाणी से खेलने लगे।  कांग्रेस को तो मात्रा का अनुभव था पर अन्य लोगों को नहीं। कांग्रेस को तो पता था की RSS विरोध से ही शक्ति प्राप्त करती है।
मोदी विरोध का भी यही हाल  हुआ।
जितना प्रखर गैरअनुपातिक विरोध करोगे उतना ही शक्ति आप अपने विरोधी को  देते चले जाओगे।
अभी कोविन्द  को जनता के बीच चर्चा का  विषय बना फिर एक बार ऐतिहासिक गलती कांग्रेस पक्ष के लोग करेंगे।
राष्ट्रपति चुनाव में जनता की इतनी रूचि ही तो RSS की योजना है।  इसी कारण तो आरएसएस ने प्रथम उपलब्ध अवसर कोविंद जी के नाम कर  दिया और जन संवाद का नया अवसर पैदा कर  लिया। इस संवाद को जितना प्रखर- ब्यापक बनने देगा, जनता तक पहुंचने देगा ; कांग्रेस खेमा , उतना ही अपना ही अहित करेगा। 
वे सभी ईश्वरीय कृपा प्राप्त है जिन्हें पवित्रता के कारण दण्डित  किया गया। पवित्रता इतनी सहज है की इस असहज दुनिया के लिये सुपाच्य नहीं है , सुमेल नहीं है।  
दीवारें उठा -जोड़ -ऊँची कर रहे थे बड़े उछल उछल कर
आज शिकायत है की कोई आता नहीं हवा धूप तक भी 
जिन्होंने खुद दरवाजे , खिड़की यहाँ तक की रोशनदान तक भी बंद कर -करवा दिये  थे , वे अतिथि के आने की प्रतीक्षा करते और अत्तिथी नहीं आने की शिकायत पालते दिख रहे हैं।

सत्तर साल पहले तो वह अछूत जनमता था , गले में हाँडी लटकाये या पैर में लोहे के घुंघरू,के साथ घूरा , गनौरा नाम के साथ अछूत ही मर जाता था। 
कृषि बड़ा उन्नत फायदेमंद ब्यवसाय है - विश्वास न हो तो इस देश के छोटे छोटे, मझोले ,या बड़े नेताओं के इनकम टैक्स रिटर्न देख लें - करोड़ो में है कृषि आय एक एक नेता की - और जमीन वही दस बिस बीघा या उससे भी कम। 

