Monday, 31 July 2017

संघ एक सामान्य शब्द के रूप में भी स्वीकारें। भारत में एक आप ही का संघ नहीं है।  ये तो कांग्रेसी मानसिकता थी की संघ शब्द को रूढ़ि अर्थ दे डाला और आप जैसे लोग उसी में बह गए।  अनेक राष्ट्रद्रोहियों के अपने अपने अलग संघ है इसी देश में। 
कुछ लोग बस चाहते हैं कि आप उनके नाम यश प्रभाव में रहें , उसी से जाने पहचाने जायें ।
आपकी अपनी पहचान उन्हें अखरती है। 
राजनीति यदि लोभियों ब्यभिचारियों  का कवच बना दी जाये और राजनीतिज्ञ आम जन को बेईमान होने के लिए षड्यंत्र कर उकसायें तो जनता का धर्म है उनके जाल में न फंसे। 
औरंगाबाद में सामंतशाही आज भी विकृत रूप में है।  मैंने झेला है।  शायद आपके अंदर के विद्रोही स्वरूप ओरंगाबाद जैसी सामाजिक संरचना वाली पृष्ठभूमि में अधिक सटीक , सार्थक , ब्यवहारिक , उपादेय , उपयुक्त है। 
यदि आप घृणा से बचना चाहते है
तो आपको भी घृणा का अधिकार नहीं। 
जो हमें कानून के बारे में सचेत करे
उससे हम सबइतना चिढ़ते क्यों है 
हमारे खून में है कानून तोड़ने के जीन 
और राज्य के प्रति अवज्ञा का भाव 
हमें कानून तोड़ने में इत्ता मजा क्यूँ आता है ?
बस इसी में अपना दिमाग लगाते  है ,क्यों ?
अक्कड़वादी , फक्क्ड़वादी ,टक्करवादी , कटटरवादी - कोई भी , कहीं  भी हो ; मेरा या आपका , ईमानदारी से विरोध होना ही चाहिये।
घृणा से सचमुच घृणा होनी चाहिये। 

Sunday, 30 July 2017

उनकी एक ही उम्मीद
साथ रहो  बिना न नुकुर के
जो कहा जाय , करो -
बिना न नुकुर के 
सरे आम मँच पर कहना
पर कान  में कहना , सुनना
यही तो है राजनीति 

Wednesday, 26 July 2017

अनुभव से मात्रा बोध और अनुपात - विश्लेषण की क्षमता में परिपक्वता आती है। पढ़ने से अधिक करने से अनुभव आता है। 
अपने न्यायालय से भिन्न विषयों पर ,अथवा सामान्य विधिक दर्शन पर लिखने के लिए बहुत कुछ है।
आपकी शहीद के प्रति भावना और संस्मरण देख कर अच्छा लगा।  आप सशक्त लेखनी के धनी है।
साहित्यिक अथवा न्यायशास्त्रीय विषयों पर लिखें।  अपने उच्च न्यायालय के अथवा उच्चतम न्यायालय के न्यायनिर्णयन पर टिका टिप्पणी से बचे. अपने न्यायालय की किसी घटना , मुकदमे , परिस्थिति पर चर्चा को आमंत्रित  न करें।
आपका किखा संस्मरण पसंद आया।  न्यायालय का आपका काम अच्छा माना जाता है। 
इशू साम्प्रदायिकता , वोट १५  %
इशू भ्र्ष्टाचार से लड़ाई ; वोट कितना ?
चतुराई से जोड़ घटाव चल रहा है  ?
क्या इस देश में भ्रष्टाचार से दुखी होकर कोइ भी वोट पड़ता है , पड़ेगा ?
एक तुम्हारा देखा , सुना , कहा  ही नहीं ; और भी बहुत से आयाम है.
 - हो सकता है उनमें से कोई तुम्हारे  वाले से भिन्न हो !
तुम्हीं फूल एन्ड फाइनल सही ही हो ?
और दूसरे जो भिन्न मत रखते-कहते -समझते -देखते हैं ; वे सब गलत ही है ?
यह मैं अभी से कैसे मान  लूँ !

