संघ एक सामान्य शब्द के रूप में भी स्वीकारें। भारत में एक आप ही का संघ नहीं है। ये तो कांग्रेसी मानसिकता थी की संघ शब्द को रूढ़ि अर्थ दे डाला और आप जैसे लोग उसी में बह गए। अनेक राष्ट्रद्रोहियों के अपने अपने अलग संघ है इसी देश में।
Monday, 31 July 2017
Sunday, 30 July 2017
Wednesday, 26 July 2017
अपने न्यायालय से भिन्न विषयों पर ,अथवा सामान्य विधिक दर्शन पर लिखने के लिए बहुत कुछ है।
आपकी शहीद के प्रति भावना और संस्मरण देख कर अच्छा लगा। आप सशक्त लेखनी के धनी है।
साहित्यिक अथवा न्यायशास्त्रीय विषयों पर लिखें। अपने उच्च न्यायालय के अथवा उच्चतम न्यायालय के न्यायनिर्णयन पर टिका टिप्पणी से बचे. अपने न्यायालय की किसी घटना , मुकदमे , परिस्थिति पर चर्चा को आमंत्रित न करें।
आपका किखा संस्मरण पसंद आया। न्यायालय का आपका काम अच्छा माना जाता है।
आपकी शहीद के प्रति भावना और संस्मरण देख कर अच्छा लगा। आप सशक्त लेखनी के धनी है।
साहित्यिक अथवा न्यायशास्त्रीय विषयों पर लिखें। अपने उच्च न्यायालय के अथवा उच्चतम न्यायालय के न्यायनिर्णयन पर टिका टिप्पणी से बचे. अपने न्यायालय की किसी घटना , मुकदमे , परिस्थिति पर चर्चा को आमंत्रित न करें।
आपका किखा संस्मरण पसंद आया। न्यायालय का आपका काम अच्छा माना जाता है।
Tuesday, 25 July 2017
जज को ब्यक्ति-समाज-ब्यवस्था , भूत-वर्तमान -भविष्य के बीच संतुलन का दायित्व है।
स्वयं एक ब्यक्ति हर स्थिति में नीतियों का इतना दबाव सहन नहीं कर पाता अतएव अपने अधिकार की अंतिम सीमा तक सुरक्षा नहीं कर पाता।
अधिवक्ता को समाज से केवल ब्यक्ति के पक्ष में अंत तक खड़े रहने का अधिकार और प्रशिक्षण प्राप्त है।
और अधिवक्ता सामाजिक - नैतिक - कालिक दबाव में भी ब्यक्ति के अधिकारों की रक्षा ब्यवसायिक चातुर्य से करते है , अपनी ब्यक्तिगत सामाजिक निष्ठा और मूल्यों को हानि पहुंचाए बिना।
स्वयं एक ब्यक्ति हर स्थिति में नीतियों का इतना दबाव सहन नहीं कर पाता अतएव अपने अधिकार की अंतिम सीमा तक सुरक्षा नहीं कर पाता।
अधिवक्ता को समाज से केवल ब्यक्ति के पक्ष में अंत तक खड़े रहने का अधिकार और प्रशिक्षण प्राप्त है।
और अधिवक्ता सामाजिक - नैतिक - कालिक दबाव में भी ब्यक्ति के अधिकारों की रक्षा ब्यवसायिक चातुर्य से करते है , अपनी ब्यक्तिगत सामाजिक निष्ठा और मूल्यों को हानि पहुंचाए बिना।
Monday, 17 July 2017
Friday, 14 July 2017
अभिब्यक्ति की स्वतंत्रता हर बार केवल एक पक्ष को ही क्यों चाहिये - गालियाँ देने के लिए , टुकड़े कर देने - करवा देने के लिए , बर्बादी तक के लिए , वंदे मातरम के विरोध के लिए , ... ट्टो के लिए प्रार्थना करने के लिए , .... द्दा...... ,ला...न की प्रसंसा गीत गाने के लिए , कस्साब की फाँसी का विरोध करने के लिए , सेना को बददुआ देने के लिए , देवी देवताओं की मनचाही विकृत पेंटिंग के लिए
Thursday, 13 July 2017
Wednesday, 12 July 2017
लोकतंत्र भीड़ के अनुरूप या भीड़ का सम्मान करने की ब्यवस्था का नहीं वरन कानून और न्यायालय का सम्मान करने वाली व्यवस्था का नाम है।
लोकतंत्र की पूर्णता सम्पूर्ण बहुमत सम्पन्न प्रधानमन्त्री द्वारा न्यायालय का सम्मान करते समय ही दीखता है।
न्यायालय बहुमत से नहीं न्यायमत से भी सोचता है , इसी न्यायमत के प्रति श्रद्धा ही लोकतन्त्र है।
लोकतंत्र की पूर्णता सम्पूर्ण बहुमत सम्पन्न प्रधानमन्त्री द्वारा न्यायालय का सम्मान करते समय ही दीखता है।
न्यायालय बहुमत से नहीं न्यायमत से भी सोचता है , इसी न्यायमत के प्रति श्रद्धा ही लोकतन्त्र है।
Tuesday, 11 July 2017