Thursday, 22 June 2017

पहले भी जाति  के नाम पर छाँट दिया जाता था 
खिसियानी कांग्रेस मीरा ध्याये
लालू माया लेफ्ट ताली बजाये 
हाँ , देखा था
वो था ललुआ
और वे थे मिसिर जी
फिर देखा था
तब के पशुपालन मिनिस्टर को तनाव में मरते 
मीरा जी पहले कभी इस पद के लिये उनकी पार्टी को याद क्यों नहीं आई 
सामाजिक रूप से तो हैं - कम से कम जगजीवन बाबू की कंस्टिच्युएंसी में मैंने उन्हें वोट मांगते देखा और उनके सामाजिक अपमान को स्वयं देखा।  उनके दिल्ली मंत्री निवास का चौका इसका गवाह होता था।  सन सतहत्तर में उन्हें शायद इसी कारण प्रधान मंत्री नहीं बनने दिया गया। 
दलित विरोध दलित को निश्चित हार  के मुँह में धकेल कर ,
एक और अभिन्यु वध
एक और कर्णन ( राजनीति  के )
इस संदेश के लिये प्रशांत भूषण , शांति भूषण नहीं कर्णन ही मेमना या पोस्टर बॉय 
जन्मजात महान मीरा जिसे अथवा जिसके पिता को कभी कांग्रेस ने केंद्रीय  मान्यता नहीं दी। कोटे में पोस्टर की तरह रखा। 
अथवा संघर्षशील  स्वचेता स्वनिर्मित कोविन्द जिसे प्रथम अवसर में ही उनके दल और साथियों ने सर्वोच्च मान्यता का मार्ग प्रशस्त किया !!
मैं या मेरे पोस्ट स्वादिष्ट चटपटी चुरन की गोली नहीं है - आवँले की तरह के कसैले स्वाद वाले हैं , स्वादिष्ट कम भले पर लाभकारी। इनका सेवन केवल स्वाद या चटपटी जीभ के लिये या टाइम पास के लिये न करें तो बेवजह तनाव से बच सकेंगें। 
जिताने के लिये शर्मा , सिंह, मुखर्जी - 
हराने के लिए कुमार मीरा 
सत्तर साल के बाद - वार्ड कमिश्नर से लेकर महामहिम तक अब " नब्बे " का ही बोलबाला।
हारेंगे  हम , जीतेंगें हम। सौ में नब्बे की आवाज  साफ साफ।
"दस" का अब कोई डिक्टेट नहीं।
नब्बे के पीछे चलो साथ साथ। 
वाह रे प्रजातन्त्र ,
एक सदस्य वाले दल का सदस्य केंद्रीय मंत्री और सबसे बड़े दल का नेता विपक्ष का नेता
एक निर्दलीय मुख्य मंत्री और  सरे रजनैतिक दल हासिये पर।
देश की सबसे बड़ी अनुसंधान संस्था और न्यायालय ने खुले आम जिनपे अंगुली उठा ही डाली  वे दे आशीर्वाद राष्ट्रपति बनने का।
विचारणोपरान्त निम्न न्यायालय  से सिद्धदोष खोजे राष्ट्रपति।
यदि जन प्रतिनिधियों का यह इतिहास -भूगोल, पैथोलोजिकल एक्जामिनेशन रिपोर्ट , है तो सही ही है कि साफ सुथरे निर्दोष बुद्धिमान  लोग इनके किये कराये , लिए -दिए , सोचे पर निगरानी तो रखें।
साथ ही अपने पर भी !
इस हॉउस के पोस्ट मिलकर कंट्राडिक्शन केव बनाते है।  भूल भुलैया है भाई 
कमजोर था , हार गया ----
यह तो बाबा प्रभाव है कि आप सब को कमजोर का चीत्कार कम से कम सुनने जानने का अवसर मिल रहा है।  नहीं तो यहां केवल चरणरज लेने वाले या चरणामृत पिने वाले ही रहते -- बाकि सबके गले में हँडिया , या दूर से फेंक कर  दी जाने  दो सुखी रोटी और खट्टी हो रही महकती सब्जी , दाल ,रोटी या फंफूद लगी मिठाई 
भाई , मुझे गाय -निन्दा कोचिंग  या कुत्ता महिमा वर्णन  महायज्ञ   में रूचि नहीं।  क्षमा करें। 

Wednesday, 21 June 2017

शौक से कुत्ता पालिये , कुत्ते को गोद में बैठाइये ,उसकी गोद  में बैठिये , बेड  में अपने साथ सुलाइये , झप्पी लीजिये , झप्पी दीजिये , चटवाईये , गाड़ी में घुमाइए , कंधे पे , सर पे चढ़ाइये।  यही तो आधुनिकतावादी वैज्ञानिक प्रगतिशील सोच है।
आपका निर्णय आपको ही करना है ,चाहिये  भी। 
सोनिया गाँधी ने विपक्षी दलों. की बैठक आहूत की और इस प्रकार कांग्रेस को दूसरे ध्रुव के रूप में स्थापित करेंगी। इस बैठक में उपस्थित हो कर  पार्टियाँ प्रकारान्तर  से कांग्रेस की सर्वोच्चता स्वीकार करती दिखेगी।
इन सब के बीच नितीश जी ही स्वविवेकी कहलायेंगे। यदि कांग्रेस का और क्षय हुआ तो नितीश जी के राष्ट्रिय परिदृश्य पर अकल्पनीय उदय को कोई नहीं रोक सकेगा।
 नितीश जी ने राजनैतिक चातुर्य , शालीन सार्वजनिक संवाद , स्वतंत्र निर्णय क्षमता , अपनी गलतियों को समझ उसे स्वीकार कर परिमार्जन  करने की हिम्मत , अति वाद से परहेज , जन भावना  की समझ , सर्वस्वीकृति के लिये प्रयास-सामर्थ्य , राष्ट्रिय मूल्य-परिस्थिति-समस्या-समाधान-सोच- परिकल्पना के प्रति समुचित समझ , तथा सुचिता -पारदर्शिता  के प्रति आग्रह, प्रसाशनिकक्षमता ,शारीरिक स्वास्थ्य , सभी कुछ स्पष्ट है 
झुक कर  जिन्दा रहने  में कौन सा मुकाम हुआ
तुम झुके , जिन्दा तुम रहे पर बीसियों खेत रहे।