Tuesday, 25 July 2017

मुझे मेरा धर्म ,पन्थ पर ही आश्रित मेरे अस्तित्व से प्रेम करने की बाध्यता से मुक्त करो।
अपने घृणा के बीज अपने पास रखो।
मुझे तुमसे घृणा करने के लिए आदिष्ट होने से चिढ़  है।   
हर समय, हर विन्दु पर असहमति आवश्यक तो नहीं। सहमत होने की आदत डालो , साहस पैदा  करो। 
मैं अंत अंत तक स्वयं को अंतिम मानने को तैयार नहीं।  मेरे दिल-दिमाग के एक कोने की खिड़की फ्रेश हवा-प्रकाश -विचार के आवागमन के लिए सदैव खुली रहती है।  यह खुली रखना मेरी मजबूरी भी है क्योकि  इसे केवल घृणा के दरवाजे -कुण्डी -ताले  से बन्द  किया जा सकता है जिसके लिए  मैं तैयार नहीं। 
शायद कांग्रेस कल्चर का विदाई समारोह कल आयोजित हुआ। 
जज को ब्यक्ति-समाज-ब्यवस्था , भूत-वर्तमान -भविष्य  के बीच संतुलन का दायित्व है।
स्वयं एक ब्यक्ति हर स्थिति में नीतियों का इतना दबाव सहन नहीं कर  पाता अतएव अपने अधिकार की अंतिम सीमा तक सुरक्षा नहीं कर पाता।
अधिवक्ता को समाज से केवल ब्यक्ति के पक्ष में अंत तक खड़े रहने का अधिकार और प्रशिक्षण प्राप्त है।
और अधिवक्ता सामाजिक - नैतिक - कालिक दबाव में भी ब्यक्ति के अधिकारों की रक्षा ब्यवसायिक चातुर्य से करते है , अपनी ब्यक्तिगत सामाजिक निष्ठा और मूल्यों को हानि पहुंचाए बिना। 
अजीब अतुल्य अहँकार तो अब भी है , दूसरे को हेय देखने की प्रवृत्ति आज भी है , ये आज भी सम्मान को अपने घर की दाई मानते हैं और सम्म्मान के लिए संघर्षरत दूसरों को अपमानित करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार। 
मानवीय क्रियाओं में प्रकृतिजनित असफलताओं के वहन के लिए कम्युनिज्म में क्या ब्यवस्था है। सरप्लस कहीं  भी कम्युनिज्म को स्वीकार नहीं। तो सहज स्वाभाविक असफलता कौन वहन करेगा। 
न मैं हारूँगा , न ही हारने  दूंगा।
झुका हुआ शीश , चाहे मेरा या तुम्हारा - मुझे अच्छा नहीं लगता।
मैं बस इतना चाहता हूँ - मैं लड़ता रहूँ .......  . और लड़ता ही रहूँ  .......  .  

Wednesday, 19 July 2017

कारागृह -यह शब्द कौन सा सन्देश दे जाता है

Tuesday, 18 July 2017

खोज रहा हूँ ,  कोई कारण नहीं की मिलेगा ही नहीं ; अभी निराश   नहीं 

Monday, 17 July 2017

कोई ईमान का ब्यापारी बना बैठा , कोई चोर बचपन का
बड़ा ललकारे , कोइ आप सबको , शोर मचाये छप्पन का 
राजनैतिक चिन्तन स्वाग्रही  होता है।
आवश्यक नहीं की वह सामाजिक चिन्तन की तरह आनुपातिक अथवा विवेक-चिन्तन की तरह नैयायिक भी हो।
 राजनैतिक चिन्तन हठ पूर्वक स्वनिर्धारित लक्ष्य की संघर्ष यात्रा करते जीतता या हारता रहता है और यही राजनैतिक चिन्तन का मूल है। 
न कोई ब्यक्ति , न ही विचार , न कोई क्रिया , न ही कोई काल , न ही कोई मत - कोई  भी पूर्ण नहीं , सभी अपने फ्रेम में  संगत , आउट ऑफ़ फ्रेम - इरिलिवेन्ट।
फिर पसंद भी अपनी अपनी।
हर ब्यक्ति को अपना अतिरेक शायद पसन्द आते रहता है।  यही स्वभाव है।  यही स्वाभाविक है।  और इन्हीं दो विकल्पों का संघर्ष ही जीवन है। 
सादर असहमत होना अप्रतिम गुण है।  परमात्मा यह गुण न्यूनाधिक मात्रा में मुझे भी देना। 
संघर्षजीवी राष्ट्रप्रेमी !
 घृणा और घृणा फ़ैलाने वालों के खिलाफ  आज भी जंग जारी है , रहेगी।
 जीतने  या हारने के लिए नहीं - अनुचित-अन्याय , अतिरेक , अतिरंजना , उन्माद के खिलाफ। 
यह जानते हुए भी की उकसाने वाले बाज  नहीं आवेंगे। 
तब भी यह बताते हुए की विरोध करने वाले और विरोध में लड़ने वाले भी कब बाज आवेंगे। 