यही श्रेष्ठता का दावा तो आप हजारों सालों से करते आये हो और मुझे पापी , अधम , नीच बताते आये हो। अब मैं जान गया हूँ की मैं पापी नहीं था ,अधम नहीं था , आपने मेरा बौद्धिक , शारीरिक ,आत्मिक वंशानुगत शोषण किया , मुझे बरगलाया , मेरी सदाशयता का निर्मम अनुचित लाभ उठाया। आपने बलशाली धनशाली और कुटिल बुद्धिशाली ५-७ लोगों का जघन्य जोट्टा बनाया और मेरी , मेरे परिवार की , मेरे बाल बच्चों की , मेरी महिला सदस्यों की गरिमा से खेलते रहे।
अब यह रुकेगा ही।
अब यह रुकेगा ही।
अधिसंख्य ग्लानि -अपमान -अत्याचार मेरा भोगा हुआ सत्य है , गॉवों के बालकों , वृद्ध , महिलाओं के माध्यम से देखा समझा हुआ है , कर्तब्य निर्वहन में भी साक्षात् सूजी हुई आँखों से चिल्लाती जुबान को शरीर थरथराते देखा है , थोड़ा सा सहारा मिलते ही निर्बल लाचार कैसे ुधिया जाता है - मेरे दग्ध हृदय - दिल -दिमाग -लेखनी से पूछिए।
Monday, 10 July 2017
संविधान में सभी के बराबरी से हैं परेशान।
सबको मिला समान अधिकार और वोट - उससे भी परेशान।
पहले हजारों साल के अन्याय का निवारण - अस्पृश्यता के उन्मूलन से परेशान।
और पूर्व में अवसर वंचित वर्ग के प्रति किये गए न्याय के प्रयास से परेशान !
अब क्या कभी चरणामृत नहीं पीला पाएँगे।
चरण प्रच्छालन करवावल जाओ यजमान - अब क्या कभी नहीं ?
हाय , अब हमारी चरण रज का क्या होगा ?
सबको मिला समान अधिकार और वोट - उससे भी परेशान।
पहले हजारों साल के अन्याय का निवारण - अस्पृश्यता के उन्मूलन से परेशान।
और पूर्व में अवसर वंचित वर्ग के प्रति किये गए न्याय के प्रयास से परेशान !
अब क्या कभी चरणामृत नहीं पीला पाएँगे।
चरण प्रच्छालन करवावल जाओ यजमान - अब क्या कभी नहीं ?
हाय , अब हमारी चरण रज का क्या होगा ?
बस हमारा चोरी कर लिया स्वाभिमान लौटा दो !
चरणरज सर पर लगाना जो सिखाया वह भुला दो।
चरणामृत पीना घुट्टी में पिलाया उसे हटा दो।
हमारे शारीरिक श्रम के मूल्य को न्यूनतम रखने और बेगारी के षड्यंत्र का पर्दाफाश कर दो।
हमे छू कर , हमारे साथ सो कर हम पर एहसान करने की परम्परा कैसे डाली बता तो दो।
ये स्वर्णजड़ित मुकुट - सिंहासन तुमने किस पुरुषार्थ से अरजे बता तो दो।
मुझे पूर्वजन्म और बाप-दादों के पाप से डराना कब तक बंद कर दोगे , बता दो।
मैं तुम्हारे घर की झूठन खा किस दिन पाप मुक्त होऊंगा बताते जाओ।
मुझे कब तक फेंक कर चवन्नी और दो बासी रोटी मिलेगी।
मेरा पानी का बरतन कब तक वहाँ कोने में अलग थलग पड़ा रहेगा।
मुझे मेरी संतान का नाम कब तक सोमारू , मंगरा , बुधना , बिफना , सुकरा , शनिचरा , ऐतवारु यही सब रखना ही होगा।
मुझे घोड़े पर चढ़ने कब मिलेगा।
मैं अपनी बेटी के ब्याह में कब बाजा बजा पाउँगा।
मैं कब आपको मालिक बोलना बंद कर सकूंगा।
चरणरज सर पर लगाना जो सिखाया वह भुला दो।
चरणामृत पीना घुट्टी में पिलाया उसे हटा दो।
हमारे शारीरिक श्रम के मूल्य को न्यूनतम रखने और बेगारी के षड्यंत्र का पर्दाफाश कर दो।
हमे छू कर , हमारे साथ सो कर हम पर एहसान करने की परम्परा कैसे डाली बता तो दो।
ये स्वर्णजड़ित मुकुट - सिंहासन तुमने किस पुरुषार्थ से अरजे बता तो दो।
मुझे पूर्वजन्म और बाप-दादों के पाप से डराना कब तक बंद कर दोगे , बता दो।
मैं तुम्हारे घर की झूठन खा किस दिन पाप मुक्त होऊंगा बताते जाओ।
मुझे कब तक फेंक कर चवन्नी और दो बासी रोटी मिलेगी।
मेरा पानी का बरतन कब तक वहाँ कोने में अलग थलग पड़ा रहेगा।
मुझे मेरी संतान का नाम कब तक सोमारू , मंगरा , बुधना , बिफना , सुकरा , शनिचरा , ऐतवारु यही सब रखना ही होगा।
मुझे घोड़े पर चढ़ने कब मिलेगा।
मैं अपनी बेटी के ब्याह में कब बाजा बजा पाउँगा।
मैं कब आपको मालिक बोलना बंद कर सकूंगा।
Sunday, 9 July 2017