एक वह था, न झुका ,न भागा ,अब भी तुम्हे याद है
वह  टुटा , या तो तोड़ा गया , पर वे साठ मुकाम पे हैं।  
नरेंद्र कोविंद दोउ खड़े , काके अब देउँ  वोट
मोदी को जानू नहीं , कोविंद में नहीं खोट। 

Tuesday, 20 June 2017

पहले इन सब को जातियों के नाम पर धकिया दिया जाता था।
या गले में हँडिया लटकवा दिया जाता था।
या चरणामृत पिला मुक्ति का मार्ग  दिखलाया जा रहा था। 
मेरे ऑंसुओं के हाहाकार को भी सुनों
मेरी चीत्कार  को कोई कभी तो सुनो।
तालियों  की गड़गड़ाहट से मत दबाओ
हँसी के फूलों से इन्हें यूँ  मत  सजाओ।
तुम्हारे कदमों के निशान बेशक बनाओ
जलने लगे तो बताना , हथेली बिछा दूंगा। 

Sunday, 18 June 2017

वह  बिस्तर बड़ा कड़ा होगा ,
लचकते पहुंचेंगे , लेट जायेंगे
गड़ेगा तो पर इत्मीनान होगा
तपिश होगी ,घर हवादार होगा 

Saturday, 17 June 2017

जेल की खिड़की से
तुमने कैदी को
ये क्या दिखाया
और क्यों यही दिखाया।
निराश था कैदी
खिड़की तक आ ही गया था
तो - खिड़की से ?
तुमने दिखाया यह ठूँठ ?
तिस पर भी यह जला हुआ ?
कहीं एक फुनगी तक न दिखने को छोड़ी ?
कोई चिड़िया कहीं कोइ घोसंला न बना ले ?
जीवन से इतनी चिढ़  क्यों ?
तुम तो एक कवि  हो
निराश नहीं होते !
फिर इतना शान्त नैराश्य !!
क्यों , अज्ञेय ! क्यों , कुछ तो बोलो 
बेईमान तो अपने माँ ,बाप ,भाई , बहन, परिवार का ही नहीं हुआ तो वह मेरा या आपका कैसे , क्यों हुए कब ?
मैं बेपरवाह तो नहीं , पर मुझे परवाह तुम्हारी है ,
मेरा क्या , मैं तो चला , अब यह जहाँ तुम्हारी है।
उगे हो तुम खुद , अब तो तुम्हारे सपने जवॉं होंगे
जाओ , जगाओ उनको , ये नस्लें ,ये सब जवाँ होंगे। 
पैसे से अपने नहीं बनाये जा सकते , न ही सुरक्षा खरीदी जा सकती।
पैसा असुरक्षा पैदा करता है और अपनों में भेद -खाई पैदा करता ही है।
भाड़े के सिपाही , सिपाही कम भेदिये अधिक और खतरे पैदा करते है।
पैसों के कारण इकट्ठा अपने , जिंदगी नहीं , मौत का इंतजार करते हैं। 
मन्नू भंडारी 