Friday, 14 July 2017

अभिब्यक्ति की स्वतंत्रता हर बार केवल एक पक्ष को ही क्यों चाहिये - गालियाँ देने के लिए , टुकड़े कर देने - करवा देने के लिए , बर्बादी तक के लिए , वंदे  मातरम के विरोध के लिए , ... ट्टो के लिए प्रार्थना करने के लिए , .... द्दा...... ,ला...न की प्रसंसा गीत गाने के लिए , कस्साब की फाँसी का विरोध  करने के लिए , सेना को बददुआ देने  के लिए , देवी देवताओं की मनचाही विकृत पेंटिंग के लिए 
मेरा स्वाद सदा से कसैला , कभी कभी कडुआ  रहा है।  करनी सादी -सीधी -सही  ही रही। टेढ़ा बांका न समझ में आया , न किया , न कभी कर  पाया , न कभी चासनी मढ़ने -डुबाने चढ़ाने की कोशिश की - खरा खरा , कभी कभी खारा खारा भी। 
2018 में क्या , और क्या क्या , कब कब होना निर्धारित है ?  
कैलैंडर तो बन गया है , लगता है , प्रकाशित नहीं हुआ।  
मुझे तो कत्तई सुगबुगाहट भी नहीं। 
बस अंदाजीफिकेशन पर कयास। 
ए वाइल्ड गेस  या कहिये कोरी गप्प  !
उम्मीद की जानी चाहिये की मैं गलत साबित होऊं। 

Thursday, 13 July 2017

कोई एक झुकेगा , कोई एक टूटेगा , आज का गणित या आगे की योजना , या दोनों डूबेगा , या तीसरा लूटेगा तो यह तीसरा कौन होगा - कौन किसको जीम जायेगा।
या यह सब ड्रामा है , यूँ ही चलता रहेगा ?
जेडीयू विधायक दल में टूट का खतरा 
आप दीखते तो इत्ते बड़े हो ,
पर औरों के पैरों पर खड़े हो।
न जाने कहाँ कितना पढ़े हो
कब से यूँ हीं सिर पर चढ़े हो।
अपनी ही बात पर क्यूँ अड़े हो
यूँ  मुँह फुलाये कब से खड़े हो। 

Wednesday, 12 July 2017

लोकतंत्र भीड़ के अनुरूप या भीड़ का सम्मान करने की ब्यवस्था का नहीं वरन कानून और न्यायालय का सम्मान करने वाली व्यवस्था का नाम है।
लोकतंत्र की पूर्णता सम्पूर्ण बहुमत सम्पन्न प्रधानमन्त्री द्वारा न्यायालय का सम्मान करते समय ही दीखता है।
न्यायालय बहुमत से नहीं न्यायमत से भी सोचता है , इसी न्यायमत के प्रति श्रद्धा ही लोकतन्त्र  है। 
लो , अब कर  लो बात !
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट  @ बिहार प्रकरण।
माइनर @ कॉन्ट्रेक्ट एक्ट @ बिहार प्रकरण।
यह बच्चा शब्द यूँ ही नहीं है ,प्रभावी बचाव का दाव है।
या वेद्ब्यास ने कृष्ण को पद-पथ-यश -मर्यादा च्युत ( स्खलित ) दिखाया जानबूझ कर। 
कलम जीवी वेद्ब्यास ने केवल कृष्ण की ही रचना की , बाकि का तो यश-स्खलन ही करवाया  गया 
क्या पाप का घड़ा जब तक लबालब न भरे तब तक फोड़ना वर्जित है ?
क्या सौ पापों के बाद ही सजा - निन्यानवें पाप तक के पीड़ित क्या करें ?

