Tuesday, 2 September 2014

विगत ५८ वर्षों के अपने अनुभवों के आधार पर कह सकता हूँ की प्रत्येक ताप ,कष्ट ,पीड़ा  मन की अशुद्धियाँ दूर करती है .
मैं कह सकता हूँ की स्वर्ण पर अग्नि का कितना ऋण हैं .
निंदा पीड़ा तो देती है पर उसका अंतिम फल सदैव लाभ देता है .

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