Thursday, 15 June 2017

हम एक दूसरे से कितने ही अनजान बनने की कोशिश यूँ करते रहे !
हम और आप यादों के चौराहों से दूर कहाँ जा सके , घूमते रहें यहीं ?
मुझे अच्छा लगता है - आज भी मुझे तीता सा , कसैला सा स्वाद,  बैचैन करने वाला "वह" क्षण और चेहरे पे कई चेहरे लादे वह चेहरा ज्यों का त्यों याद  है - मैं कई  बार शब्द चित्र बना उनमें अजब-गजब रँग भर ही डालता हूँ। 
लावारिसों की तरह मेरी पहचान न हो ,सो ही सही
जब भी ऐसा होगा ,सवाल तुम पर ही उठ जायेगा।
तुम्हारी पहचान न भी हो सकेगी , तब भी सवाल ,
मेरी पहचान जो न हुई , तब भी तुम्हीं पर सवाल।
मेरी पहचान नहीं है , तब भी जमाना तुम्हें खोजेगा
मेरी पहचान थी , पर नहीं हुई , फिर तुम्हें खोजेगा। 

Tuesday, 13 June 2017

मारवाड़ी सम्मेलन से मेरा पहला परिचय १९७३ के आस पास।
मैं कलकत्ते से विस्थापित हो तृणमूल हीन सब विधि त्यक्त अपने ननिहाल में शरण लेने को विवश हुआ।  मेरे सारे छोटे से परिवार का मनोबल टुटा हुआ था।
मैं ननिहाल की कपडे की दुकान पर बैठने के लिए आदेशित हुआ। कुछ ही दिनों बाद सम्मेलन के  प्रचारक नवेन्दु शुक्ल ननिहाल की दुकान पर गया होते हुए पहुंचे।  ननिहाल वालों की और से ठंडा रिस्पॉन्स उन्हें मिला। उन्होंने शहर में स्थित अन्य समाज के लोगों तक जाने की इच्छा प्रकट की। मुझे कहा  गया की मैं उन्हें दो चार लोगों के यहॉँ पहुंचा दू. .
बस यही मेरी और सम्मेलन की पहली साझा यात्रा थी।
कलकत्ते से हायर सेकेंडरी कर  के आया था।  बिहार के बारे में कुछ नहीं जानता था।  समाज क्या है , कैसे बनता है ,कितना बड़ा है ,उसकी क्या ब्यापकता है , क्या उपयोगिता है , किताबों या शिक्षकों से जाना था।
जैसे ही ही नवेन्दु जी के साथ दूकान से उतरा , लगभग बाल शुलभ जिज्ञासा से मैंने नवेन्दु जी से कई प्रश्न जल्दी जल्दी  पूछ डाले।  क्यों , कहाँ से , किस लिए , यह क्या होता है , इससे क्या लाभ।  आदि।
उन्होंने मेरी भूख तथा शायद स्थिति को समझ लिया।
उन्होंने सामाजिक संगठन , समाज , मारवाड़ी समाज , और कुछ लोगो का नाम लिया था।  वे अनुभवी और उत्साहवं प्रचारक थे , आज मेरी यह धारणा  बनती है।  सम्मेलन के प्रति मेरी जिज्ञासा के कारण वे ही थे।

वकील , डाक्टर और भगवान  ही भगवान नजर आते हैं यदि आपको उनसे काम पड़  जाये तो। 

Monday, 12 June 2017

स्वतंत्रता के बाद यदि भारत महात्मा गाँधी के रास्ते  चलता -चलाया जाता तो यह दुर्गति नहीं होती - नितीश !
किसने नहीं चलाया ?
ग्लोब्लाइजेशन पश्चिम का अन्धानुकरण से अधिक कुछ नहीं - नितीश !
किसने ग्लोब्लाइजेशन की शुरुआत कृ ?