Tuesday, 11 July 2017

यही श्रेष्ठता का दावा तो आप हजारों सालों  से करते आये हो और मुझे पापी , अधम , नीच बताते आये हो। अब मैं जान गया हूँ की मैं  पापी नहीं था ,अधम नहीं था , आपने मेरा बौद्धिक , शारीरिक ,आत्मिक वंशानुगत शोषण किया , मुझे बरगलाया , मेरी सदाशयता का  निर्मम अनुचित लाभ उठाया। आपने बलशाली धनशाली और कुटिल बुद्धिशाली ५-७ लोगों का जघन्य जोट्टा  बनाया और मेरी , मेरे परिवार की , मेरे बाल बच्चों की , मेरी महिला सदस्यों की गरिमा से खेलते रहे।
अब यह रुकेगा ही। 
अधिसंख्य ग्लानि -अपमान -अत्याचार मेरा भोगा हुआ सत्य है , गॉवों के बालकों , वृद्ध , महिलाओं के माध्यम से देखा समझा हुआ है , कर्तब्य निर्वहन में भी साक्षात् सूजी हुई आँखों से चिल्लाती जुबान को शरीर थरथराते देखा है , थोड़ा सा सहारा मिलते ही निर्बल लाचार कैसे ुधिया जाता है - मेरे दग्ध हृदय - दिल -दिमाग -लेखनी से पूछिए। 

Monday, 10 July 2017

संविधान में सभी के बराबरी से हैं परेशान।
 सबको मिला समान अधिकार और वोट - उससे भी परेशान।
 पहले हजारों साल के अन्याय का निवारण - अस्पृश्यता  के उन्मूलन से परेशान।
 और पूर्व में अवसर वंचित वर्ग के प्रति किये गए न्याय के प्रयास से परेशान  !
अब क्या कभी चरणामृत नहीं पीला पाएँगे।
 चरण प्रच्छालन करवावल जाओ यजमान - अब क्या कभी नहीं ?
हाय , अब हमारी चरण रज का क्या होगा ?
ग्लैमर और सेल्युलाइड की दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता - गद्दाफी की कैटरीना हो , सलेम की मोनिका बेदी , ममता कुलकर्णी , मुंबई बम धमाका- संजय दत्त हो ,  सन्नी लिओनी हो , ड्रग महाजन या फरदीन हो , पैसा दुबई  का हो या किसी और का 
बस हमारा चोरी कर  लिया स्वाभिमान  लौटा दो !
चरणरज सर पर लगाना जो सिखाया वह भुला दो।
चरणामृत पीना घुट्टी में पिलाया उसे हटा दो।
हमारे शारीरिक श्रम के मूल्य को न्यूनतम रखने और बेगारी के षड्यंत्र का पर्दाफाश कर दो।
हमे छू कर , हमारे साथ सो कर हम पर एहसान करने की परम्परा कैसे डाली बता तो दो।
ये स्वर्णजड़ित मुकुट - सिंहासन तुमने किस पुरुषार्थ से अरजे बता तो दो।
मुझे पूर्वजन्म और बाप-दादों के पाप से डराना कब तक बंद कर दोगे , बता दो।
मैं तुम्हारे घर की झूठन खा किस दिन पाप मुक्त होऊंगा बताते जाओ।
मुझे कब तक फेंक कर चवन्नी और दो बासी  रोटी मिलेगी।
मेरा पानी का बरतन कब तक वहाँ कोने में अलग थलग पड़ा रहेगा।
मुझे मेरी संतान का नाम कब तक सोमारू , मंगरा , बुधना , बिफना , सुकरा , शनिचरा , ऐतवारु  यही सब रखना ही होगा।
मुझे घोड़े पर चढ़ने कब मिलेगा।
मैं अपनी बेटी के ब्याह में कब बाजा बजा पाउँगा।
मैं कब आपको मालिक बोलना बंद कर  सकूंगा। 


