कल शाम को ही बनबन्धु परिषद , पटना चैप्टर की ऑफिस में श्रद्धेय विनोद कनोडिया जी ने बड़े ही प्रेम से उनके अपने परम् मित्र और कलकत्ते के लब्ध प्रतिष्ठ उद्योगपति साहित्यानुरागी श्री बींजराज रांका द्वारा संकलित , लिखित तथा सम्पादित बृहद पुस्तक - " माँ मेरी माँ " भेंट की।
सुखद आश्चर्य हुआ। उनका स्नेह पा , और वह भी पुस्तक रूप में , मन गदगद हो गया।
आकर्षक सज्जा , बाइंडिंग , प्रस्तुति।
पुस्तक सहज आकर्षित करती है।
मातृस्वरूपा स्व० सरला बिड़ला जी को याद करते हुए श्री रांका जी ने अपने माता-पिता को समर्पित की है। अच्छा लगा।
संस्कारों के परिष्करण के पावन उद्देश्य से रचित -उपक्रमित ; साधुवाद।
माँ - एक भाव , भावना , स्पंदन , स्पर्श , सुरक्षा , निर्देश , शिक्षा , संस्कार ,केवल प्रेम !
श्यामा जी की उच्च स्तरीय कहानियों सा सज्जित। ममता कालीया जी , मन्नू भंडारी जी की कहानियों का संग्रह- संकलन , डा o कुसुम खेमानी , जी की कहानी , त्रिपाठी जी की कहानी से कहानी संग्रह भाग सार्थक बन पड़ा. है। एक ही धारणा की ममत्व भरी २० कहानियों के सार्थक संग्रह के लिए संकलनकर्ता के परिश्रम मनोयोग की सम्पूर्णता प्रमाणित होती है।
लगभग ८० कविताओं का विषय केंद्रित संकलन - चुन चुन क्र उच्चतम साहित्यिक मूल्य की कविताएँ संकलित की गयी है।
पुस्तक के पृष्ठ २१३ में संकलन कर्ता की अपनी लविता माँ में कवि घोषणा क्र ही डालता है - माँ शब्द नहीं आत्मा ही है परमात्मा
सुधा बालकृष्णन जी का मातृत्व की भावना पर गवेषणात्मक लेख विद्व्तापूर्ण साहित्यिक लेख हे , फिर भी ह्रदय और मन को एक साथ स्पर्श करता है।
वंदना मिश्र जी ने सही ही अनुभव किया - माँ ने कभी उफ़ नहीं किया।
माँ चेतना का श्रोत है। हौसला है। प्रेरणा है , हिम्मत है।
संकलन कर्ता ने माँ के संदर्भ में साहित्य का संकलन करते समय उर्दू साहित्य की भी यात्रा की यह डा ० शाहिना तबस्सुम की प्रस्तुति पृष्ठ २३५ में उर्दू साहित्य में माँ , डा o मनाज़िर आशिक़ हरगानवी ,पृष्ठ २८५ ,शायरी में माँ ; से स्पष्ट है।
माँ के संदर्भ में संकलित गद्य संग्रह में. आध्यात्मिक जगत के श्रेष्ठ जनों के आलेख संकलन को पूर्णता देते प्रतीत होते हैं। माँ शारदा का उल्लेख -चित्रण - विवरण -विश्लेषण एक झंकार उतपन्न करता है।
माँ का शक्ति रूप विवेचन संग्रह को और ऊंचाई पर ले जाने में सक्षम है माँ का देवी रूप निरूपण हमारी आर्ष संस्कृति के अनुरूप ही गहराई लिए हुए है।
एक बानगी पुस्तक पृष्ठ २८५ से - माँ एक सीप है जो संतान के लिए लाखों भेद आप[ने सीने में छुपा लेती है।
किताब का पृष्ठ २८ ५ ता पृष्ठ ३०० काफी प्रभावी भाग है जिसमे अनेक लेखक -कवि -मनीषी -विचारकों के माँ के प्रति भाव एक ही स्थान पर देखने को मिल जाते है।
वेदोक्त माँ का स्वरूप विवेचन अच्छा -उपयोगी लगा। माँ को उसकी पूर्णता में महसूस करना तो असम्भव है पर इस दिशा में मेरे जैसे अभ्यासी के लिए यह पुस्तक एक सम्ब्ल प्रतीत होती है।
संकलन कर्ता ने बांग्ला , असमिया , अंग्रेजी , संस्कृत, कन्नड़ ,तेलगु ,तमिल , पंजाबी , मराठी - विदेशी भाषाओं तक में माता के भाव को खोज डाला है।
पृष्ठ ४९६ में प्रकृति स्वयं माँ है शीर्षक बींजराज जी की भावना विचारणीय है।
घर घर में गरिमा के साथ धारण करने लायक पुस्तक के लिए पुस्तक प्रणेता श्री रांका जी को बहुत बहुत साधुवाद.