LIG , MIG , HIG , केवल अर्थशास्त्रीय, सांख्यीय शब्द भर नहीं है - यह एक सामाजिक विश्लेषण , समाज स्तरीय मनोवैज्ञानिक अध्ययन , शारीरिक -मानसिक -तार्किक - भावनात्मक वर्गभेदमूलक शब्द है , क्लास भी डिफाइन करते है , परस्पर एक असंवाद -दुराव-अलगाव -खाई को चिन्हित करते है।
इनमे से प्रत्येक एक दूसरे के प्रति अविश्वास - विस्मय और अवसर की सी स्थिति रखता है।
एक को LIG से निकल कर MIG तक जाना ही स्वप्न और असम्भव सा प्रतीत होता है और वह किसी असम्भव यात्रा के लिए तैयारी ही करता रह जाता है - रास्तों को ही खोजता -पहचानता रह जाता है , पर उसकी समझ उसका साथ नहीउं दे पाती।
HIG तो अपने आपको श्रेष्ठ जान -मान LIG या MIG का तिरस्कार करना अपना अधिकार मान बैठा है।
MIG डरा रहता है कहीं नीचे नहीं खिसक जाये - ऊपर और आगे के लिये उसकी स्थिति LIG वाले से भिन्न नहीं है।
HIG वाला भी मन ही मन यह तो जानता है की उसके ठाठ LIG को LIG बनाये रखने से ही बने रह सकते हैं।
इनमे से प्रत्येक एक दूसरे के प्रति अविश्वास - विस्मय और अवसर की सी स्थिति रखता है।
एक को LIG से निकल कर MIG तक जाना ही स्वप्न और असम्भव सा प्रतीत होता है और वह किसी असम्भव यात्रा के लिए तैयारी ही करता रह जाता है - रास्तों को ही खोजता -पहचानता रह जाता है , पर उसकी समझ उसका साथ नहीउं दे पाती।
HIG तो अपने आपको श्रेष्ठ जान -मान LIG या MIG का तिरस्कार करना अपना अधिकार मान बैठा है।
MIG डरा रहता है कहीं नीचे नहीं खिसक जाये - ऊपर और आगे के लिये उसकी स्थिति LIG वाले से भिन्न नहीं है।
HIG वाला भी मन ही मन यह तो जानता है की उसके ठाठ LIG को LIG बनाये रखने से ही बने रह सकते हैं।
Saturday, 8 July 2017
अकेले वकील समुदाय को समाज और संविधान में ब्यक्तिगत स्वतंत्रता और ब्यक्ति की मानवीय गरिमा को उसकी निजता और गोपनीयता के साथ और उसके प्रति पूर्ण निष्ठां और अधिकार के साथ राज्य और राष्ट्र , न्यायाधीश , और सभी दमन करि शक्तियों के सामने भी उन सब के विरुद्ध भी खड़े होने का सर्वोच्च अधिकार प्राप्त है और शायद अधिवक्ता की संस्था का यही प्राण तत्व है।
हाँ , सड़क ,ट्रेन , प्लेन आदि में हादसे होते रहते हैं। यह जीवन चक्र के हिस्से है।
पर इनके बावजूद जीवन चक्र चलता रहता है निर्बाध , थोड़ा और सावधान - पर रुकता कोइ नहीं , रोकता कोइ नहीं।
बस इसी तरह फेसबुक , वाट्सएप या अन्य श्रोतों पर पढ़े लिखे बच्चों , बृद्ध माता पिता , रिटायर्ड बुजुर्ग , देश में दूर या विदेश में कार्यरत बेटे-बहू , बेटी -दामाद से संबन्धित किस्से कहानियों या हादसों के विवरण से अपने चैन को डिस्टर्ब न करें। ये हादसे हैं। कहीं - कहीं , कभी - कभार हो ही जाते है , पर होते है हादसे। सामान्यतः सब कुछ सुखद ही होता है। विश्वास करें - सब कुछ सामान्य सुखद ही होता आ रहा है।
पर इनके बावजूद जीवन चक्र चलता रहता है निर्बाध , थोड़ा और सावधान - पर रुकता कोइ नहीं , रोकता कोइ नहीं।
बस इसी तरह फेसबुक , वाट्सएप या अन्य श्रोतों पर पढ़े लिखे बच्चों , बृद्ध माता पिता , रिटायर्ड बुजुर्ग , देश में दूर या विदेश में कार्यरत बेटे-बहू , बेटी -दामाद से संबन्धित किस्से कहानियों या हादसों के विवरण से अपने चैन को डिस्टर्ब न करें। ये हादसे हैं। कहीं - कहीं , कभी - कभार हो ही जाते है , पर होते है हादसे। सामान्यतः सब कुछ सुखद ही होता है। विश्वास करें - सब कुछ सामान्य सुखद ही होता आ रहा है।
बस ५० नेता , ५० अभिनेता , ५० कोट , ५० वर्दी , ५० पगड़ी , ५० थैली वाले , ५० कलम वाले , ५० रिंच-प्लास -औजार वाले, ५० दिमाग वाले , ५० टाई , ५० पीर औलिया महंथ , ५० काला गाउन , ५० उजला गाउन , ५० जेल के अन्दर वाले , पचास बम-गोली छुरे वाले ५० जेल के बाहर वाले , ५० कोठे वाले , ५० कोठे वाली। बाकि के तो सरे मजदूर। सर झुकाए पीछे पीछे पीछे चलने वाले।