आखिर चीन दूत से मुलाकात छिपाई ही क्यों थी , और फिर उसे झूठ क्यों बताया , फिर उसे सत्ता पक्ष द्वारा प्लांटेड न्यूज क्यों बताया - और अंत में उसे स्वीकारना क्यों पड़ा ?
जहाँ जाते हो पहले से मिडिया , यहाँ मिडिया को यह हिदायत की न्यूज मत बनाओ 
अज्ञेय , देखो !
देख सकते हो तो देखो
जिन्दगी ,उम्मीद , फुनगी
आज भी जिन्दा है
और रहेगी 
ठीक ही कहा , हाथ को कहूँ ,या हसुआ को या हथौड़ा को
घाव फैला शरीर में ,क्या कहूँ दाद दिनाय फुंसी फोड़ा को !!
हाँ कहूँ तो है नहीं , ना भी खा न जाय
हाँ ना के बीच में , साँई मेरा समाय 
मुझे गुलाम बना ले जो ,वह मेरा मौला , गुरु , खुदा ,भगवान , नहीं हो सकता।
मेरी साँसों औ लवों पे बैठा दिया पहरा जिसने ,वह मेरा ईमान नहीं हो सकता। 
अब सीख पाया हूँ गुर अपना होने का
अपनों के गुनाह का गवाह नहीं होना।
गर गुनाहों की तपिश बर्दाश्त  नहीं हो
अपना किसी को कभी बनाना ही नहीं। 
विश्व में शन्ति और मानवाधिकारों के अग्रदूत  - पाकिस्तान @ पूर्वी पाकिस्तान + लादेन , और चीन @ शयनमेंचौक  + भारतीय  कांग्रेस @ १९७० बंगाल , १९८४   दिल्ली , १९८९  भागलपुर 
नमक स्व -स्वादानुसार ही ग्राह्य 

Sunday, 9 July 2017

राजनीति का इतिहास इससे भी बड़ी बेवकूफियों की फेहरिस्त ही तो है। बुद्धिमत्ता और पवित्रता से यदि राजनीति  ही होती तो प्रजा भी न करती।  राजनीति अर्थात राजा की नीति अर्थात जो प्रजा की नीति न  हो।  राजनीति  जिसके पीछे राज हो अर्थात जो प्रत्यक्ष न हो। 
स्वतंत्रता के बाद के बिहार के सबसे दृढ़प्रतिज्ञ देदीप्यमान नो-नॉनसेन्स सर्व स्वीकार्य बेदाग नेता नितीश जी को कांग्रेस केंद्रीय रोल नहीं देने जा रही है , लगभग सिन्दिया ने स्पष्ट किया !
क्या कांग्रेस , पाक और चीन तीनो मिल कर  मोदी को हरायेंगे ?


राहुल चीन से और उनके करिंदे पाक के सम्पर्क में - खबर क्या सही है

सिंदिया ने तो बता दिया - अन्य किसी  के लिये कांग्रेस सीट खाली  नहीं करने जा रही - राहुल ही रहेंगे !
पर यह बात कहने के लिये सिन्दिया ही क्यों , हुए कहते हुए इत्ते तनाव में क्यों
LIG , MIG , HIG , केवल अर्थशास्त्रीय, सांख्यीय शब्द भर नहीं है - यह एक सामाजिक विश्लेषण  , समाज स्तरीय मनोवैज्ञानिक अध्ययन , शारीरिक -मानसिक -तार्किक - भावनात्मक  वर्गभेदमूलक शब्द है , क्लास भी डिफाइन करते है , परस्पर एक असंवाद -दुराव-अलगाव -खाई  को चिन्हित करते है।
इनमे से प्रत्येक एक दूसरे के प्रति अविश्वास - विस्मय  और अवसर की सी स्थिति रखता है।
एक को LIG  से निकल कर MIG तक जाना ही स्वप्न और असम्भव सा प्रतीत होता है और वह किसी असम्भव यात्रा के लिए तैयारी ही करता रह जाता है - रास्तों को ही खोजता -पहचानता रह जाता है , पर उसकी समझ उसका साथ नहीउं दे पाती।
HIG  तो अपने आपको श्रेष्ठ जान -मान  LIG या MIG  का तिरस्कार करना अपना अधिकार मान बैठा है।
MIG डरा रहता है कहीं नीचे नहीं खिसक जाये - ऊपर और आगे के लिये उसकी स्थिति LIG  वाले से भिन्न नहीं है।
HIG वाला भी मन ही मन यह तो जानता है की उसके ठाठ LIG को LIG  बनाये रखने से ही बने रह सकते हैं। 
खूब चमकाओ लैन्गों  सोला कलिया रो
खूब सजाओ बोरलो लख लख हीरा रों
गीत तो गावेला सगळा मिल उछाव स्यूँ
बाई बाँकी जिन सजायो जोहर चिता री 
मीरा बण्या तो झैर पीणो पड़सी
तेग बण्या बे शीश लेसी काट
गोबिंद बणस्यां चिणावै भीत माँ
गाँधी बण्या बे देसी गोली मार। 
कोई कुश्ती देखने भीड़ में खड़ा हो जाता है , कोई खेलने कुश्तीबाजों के बीच  ,
कोई कोई पहलवान बनने उस्ताद के सामने सर झुकाए अखाड़े में जा डटते है। 
जी हाँ , सब के बस की बात नहीं , दिया बन जल जाना अँधेरे से लड़ जाने के लिये।
हर सख्श जो दीप बन जला ,जानता है, सुबह होते ही वह बुझा दिया जायेगा। 