Sunday, 11 June 2017

नेहरू ब्राह्मण , पटेल पटेल , अम्बेडकर दलित , जगजीवन दलित  यह सब बताया जा रहा है पचास वर्षों से।
गाँधी क्या थे , नई पीढ़ी को पूरा पूरा बता देने में  हर्ज ही क्या है ! 
अभी अभी जो ऊगा है वह अस्त भी यूँ अभी से ही होने लगा ,
मानो  या न मानो , जो अभी ही आया वह अभी से जाने लगा। 

Jagga Jasoos: Galti Se Mistake Video Song | Ranbir, Katrina | Arijit, Am...

धन छिपाया जाता है , ज्ञान बाँटा बताया जाता है। धन के लिये तिजोरी। विद्या के लिये विद्यालय। एक में केवल इनलेट , दूसरे में  केवल आउटलॉट।  एक कभी भरता नहीं , दूसरा कभी घटता नहीं। 


"चतुर बनिया" क्यों बोला
 बड़ा अनप्लीजेंट क्रूड है।
आओ मैं बताता हूँ ,
क्या बोलो ?

हाँ , अब बोलो - भारत  तेरे टुकड़े होंगे ;
देखो कितना सुरीला लगता है !
फिर से बोलो - भारत तेरी बर्बादी तक
देखो , इसके बिना कितना सूना लगता है!!

Saturday, 10 June 2017

रोटी कपड़ा मकान के लिये चले हम आज स्मार्ट फोन , टावर और वाई फाई तक तो  पहुंचे है ।
खुले में निपटते हम , गोबर चुनता बचपन ,अभी भी वहीं ,हम तो उनकी बेवफाई तक पहुंचे  है। 
एक बार अनुशासन लाने का प्रयास हुआ था ,
अनुशासन आया की नहीं , पर सब ने मिल बदल ही डाला। 
फिर वही प्रयास किया जा रहा है 
फिर वही हुआ चाहता है। 
हम अनुसार शासन के नहीं 
शासन हमारे अनुसार चाहिए। 
हमें अनुशासन मत सिखाओ !
शासन को अनुसरण सिखाओ !
मेरे यश को भंजाने की इत्ती जल्दी !
जब मैं सुखी जमीन जोत  रहा था -
कड़ी धुप में जला जा रहा था
बदन श्याह और सूखा जा रहा था
या फिर
जब आंधी तूफान में भींगा जा रहा था
गला जा रहा था, या डूबा जा रहा था
शायद तुमने देखा भी था
मेरी लहू लुहान हथेलियाँ ,
बिवाई फ़टी एड़ी
बुखार से तपता  मेरा शरीर
रात रात   जगती आँखे
बन्द सी हो चुकी रक्त शिराएं
पर उस वक्त तुम न आये ,
देखा तो था तुमने पर तुम्हें दिखा ही नहीं
सुन कर  भी तुमने सुना नहीं
मेरी भूख तुम्हें महसूस क्यों होती ?
मेरी प्यास  अपनी थी न !
मेरा दर्द मेरा , मेरी पीड़ा मेरी !
शायद तुमने मुझे यही था न
की भूख , प्यास ,दर्द आपका , आप भोगें।
आज तुम यहाँ  कैसे?
अच्छा सुनहरी अनाज की बालियाँ  तुम्हें दिखने लगी !
मेरा यश तुम्हे दिखने लगा !
मेरी जयकार तुम्हें  दिखने लगी !
अच्छा ???
Faces without masks are often condemned.
Masked ones earn name ,fame and glory .
I am glad to see the newest learning masking so early.
I could not.