Friday, 7 July 2017
JB talk thi jindgi, BAHAR aur husn, hamari yad n aayee,
Hm rahe gairon me sumaar , hamari jeekr, fikr nahi aayee
Aaj JB maut saamne hai to ham apne hi to hai , yaad aaya
Aaj lahu maangte ho , us waqt to tune dar se pyasa lautaya
जब तलक थी जिंदगी में बहार , औ हुस्न , हमारी याद न आई
हम रहे गैरों में सुमार, हमारी जिक्र औ फ़िक्र तक न कभी आई।
आज जब मौत सामने है तो अपने ही है ,यह बात क्यूँ याद आई
आज लहू मांगते हो ,उस वक्त तो तूने दर से था प्यासा लौटाया।
Thursday, 6 July 2017
मैंने अपने एक प्रबुद्ध मित्र से पूछा - यह चीन का नया बखेड़ा क्या है।
उसने मुझे समझाया की पड़ोसी दुश्मन के यहाँ बारात आयी हो , अगुआ आया हो , छठी -कारज -परोजन हो तो दुश्मन पड़ोसी खिसिया कर उसी दिन समय अपनी नाली -टंकी साफ करवाता है कि कम से कम असुविधा तो पैदा होगी ही। जैसे ही समय बिता फिर यथावत दुश्मन।
अमेरिका-इजराइल यात्रा का इतना तो रियेक्सन होना ही था। यदि यह नहीं होता या ऐसा कुछ नहीं होता तो मानो आपकी यात्राओं को किसी ने नोट ही नहीं किया।
आखिर चीन अपने मित्र पाकिस्तान को कुछ तो आश्वस्ति - दिलाशा देगा न !
उसने मुझे समझाया की पड़ोसी दुश्मन के यहाँ बारात आयी हो , अगुआ आया हो , छठी -कारज -परोजन हो तो दुश्मन पड़ोसी खिसिया कर उसी दिन समय अपनी नाली -टंकी साफ करवाता है कि कम से कम असुविधा तो पैदा होगी ही। जैसे ही समय बिता फिर यथावत दुश्मन।
अमेरिका-इजराइल यात्रा का इतना तो रियेक्सन होना ही था। यदि यह नहीं होता या ऐसा कुछ नहीं होता तो मानो आपकी यात्राओं को किसी ने नोट ही नहीं किया।
आखिर चीन अपने मित्र पाकिस्तान को कुछ तो आश्वस्ति - दिलाशा देगा न !
Wednesday, 5 July 2017
पत्थर हो चली है हवा,
आग में भुन चुका है समंदर।
पत्थर हो गई इस हवा का
मैं क्या करूँगा, !
मेरे बच्चे, ये पेड़, ये पौधे,
मूक-वधिर से ये मृगछौने
अब उनकी साँस की आस भी नहीं
यह पत्थर हो चली हवा !
तिजोरियों में बंद कर रखो इसे,
तुम्हारे काम आयेगी !!
जब मुर्दों के बाजार में
दुकान तुम लगाओगे !!!
जला ही डाला इस सारे समंदर को।
भुन चके इस सम़ंदर का, मैं क्या करूँगा ?
सहन कैसे करूँ मेरी प्यास को,
क्या जबाब दूँगा मीन की आश को !!
कैसे देखूँगा घोंघे निराश को ?
कागज की ये नाव कब से खड़ी है,
पानी की बाट जोहती अड़ी है !!
भुन चुके ,जल चुके इस समंदर को
तिजोरियों में बंद कर रखो इसे,
तुम्हारे काम आयेगा
जब मुर्दों के बाजार में
दुकान तुम लगाओगे।।।
चुल्लु भर पानी भी नहीं
डूब कर मरुँ भी तो कहाँ।
मेरी बेबसी
तुम्हारी खुदगर्जी
मेरी फाँकाकशी
तुम्हारी ऐयाशी
फोटो बना लो, गीत भी अच्छे बनेंगें
तिजोरियों में बंद कर रखो इसे,
तुम्हारे काम आयेगी,
जब मुर्दों के बाजार में
दुकान तुम लगाओगे।।।
यूँ समझिये १
दिल्ली जाने वाली कोइ ट्रेन दिल्ली नहीं है। उस ट्रेन का कोई डब्बा भी दिल्ली नहीं है। उस ट्रेन की कोई बर्थ या सीट भी दिल्ली नहीं है। दिल्ली जाने का टिकट भी दिल्ली नहीं है। और दिल्ली जाने का टिकट जिस खिड़की से आपने लिया वह भी दिल्ली नहीं है। जिस स्टेशन के जिस प्लेटफार्म पर आप ट्रेन पकड़ेंगे वह भी दिल्ली नहीं है।
दिल्ली तो आप तब पहुंचेंगे जब आप दिल्ली जाने वाली ट्रेन से उत्तर चुके होंगे और आपके हाथ से दिल्ली का टिकट भी ले लिया गया होगा तथा दिल्ली के साइनबोर्ड वाले प्लेटफार्म से आप बाहर आ चुके होंगे।