Saturday, 8 July 2017

जी यह सही है, कि साफ सीधे आदमी को गेम खतम होने के बाद गेम के अन्दर चलते गेम की चाल ,चरित्र और उनकी चाल दिखती ही  है या समझ में आती  ही है। 
गेम जो दीखता है , वह  होता नहीं। 
उसके नियम तो होते हैं पर उसके पीछे नीयत बदलते लोग गेम खेलते रहते हैं। 
अब सारे ब्यापारी संगठन , चार्टर्ड एकाउंटेंट , वकील इसी आधार पर कोर्ट में जायेंगे - हमारे यहाँ नेट नहीं , बिजली नहीं , जी एस टी लागू हो ही नहीं सकता , रोक दो।
कल तक घर घर का बच्चा स्मार्ट फोन पर चेटिंग करता घूमता था।  
अब नेट नहीं है।  
अकेले वकील समुदाय को समाज और संविधान में ब्यक्तिगत स्वतंत्रता और ब्यक्ति की मानवीय गरिमा को उसकी निजता और गोपनीयता के साथ और उसके प्रति पूर्ण निष्ठां और अधिकार के साथ राज्य और राष्ट्र , न्यायाधीश , और सभी दमन करि शक्तियों के सामने भी उन सब  के विरुद्ध भी खड़े होने का सर्वोच्च अधिकार प्राप्त है और शायद अधिवक्ता की संस्था का यही प्राण तत्व है। 
हाँ , सड़क ,ट्रेन , प्लेन आदि में हादसे होते रहते हैं।  यह जीवन चक्र के हिस्से है।
पर इनके बावजूद जीवन चक्र चलता रहता है निर्बाध , थोड़ा और सावधान - पर रुकता कोइ नहीं , रोकता कोइ नहीं।
बस इसी तरह फेसबुक , वाट्सएप या अन्य श्रोतों पर  पढ़े लिखे बच्चों , बृद्ध माता पिता , रिटायर्ड बुजुर्ग , देश  में दूर या विदेश में कार्यरत बेटे-बहू , बेटी -दामाद से संबन्धित किस्से कहानियों या हादसों के विवरण  से अपने चैन को डिस्टर्ब न करें।  ये हादसे हैं।  कहीं - कहीं , कभी - कभार हो ही जाते है , पर होते है हादसे।  सामान्यतः सब कुछ सुखद ही होता है। विश्वास करें - सब कुछ सामान्य सुखद ही होता आ रहा है। 
न गांघी , न नेहरू , न लाल बहादुर ,न राममनोहर , न इन्दिरा, न जयप्रकाश ,न नरसिम्हा , न बाजपेयी , न मनमोहन - मोदी भी अनन्त तक तो नहीं ही जायेंगे !
बस ५०  नेता , ५० अभिनेता , ५० कोट , ५० वर्दी , ५० पगड़ी , ५० थैली वाले , ५० कलम वाले , ५० रिंच-प्लास -औजार वाले, ५० दिमाग वाले , ५० टाई , ५० पीर औलिया महंथ , ५० काला गाउन , ५० उजला गाउन , ५० जेल के अन्दर वाले , पचास बम-गोली छुरे वाले  ५० जेल के बाहर वाले , ५० कोठे वाले , ५० कोठे वाली। बाकि के तो सरे मजदूर।  सर झुकाए पीछे पीछे पीछे चलने वाले। 
नोटबन्दी के समय से श्री मुख से निकला - बेनामी पर कार्रवाई  करो।  काला नगद नहीं सम्पत्ति में हैं। 

Friday, 7 July 2017

Only I am responsible for
What
Why
When
How
Where
Whose
-------I endure ( मै क्या बरदास्त करता हूँ,क्यों, कब, कैसे, कहाँ , कितना , किसका )
JB talk thi jindgi, BAHAR aur husn, hamari yad n aayee,
Hm rahe gairon me sumaar , hamari jeekr, fikr nahi aayee
Aaj JB maut saamne hai to ham apne hi to hai , yaad aaya
Aaj lahu maangte ho , us waqt to tune dar se pyasa lautaya