मुझे आप अपने सिचुएशनल फ्रेम में बेशक देखिए ।
मैं अपने मूल गुण-धर्म में शांति से रमण करते रहता हूँ ।
मुझे न वर्तमान से शिकायत , न बीते समय से , न आने वाले कल से ।
मै एक निरंतर यात्रा पर हूँ । रुक जाने या रोक दिये जाने के पहले तक के लिये , बड़ मजे में इतमिनान से ।
तुम आये , अच्छा लगा ,
कम से कम वह कमरा जगा तो सही
वह बेड आज भर अकेला न रहा
डाइनिंग टेबल पर साथ बैठे तुम - सोह रहे थे
शायद खाना तीखा था , तुम सी सी किए जा रहे थे
बस मुझे आखिरी एक और रोटी देकर मजा आ गया।
पर , अखर गया सुबह का तुम्हारा यूँ उठ जाना
आठ बजे तक टाँग फैला निश्चिन्त न सो पाना
मैं कितने अरमान से झाँक रहा था कि तुम्हें उठाऊंगा
बस अच्छा नहीं लगा कि अहले सुबह आँख तुम्हारी खुली थी
काश ! तुम झूठमूठ ही सही आँख बंद किये पड़े ही रहते
मेरे उठाने पर भी न उठते
कहते ,अभी और सोने न दो
आज बड़े चैन की नींद बहुत दिनों के बाद यहाँ आई है
तुम आये , अच्छा लगा ,
कम से कम वह कमरा जगा तो सही
वह बेड आज भर अकेला  न रहा
डाइनिंग टेबल पर साथ बैठे तुम - सोह रहे थे
शायद  खाना तीखा था , तुम सी सी किए जा रहे थे
बस मुझे आखिरी एक और रोटी देकर मजा आ गया।
पर , अखर गया सुबह का तुम्हारा यूँ उठ जाना
आठ बजे तक  टाँग फैला निश्चिन्त न सो पाना
मैं कितने अरमान से झाँक  रहा था कि तुम्हें उठाऊंगा
बस अच्छा नहीं लगा कि अहले सुबह आँख तुम्हारी खुली थी
काश ! तुम झूठमूठ ही सही आँख बंद किये पड़े ही रहते
मेरे उठाने पर भी न उठते
कहते ,अभी और सोने न दो
आज बड़े चैन  की नींद बहुत दिनों के बाद यहाँ आई है 