अब दिल्ली आपका गंतब्य है तो आपको दिल्ली की टिकट भी लेनी ही होगी ,किसी स्टेशन पर जाकर दिल्ली वाली ट्रेन भी पकड़नी ही होगी , दिल्ली पहुंचने तक उस रेल के उस डिब्बे में नियम पूर्वक यात्रा भी करनी ही होगी।
और अंततः इतने प्रयत्न से ,त्याग से लिया टिकट , वह ट्रेन , वह डब्बा , उसके सहयात्री ,सब को त्याग कर दिल्ली साइनबोर्ड वाले प्लेटफार्म को छोड़ते हुए दिल्ली पहुंचना होगा।
जिस ट्रेन के लिए इतनी मारामारी की वह गंतब्य पर छूट जाएगी।
दिल्ली जाने वाली कोइ ट्रेन दिल्ली नहीं है। उस ट्रेन का कोई डब्बा भी दिल्ली नहीं है। उस ट्रेन की कोई बर्थ या सीट भी दिल्ली नहीं है। दिल्ली जाने का टिकट भी दिल्ली नहीं है। और दिल्ली जाने का टिकट जिस खिड़की से आपने लिया वह भी दिल्ली नहीं है। जिस स्टेशन के जिस प्लेटफार्म पर आप ट्रेन पकड़ेंगे वह भी दिल्ली नहीं है।
दिल्ली तो आप तब पहुंचेंगे जब आप दिल्ली जाने वाली ट्रेन से उत्तर चुके होंगे और आपके हाथ से दिल्ली का टिकट भी ले लिया गया होगा तथा दिल्ली के साइनबोर्ड वाले प्लेटफार्म से आप बाहर आ चुके होंगे।
अब दिल्ली आपका गंतब्य है तो आपको दिल्ली की टिकट भी लेनी ही होगी ,किसी स्टेशन पर जाकर दिल्ली वाली ट्रेन भी पकड़नी ही होगी , दिल्ली पहुंचने तक उस रेल के उस डिब्बे में नियम पूर्वक यात्रा भी करनी ही होगी।
और अंततः इतने प्रयत्न से ,त्याग से लिया टिकट , वह ट्रेन , वह डब्बा , उसके सहयात्री ,सब को त्याग कर दिल्ली साइनबोर्ड वाले प्लेटफार्म को छोड़ते हुए दिल्ली पहुंचना होगा।
जिस ट्रेन के लिए इतनी मारामारी की वह गंतब्य पर छूट जाएगी।
इतिहास में भूलें होती ही है - कुछ मेरी , कुछ उनकी , कुछ आपकी भी। इसी इतिहास में राजा ,रानी ,ज्ञानी, अभिमानी , मदमत्त , प्रतिभाशाली , बलशाली सभी की भूलें भी होती है - कुछ सही हुआ होता है -कुछ गलत। कुछ जब हुआ तब तो गलत था पर बाद में सही होता चला गया। कुछ हुआ तो सही ही था पर होता गया गलत।
कौन जानता है कितनी गलती -किसकी गलती। किसके जख्म -किसकी मरहम।
इतिहास तो इतिहास होता है , एक बार जो इतिहास बन गया उसे दोबारा बदला नहीं जा सकता , बनाया नहीं जा सकता।
हाँ , उसे अपने विवेक से या अपनी निति से या राजनीती से लिख -बता सकते हो। ढँक सकते हो। इतिहास तब भी फिर से लिखा जाना -बन जाना -मिट जाना मुमकिन नहीं।
कौन जानता है कितनी गलती -किसकी गलती। किसके जख्म -किसकी मरहम।
इतिहास तो इतिहास होता है , एक बार जो इतिहास बन गया उसे दोबारा बदला नहीं जा सकता , बनाया नहीं जा सकता।
हाँ , उसे अपने विवेक से या अपनी निति से या राजनीती से लिख -बता सकते हो। ढँक सकते हो। इतिहास तब भी फिर से लिखा जाना -बन जाना -मिट जाना मुमकिन नहीं।
Tuesday, 4 July 2017
उन्हें १९६२ के अपने किये पर शर्म आती है क्या -जब वित्त मंत्री ने सेना के लिये अतिरिक्त धन सेंक्शन करने से मना कर दिया था और जब रक्षा मंत्री प्रधानमंत्री के पास गये तो खा गया की यह दो मंत्रालयों की आपस की बात है - प्रधानमंत्री इसमें क्या करे। जब सेना को लगभग नंगे पेअर या फ़टे हुए जुटे और स्वेटरों -जर्सी के बल बुते बर्फीली चौकियों पर तैनाती का आदेश दिया गया।
उसकी शक्ति आपकी घृणा और विरोध ही है।
काले के प्रति आपका प्रेम और अभी भी उसीके प्रति " पुनर्जन्म लो , बढ़ो , रक्तबीज बनो " ,आपका यह आशीर्वाद भी रियेक्सन कर उसे शक्ति देता है।
आपका विश्वास है " काला ही बना रहेगा " - उसका प्रयास है " काला को जाना ही होगा "।
टुकड़े , आजादी और काला , इन्हीं के प्रति अपने प्रेम के कारण आप उससे घृणा करते हो।
अपनों के प्रति विद्वेष के कारण आप केवल खुद से प्रेम करते हो।
केवल खुद से प्रेम के चक्कर में और सब से घृणा करते हो , खुद के आलावा सब का विरोध करते हो !