जब तलक थी जिंदगी में बहार , औ हुस्न , हमारी याद न आई
हम रहे गैरों में सुमार, हमारी जिक्र औ फ़िक्र तक न कभी आई।
आज जब मौत सामने है तो अपने ही है ,यह बात क्यूँ याद आई
आज लहू मांगते हो ,उस वक्त तो तूने दर से था प्यासा लौटाया।

Thursday, 6 July 2017

मैंने अपने एक प्रबुद्ध मित्र से पूछा - यह चीन का नया बखेड़ा क्या है।
उसने मुझे समझाया की पड़ोसी दुश्मन के यहाँ बारात आयी हो , अगुआ आया हो , छठी -कारज -परोजन हो तो दुश्मन पड़ोसी खिसिया कर उसी दिन समय अपनी नाली -टंकी साफ करवाता है कि कम से कम असुविधा तो पैदा होगी ही। जैसे ही समय बिता फिर यथावत दुश्मन।
अमेरिका-इजराइल यात्रा का इतना तो रियेक्सन होना ही था।  यदि यह नहीं होता या ऐसा कुछ नहीं होता तो मानो आपकी यात्राओं को किसी ने नोट ही नहीं किया।
आखिर चीन अपने मित्र पाकिस्तान को कुछ तो आश्वस्ति - दिलाशा  देगा न !

Wednesday, 5 July 2017

मैं तो फूट गया था ,
बूँद बूँद बह चला था ,
ऊपर से जो कुछ आता था
उसे सहेजता रहता था
पर था तो फूटा घड़ा
कब मैं तो भरता ही।
पर पता ही न चला
कब इन हरी  नर्म  घास की चादरों  ने
मेरे चारों ओर  अपना आसियाना बना लिया। 
पत्थर हो चली है हवा,

आग में भुन चुका है समंदर।

पत्थर हो गई इस हवा का

मैं क्या करूँगा, !

मेरे बच्चे, ये पेड़, ये पौधे,

मूक-वधिर से ये मृगछौने

अब उनकी साँस की आस भी नहीं
यह पत्थर हो चली हवा !

तिजोरियों में बंद कर रखो इसे,

तुम्हारे काम आयेगी !!

जब मुर्दों के बाजार में

दुकान तुम लगाओगे !!!

जला ही डाला इस सारे समंदर को।

भुन चके इस सम़ंदर का, मैं क्या करूँगा ?

सहन कैसे करूँ मेरी प्यास को,

क्या जबाब दूँगा मीन की आश को !!

कैसे देखूँगा घोंघे निराश को ?

कागज की ये नाव कब से खड़ी है,

पानी की बाट जोहती अड़ी है !!

भुन चुके ,जल चुके इस समंदर को

तिजोरियों में बंद कर रखो इसे,

तुम्हारे काम आयेगा

जब मुर्दों के बाजार में

दुकान तुम लगाओगे।।।


चुल्लु भर पानी भी नहीं

डूब कर मरुँ भी तो कहाँ।

मेरी बेबसी

तुम्हारी खुदगर्जी

मेरी फाँकाकशी

तुम्हारी ऐयाशी

फोटो बना लो, गीत भी अच्छे बनेंगें

तिजोरियों में बंद कर रखो इसे,

तुम्हारे काम आयेगी,

जब मुर्दों के बाजार में

दुकान तुम लगाओगे।।।
Shakal Shadi aur do chaar saal,
Akal,pahle, bad aur jindgi bhar
sampatti budhape mein
Sanskar peedhiyon tak
important rahte hain