Sunday, 4 June 2017

हर मुसीबत में बुजुर्गो के साथ कानून
Wed, 28 Sep 2016 02:02 AM (IST)
पटना। बागबानों की स्थिति तब बहुत दयनीय हो जाती है, जब वो अपने अधिकारों के बारे में नहीं जानते हैं। इस अवस्था में वे कई बार किसी की सहायता के तलबगार हो जाते हैं। बुजुर्गो के सामने सबसे बड़ी आफत तब हो जाती है, जब उन्हें अपने बच्चों या फिर अपने परिजन ही उनके हक से वंचित करने की कोशिश की जाती है। इन समस्याओं का मुख्य कारण होता है अपने अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं होना।
बुजुर्गो के अधिकारों की जानकारी दे रहे हैं जिला एवं सत्र न्यायाधीश रमेश रतेरिया
बुजुर्गो को अपने अधिकारों के प्रति अवश्य ही जागरूक होना चाहिए। यह मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि वृद्ध लोगों की न सिर्फ दयनीय स्थिति पर सोचने की बल्कि उनके अधिकारों के प्रति उन्हें जागरूक करने की आवश्यकता है। इस विषय पर मुझे न्यायमूर्ति शांति स्वरूप दीवान की याद आ जाती है, जिन्हें अपने ही घर से उनके बच्चों ने बाहर करने का फैसला लिया और इस बात से आहत उन्होंने पंजाब हरियाणा हाइकोर्ट में 2013 में एक याचिका दायर की। मेरा कहने का ये मतलब है कि अगर एक न्याय देने वाले व्यक्ति को जब इस परेशानी का सामना करना पड़ सकता है तो फिर आम आदमी को तो अधिकारों के बारे में जरूर जागरूक होना चाहिए।
1. जो बुजुर्ग समय रहते अपने उत्तराधिकारी अथवा रिश्तेदार को उपहार स्वरूप या फिर उनका हक मानते हुए अपनी संपत्ति उन्हें स्थानांतरित कर देते हैं, परंतु बाद में अपने भरण पोषण एवं स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं के लिए धन पाने में असफल रहते हैं, वे ट्रिब्यूनल में अपील कर अपनी जायदाद वापस ले सकते हैं और संपत्ति हस्तांतरण रद्द करवा सकते हैं।
2. द मेंटिनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 बुजुर्गो के अधिकारों को संरक्षण प्रदान करता है। इसमें प्रत्येक बुजुर्ग अपने अनुमंडल में अनुमंडलीय अधिकारी से अपने बच्चे से उपेक्षा या प्रताड़ित किए जाने पर अपनी सुरक्षा की मांग कर सकते हैं। इसमें उन्हें अपने जीवन निर्वाह के लिए भत्ता उनके बच्चों की आर्थिक स्थिति और माता-पिता की आवश्यकताओं के अनुरूप आनुपातिक रूप से मिलेगा।
3. उच्चतम न्यायालय की घोषणा के अनुसार वैसे मुकदमों की सुनवाई, जिसमें सीनियर सिटीजन पक्षकार हों, उनकी सुनवाई प्राथमिकता के आधार पर जल्द किया जाएगा।
4. उच्चतम न्यायालय ने कई बार उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया है कि समस्त अधीनस्थ न्यायालयों में ऐसे मुकदमों की सूची बनाई जाए जिनमें सीनियर सिटीजन पक्षकार हों, ऐसे मुकदमें शीघ्रातिशीघ्र निस्तार किए जाएंगे।
5. वरिष्ठ नागरिकों को रेलवे के किराए में चालीस प्रतिशत छूट दी जाती है। महिला वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह छूट 50 प्रतिशत है। रेलवे के अनुसार वरिष्ठ महिला नागरिक वह हैं जो 58 वर्ष हो चुकी हैं।
6. साठ से अधिक उम्र के प्रत्येक नागरिक को वरिष्ठ नागरिक का दर्जा प्राप्त है और वे उनके लिए निर्धारित सरकारी सुविधाओं के हकदार हैं।
6. आयकर विभाग के नियम में भी बदलाव कर अब वरिष्ठ नागरिकों की आयु सीमा साठ साल कर दी गई है। अत: सभी वरिष्ठ नागरिक आयकर लाभ छूट ले सकते हैं। वर्तमान में वरिष्ठ नागरिकों को अपनी तीन लाख तक की वार्षिक आय पर कोई आयकर देय नहीं है। अति वरिष्ठ नागरिक जिनकी उम्र 80 वर्ष हो चुकी है, उनकी पांच लाख तक की वार्षिक आय पर कोई आयकर देय नहीं है।