बस आपके इसी विरोध हुए घृणा से वह मजबूत हुआ जाता है।
" काला " के आपके आग्रह -प्रेम के कारण ही प्रकाश चाहने वाले उससे प्रेम करते हैं।
काले के प्रति आपका प्रेम और अभी भी उसीके प्रति " पुनर्जन्म लो , बढ़ो , रक्तबीज बनो " ,आपका यह आशीर्वाद भी रियेक्सन कर उसे शक्ति देता है।
आपका विश्वास है " काला ही बना रहेगा " - उसका प्रयास है " काला को जाना ही होगा "।
टुकड़े , आजादी और काला , इन्हीं के प्रति अपने प्रेम के कारण आप उससे घृणा करते हो।
अपनों के प्रति विद्वेष के कारण आप केवल खुद से प्रेम करते हो।
केवल खुद से प्रेम के चक्कर में और सब से घृणा करते हो , खुद के आलावा सब का विरोध करते हो !
बस आपके इसी विरोध हुए घृणा से वह मजबूत हुआ जाता है।
" काला " के आपके आग्रह -प्रेम के कारण ही प्रकाश चाहने वाले उससे प्रेम करते हैं।
GST और Computerisation तथा Online से ऑफिसर्स को सबसे अधिक परेशानी होने जा रही है। सरकारी नौकरी का सारा चार्म ही खत्म हो जायेगा।
सारे लैंड रेकर्ड कम्प्यूटराइज्ड , सारे सर्टिफिकेट कम्प्यूटराइज्ड , पासपोर्ट कम्प्यूटराइज्ड , रेल -हवाई -सिनेमा -होटल , सब सेवा कम्प्यूटराइज्ड। बैंक सेवा कम्प्यूटराइज्ड।
अफसर और दलाल की तो हो गयी ऐसी की तैसी।
सारे लैंड रेकर्ड कम्प्यूटराइज्ड , सारे सर्टिफिकेट कम्प्यूटराइज्ड , पासपोर्ट कम्प्यूटराइज्ड , रेल -हवाई -सिनेमा -होटल , सब सेवा कम्प्यूटराइज्ड। बैंक सेवा कम्प्यूटराइज्ड।
अफसर और दलाल की तो हो गयी ऐसी की तैसी।
प्रतिदिन लगभग बीस लाख ट्रक विभिन्न सेल्स-ऑक्ट्राय आदि चेक पोस्ट से क्रॉस करते थे और एक परम्परा सी बन गई थी चेकपोस्ट खर्च -थोड़ा सा जल्दी , नहीं तो घंटो इंतजार। बीस लाख ट्रक x कम से कम १०० रूपये = २०००००००० x वर्ष के ३६५ दिन = ७३००००००००० साल का कम से कम ७३०० करोड़ का सिम्पल ब्लीक ब्लैक मनी , लगभग इससे दस गुना ब्लैक मनी स्पेशल ग्रेड के , राज्यों के टैक्स रेट डिफ़रेंस के कारण। लगभग एक से दो लाख करोड़ ब्लेक मनी के मुख द्वार इस निगोड़े जी एस टी ने बन्द क्र दिये।
Monday, 3 July 2017
Sunday, 2 July 2017
भाई , ये स्मार्ट फोन , ये नेट -इंटरनेट ने तो मारने का हिसाब लगा दिया - क्या खूब थे वे दिन जब खाता बहियों में लिखते थे - चन , कहते थे हमारे यहाँ मात्रा लिखने की परम्परा नहीं है ,कुछ कहते थे निषेध है छुतका है , कुछ कहते थे मात्रा लिखनी ही नहीं आती - और जब जो मर्जी हुआ समझते -समझाते थे - चन माने चुना , चीनी , चना। इस तरह की बहुत सी ट्रिक थी।
दो बिंदी साफ बही खाता।
रोकड़ बही महीनों नहीं तोड़ना।
ओपनिंग स्टॉक या क्लोजिंग स्टॉक को खाली रखना।
सेल्स टैक्स वाले के पकड़ने पर सप्लाई वाले से और सप्लाई वाले के पकड़ने पर सेल्स टेक्स वाले से बहियो का सत्यापन करवा लेना।
जो बोलते थे की गुजरात के बाहर इसको जनता ही कौन है - जाओ चाय बेचो , दुनिया के नक्से में कौन देश कहाँ है यह भी नहीं पता इसको वे अब क्या सोच रहे है ? इसको तो वीसा भी नहीं मिलेगा ?