Saturday, 3 June 2017

कल शाम को ही बनबन्धु परिषद , पटना चैप्टर की ऑफिस में श्रद्धेय विनोद कनोडिया जी ने  बड़े ही प्रेम से उनके अपने परम् मित्र और कलकत्ते के लब्ध प्रतिष्ठ उद्योगपति साहित्यानुरागी श्री बींजराज रांका द्वारा संकलित , लिखित तथा सम्पादित बृहद पुस्तक - " माँ मेरी माँ " भेंट की।
सुखद आश्चर्य हुआ। उनका स्नेह पा , और वह  भी पुस्तक रूप में , मन गदगद हो गया।
आकर्षक सज्जा , बाइंडिंग , प्रस्तुति।
पुस्तक सहज आकर्षित करती है।
मातृस्वरूपा स्व०   सरला बिड़ला जी को याद करते हुए श्री रांका जी ने अपने माता-पिता को समर्पित की है।  अच्छा लगा।
संस्कारों के परिष्करण के पावन उद्देश्य से रचित -उपक्रमित ; साधुवाद।
माँ - एक भाव , भावना , स्पंदन , स्पर्श , सुरक्षा , निर्देश , शिक्षा , संस्कार ,केवल प्रेम !
श्यामा जी की उच्च स्तरीय कहानियों सा सज्जित।  ममता कालीया जी , मन्नू भंडारी जी की कहानियों का संग्रह- संकलन , डा o कुसुम खेमानी , जी की कहानी , त्रिपाठी जी की कहानी से कहानी संग्रह भाग सार्थक बन पड़ा. है। एक ही धारणा की ममत्व भरी २० कहानियों के सार्थक संग्रह के लिए संकलनकर्ता के परिश्रम मनोयोग की सम्पूर्णता प्रमाणित होती है।
लगभग ८० कविताओं का विषय केंद्रित संकलन - चुन चुन क्र उच्चतम साहित्यिक मूल्य की कविताएँ संकलित की गयी है।
पुस्तक के पृष्ठ २१३ में संकलन कर्ता की अपनी लविता माँ में कवि घोषणा क्र ही डालता है - माँ शब्द नहीं आत्मा ही है परमात्मा 
सुधा बालकृष्णन जी का मातृत्व की भावना  पर गवेषणात्मक लेख विद्व्तापूर्ण साहित्यिक लेख हे , फिर भी ह्रदय और मन को एक साथ स्पर्श करता है।
वंदना मिश्र जी ने सही ही अनुभव किया - माँ ने कभी उफ़ नहीं किया।
माँ चेतना का श्रोत है। हौसला है।  प्रेरणा है , हिम्मत है।
संकलन कर्ता ने माँ  के संदर्भ में साहित्य का संकलन करते समय उर्दू साहित्य की भी यात्रा की यह डा ० शाहिना तबस्सुम की प्रस्तुति पृष्ठ २३५ में उर्दू साहित्य में  माँ  ,  डा o मनाज़िर आशिक़ हरगानवी ,पृष्ठ २८५  ,शायरी में माँ ; से स्पष्ट है।
माँ के संदर्भ में संकलित गद्य संग्रह  में. आध्यात्मिक जगत के श्रेष्ठ जनों के आलेख संकलन को पूर्णता देते प्रतीत होते हैं।  माँ शारदा का उल्लेख -चित्रण - विवरण -विश्लेषण एक झंकार उतपन्न करता है।
माँ का शक्ति रूप विवेचन संग्रह को और ऊंचाई पर ले जाने में सक्षम है माँ का देवी रूप निरूपण हमारी आर्ष संस्कृति के अनुरूप ही गहराई लिए हुए है।
एक बानगी पुस्तक पृष्ठ २८५ से - माँ एक सीप है जो संतान के लिए  लाखों भेद आप[ने सीने में छुपा लेती है।
किताब का पृष्ठ २८ ५ ता पृष्ठ ३०० काफी प्रभावी भाग है जिसमे अनेक लेखक -कवि -मनीषी -विचारकों के माँ के प्रति भाव एक ही स्थान पर देखने को मिल जाते है।
वेदोक्त माँ का स्वरूप विवेचन अच्छा -उपयोगी लगा।  माँ को उसकी पूर्णता में महसूस करना तो असम्भव है पर इस दिशा में मेरे जैसे अभ्यासी के लिए यह पुस्तक एक सम्ब्ल प्रतीत होती है।
संकलन कर्ता ने बांग्ला , असमिया , अंग्रेजी , संस्कृत, कन्नड़ ,तेलगु ,तमिल , पंजाबी , मराठी - विदेशी भाषाओं तक में माता के भाव को खोज डाला है।
पृष्ठ ४९६ में प्रकृति स्वयं माँ है शीर्षक बींजराज जी की भावना विचारणीय है।
घर घर में गरिमा के साथ धारण करने लायक पुस्तक के लिए पुस्तक प्रणेता श्री रांका जी को बहुत बहुत साधुवाद.