ये कैसा है - ज्यूडिसियरी से तन गया , वकील से भी तना तानी , ब्यापारी को भी आँख दिखाया, राष्ट्र हिट की ब्रह दिखाया , सी ए को समझा रहा -राष्ट्र हित समझा रहा , पाकिस्तान में घुस क्र मारा , म्यांमार में घुसा , चीन को बराबरी में आँख दिखाता , वानी ऐसे कितनो को सीधे देख लेता , सीधे कब्रिस्तान और श्मशान दोनों की बराबरी की बात करता।
इतनी सब ने मिल क्र आग लगाई , नोटबंदी पर पब्लिक विरोधियों के साथ न आई।
पर पब्लिक इसके साथ क्यों भाई।
ये कहाँ से कोविन्द ले आया।
ये कैसा है - ज्यूडिसियरी से तन गया , वकील से भी तना तानी , ब्यापारी को भी आँख दिखाया, राष्ट्र हिट की ब्रह दिखाया , सी ए को समझा रहा -राष्ट्र हित समझा रहा , पाकिस्तान में घुस क्र मारा , म्यांमार में घुसा , चीन को बराबरी में आँख दिखाता , वानी ऐसे कितनो को सीधे देख लेता , सीधे कब्रिस्तान और श्मशान दोनों की बराबरी की बात करता।
इतनी सब ने मिल क्र आग लगाई , नोटबंदी पर पब्लिक विरोधियों के साथ न आई।
पर पब्लिक इसके साथ क्यों भाई।
ये कहाँ से कोविन्द ले आया।
अपनी कमियों को खुद नजरअंदाज कर आप केवल दूसरों की कमजोरियों का कितना लाभ उठायेंगें।
या फिर अपने विरोधियों द्वारा आत्महत्या कर ही लेने तक का इंतजार करोगे क्या।
आप की अपनी कमियाँ अब छिपी नहीं रह गई है। आंटे में नमक की तरह भी नहीं तह गयी है। सत्तर अस्सी साल पुराना घुन- दीमक लगा आपका अपना भी घर है। आपका घर भी बहुत महक रहा है।
केवल विपक्षी की बहुत बड़ी गलती का इंतजार कब तक करेंगें ?
या फिर अपने विरोधियों द्वारा आत्महत्या कर ही लेने तक का इंतजार करोगे क्या।
आप की अपनी कमियाँ अब छिपी नहीं रह गई है। आंटे में नमक की तरह भी नहीं तह गयी है। सत्तर अस्सी साल पुराना घुन- दीमक लगा आपका अपना भी घर है। आपका घर भी बहुत महक रहा है।
केवल विपक्षी की बहुत बड़ी गलती का इंतजार कब तक करेंगें ?
नोटबंदी ,ममता , माया , (....... ) , (......... ) , केजरी , राजा , काजीमोनी ,आधार , बेनामी , सी ए की जेलबंदी , चीफ सेक्रेटरी पर छापा ,जी एस टी , सी ए कांफ्रेंस में भाषण , में कोई तो कनेक्शन है।
फिर यह एलान की यह आगे ही बढ़ेगा -चलते रहेगा - कितनों की नींद हराम।
निन्यानबे प्रतिशत सुख चैन से।
बाकि अब और प्रखर कडुआ प्रचार में लग जाने को विवश।
ठीक ही वे लोग अपने वाट्सएप में लिख फारवर्ड कर रहे है - गलती ही हो गई।
पर निन्यानबे प्रतिशत समझ भी रहे है।
अब वे एक प्रतिशत संविधान से भी परेशान। इस शख्श से भी परेशान। शायद पन्द्रह प्रतिशत वालों को उकसावें।
रहा सहा रामनाथ कोविन्द।
काले दिल वालों का और काली पॉकेट वालों की तो शामत ही आ चली।
सब्सिडी गटक कर फॉरेन जाने वालों का अब क्या होगा।
फिर यह एलान की यह आगे ही बढ़ेगा -चलते रहेगा - कितनों की नींद हराम।
निन्यानबे प्रतिशत सुख चैन से।
बाकि अब और प्रखर कडुआ प्रचार में लग जाने को विवश।
ठीक ही वे लोग अपने वाट्सएप में लिख फारवर्ड कर रहे है - गलती ही हो गई।
पर निन्यानबे प्रतिशत समझ भी रहे है।
अब वे एक प्रतिशत संविधान से भी परेशान। इस शख्श से भी परेशान। शायद पन्द्रह प्रतिशत वालों को उकसावें।
रहा सहा रामनाथ कोविन्द।
काले दिल वालों का और काली पॉकेट वालों की तो शामत ही आ चली।
सब्सिडी गटक कर फॉरेन जाने वालों का अब क्या होगा।
Saturday, 1 July 2017
सी ए सब बड़ा गुस्सा में है।
ये अकेला ऐसा आया है जो आज के पहले कभी मेरे दरवाजे नहीं आया था , भिखमंगा कहीं का। सी ए की सेवा लेने के लिए पहले लक्ष्मी पुत्र हो कर आना पड़ता है। तू क्या जाने सी ए का महत्व। दो चार ड्रेस के आलावा तेरे पास है ही क्या ?
सी ए पर बोला है न।
कुछ है ही नहीं तो बोल गया। न तो इतना बोलने पर तोइतना रेड करवा देते की बाप बाप करता।
भिखमंगे कहीं के , बाल बच्चा परिवार है ही नहीं।
ये अकेला ऐसा आया है जो आज के पहले कभी मेरे दरवाजे नहीं आया था , भिखमंगा कहीं का। सी ए की सेवा लेने के लिए पहले लक्ष्मी पुत्र हो कर आना पड़ता है। तू क्या जाने सी ए का महत्व। दो चार ड्रेस के आलावा तेरे पास है ही क्या ?
सी ए पर बोला है न।
कुछ है ही नहीं तो बोल गया। न तो इतना बोलने पर तोइतना रेड करवा देते की बाप बाप करता।
भिखमंगे कहीं के , बाल बच्चा परिवार है ही नहीं।
केवल एक पन्ने पर नाम लिख कुल बैंक खाता , , बिना पैसे जमा बनता ड्राफ्ट , बिना डॉक्युमेंट बैंक लोन सरकारी रिकार्ड रूम से निकलवा कर बना दिया - बदल दिया गया सर्वे रिकार्ड , जमींदारी रिटर्न , सेल्स टेक्स रिटर्न , प्राइम मिनिस्टर हॉउस का मुलाकाती रजिस्टर , कोयला आबंटन की फाइल ही गायब , आदर्श घोटाले की फाइलें ही जल जाना , ब्यापम घोटाले के अनेक लोगों की क्रमशः दुर्घटना में मौत , सी एम् की आर्डर शीट पर कागज चिपका कर लिखा नया आर्डर शीट , खुले न्यायालय में सबके सामने बोल कर स्टेनो को लिखवाया फैसला जो चैंबर में जा कर बदले, फैसला घोषित होने के पहले जिस फैसले की प्रति सुबह से ही कॉरिडोर में बँट गई हो , शिबू शोरेन-रामलखन सिंह वाला फैसला , ए एन राय का महापदधारी बन जाना , सांई प्रशांत निलयम तथा मिश्रा जी महामाननीय - कितनी है भाई
नकली इन्वॉयस ,सर्टिफिकेट , लाइसेंस ,परमिट ,सील , मोहर , स्टाम्प , पैकिंग ,प्रोडक्ट , फैसला , रिलीज आर्डर , पर्चा ,रसीद , बिल , अपॉइंटमेंट , अप्प्पोइंटमेंट लेटर , मीटिंग , मीटिंग के मिनट्स , रिजोल्यूशन , बैंक इंट्री , नकली बैंक लोन , नकली शेयर ट्रांसफर , नकली ट्रांसफर इंट्री , चेकपोस्ट पर नकली पास इंट्री और जो पास हुआ उसकी इंट्री नहीं , नकली एफेडेविट , नकली मुकदमे , नकली बैलेंस सीट , नकली खाते , बही , नकली लीज , नकली ट्रस्ट , नकली एग्रीमेंट , नकली ट्रांसफर , नकली हाजरी बही , नकली एडमिशन रजिस्टर , नकली आर सी , नकली एन ओ सी , नकली मीटिंग , नकली डायरेक्टर , नकली सी एम् और अंततः नकली पी एम् - यही सब हमारी दैनिक क्रिया कलाप बन गए थे।
जब सौ दो सौ लड़कों को एक कैम्पस या भी आई पी इलाके में नारे लगाने को सुरक्षा का आश्वासन दे उकसा कर इकट्ठा कर फिर उसकी विडीयो बना उसे राष्ट्रब्यापी जन आन्दोलन बता टी वी चैनलों पर चलवते हो तो कौन सा तन्त्र विकसित हो रहा होता है ।
ऐसे शो के प्रोड्यूसर ,डायरेक्टर और उकसाये गये लोग की फन्डींग कौन कर रहा है और क्यों।
ऐसे प्रोग्राम किये सिखाये गए प्रीप्लान शो को प्रचार प्रसार कौन और क्यों गलत लेबल ,डायरेक्शन, सेटअप , रिफरेंस और मैग्नीच्यूड , डिस्परपोस्नेट फैला या सिकोड़ कर किसने और क्यों फैलाया -पब्लिसिटी दी , मनो वही अखिल भारतीय वातावरण हो।
कैसे कैसी शब्दावली गढ़ी जाती थी।
यही पचासों साल से फर्जी कंनियों की जग जाहिर स्थिति थी। कभी इसे किसी ने ब्यापक प्रचार प्रसार क्र इस बिंदु पर जनमत बनाने की कोशिश की ?
इतनी फर्जी घालमेल आर्थिक लेनदेन , बचत , ऋण , चिट फंड , कृषि विनियोग , आदि अदि के बारे में कभी किसी ने आवाज उठाई।
डाक्टरों द्वारा कमीशन खोरी , वकीलों के घाल मेल , चार्टर्ड एकाउंटेंट के घाल मेल , आई ए एस आदि के घाल मेल पर कभी किसी ने कोई बड़ा क्या छोटा भी आंदोलन करने की शुरुआत भी की ?
लगभग सब कुछ ऑनलाइन हो जाने से इंस्पेक्टर राज और हरासमेंट में कमी तो आएगी क्यों कि ग्रे एरिया कम होंगी और सब कुछ ट्रांसपेरेंट कम्प्यूटर मॉनीटर्ड होगा।
पर परेशानी ( नुकसान ) उन टैक्स चोरों को तो होगी ही। जो जनता से कर लेकर भी सरकार को नहीं देते थे और नेता ब्यापारी इंस्पेक्टर से मिल कर बाँट चूंट कर खा पका जाते थे और दोनों फिर बाहर जा कर एक दूसरे को गलियां दे के पब्लिक को मुर्ख बनाते थे।
पर परेशानी ( नुकसान ) उन टैक्स चोरों को तो होगी ही। जो जनता से कर लेकर भी सरकार को नहीं देते थे और नेता ब्यापारी इंस्पेक्टर से मिल कर बाँट चूंट कर खा पका जाते थे और दोनों फिर बाहर जा कर एक दूसरे को गलियां दे के पब्लिक को मुर्ख बनाते थे।
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