शक्ल , शादी ,सावन - और दो चार साल
अक्ल - पहले भी ,बाद भी और जिंदगी भर
सम्पत्ति बुढ़ापे में
संस्कार पीढ़ियों तक
कामयाब रहते है , काम आते हैं
हमारे अवगुणों पर लज्जित होने की  बजाय उनका भी रचनात्मक उपयोग किया जा सकता है और उनसे भी नयी रचना ,उपयोगिता भी सृजित की जा सकती है। 
यूँ समझिये १
दिल्ली जाने वाली कोइ ट्रेन दिल्ली नहीं है। उस ट्रेन का कोई डब्बा भी दिल्ली नहीं है। उस ट्रेन की कोई बर्थ या सीट भी दिल्ली नहीं है। दिल्ली जाने का टिकट भी दिल्ली नहीं है। और दिल्ली जाने का टिकट जिस खिड़की से आपने लिया वह  भी दिल्ली नहीं है। जिस स्टेशन के जिस प्लेटफार्म पर आप ट्रेन पकड़ेंगे वह  भी दिल्ली नहीं है।
दिल्ली तो आप तब पहुंचेंगे जब आप दिल्ली जाने वाली ट्रेन से उत्तर चुके होंगे और आपके हाथ से दिल्ली का टिकट भी ले लिया गया होगा तथा दिल्ली के साइनबोर्ड वाले प्लेटफार्म से आप बाहर आ चुके होंगे।
अब दिल्ली आपका गंतब्य है तो आपको दिल्ली की टिकट भी लेनी ही होगी ,किसी स्टेशन पर जाकर दिल्ली वाली ट्रेन भी पकड़नी ही होगी , दिल्ली पहुंचने तक उस रेल के उस डिब्बे में नियम पूर्वक यात्रा भी करनी ही होगी।
और अंततः इतने प्रयत्न से ,त्याग से लिया टिकट , वह  ट्रेन , वह  डब्बा , उसके सहयात्री ,सब को त्याग कर दिल्ली साइनबोर्ड वाले प्लेटफार्म को छोड़ते हुए दिल्ली पहुंचना होगा।
 जिस ट्रेन के लिए इतनी मारामारी की वह गंतब्य पर छूट जाएगी। 
इतिहास में भूलें होती ही है - कुछ मेरी , कुछ उनकी , कुछ आपकी भी।  इसी इतिहास में राजा ,रानी ,ज्ञानी, अभिमानी , मदमत्त , प्रतिभाशाली , बलशाली सभी की भूलें भी होती है - कुछ सही हुआ होता है -कुछ गलत।  कुछ जब हुआ तब तो गलत था पर बाद में सही होता चला गया।  कुछ हुआ तो सही ही था पर होता गया गलत।
कौन जानता है कितनी गलती -किसकी गलती।  किसके जख्म -किसकी मरहम।
इतिहास तो इतिहास होता है , एक बार जो इतिहास बन गया उसे दोबारा बदला नहीं जा सकता , बनाया नहीं जा सकता।
हाँ , उसे अपने विवेक से या अपनी निति से या राजनीती से लिख -बता सकते हो।  ढँक सकते हो। इतिहास तब भी फिर से लिखा जाना -बन जाना -मिट जाना मुमकिन नहीं। 

Tuesday, 4 July 2017

१९६२ का चीन का आक्रमण विश्व राजनैतिक पटल पर मजबूत होते नेहरू के विरुद्ध ब्यक्तिगत लड़ाई थी।
आज मोदी के चमत्कारिक राजनैतिक प्रभाव के विरुद्ध वैसी ही अनहोनी से इन्कार  नहीं किया जा सकता। 
उन्हें १९६२ के अपने किये पर शर्म आती है क्या -जब वित्त मंत्री ने सेना के लिये अतिरिक्त धन सेंक्शन करने से मना कर  दिया  था और जब रक्षा मंत्री प्रधानमंत्री के पास गये तो खा गया की यह दो मंत्रालयों की आपस की बात है - प्रधानमंत्री इसमें क्या करे।  जब सेना को लगभग नंगे पेअर या फ़टे हुए जुटे और स्वेटरों -जर्सी के बल बुते बर्फीली चौकियों पर तैनाती का आदेश दिया गया। 
लाल मेघ कब बरसते है 
१९६२ की कमाई - वह  आज भी धमकाता है - ऐसा मारूँगा की १९६२ याद आ जायेगा।  १९६२ से भी बुरा हल करूंगा।  
मुझे जानता ही कौन था.......... ?
जर्रा से दरिया बना समन्दर का सपना दिखाया.......... !! 
कोई लिखेगा ही नहीं तो पढ़ोगे क्या , कब ,कैसे।
कोई बोलेगा ही नहीं तो सुनोगे क्या , कब , कैसे।
किसी एक ने लिखा या बोला - अनन्त पढ़ते रहते  हैं या सुनते रहते  हैं !!
उसकी शक्ति आपकी घृणा और विरोध ही है।
काले के प्रति आपका प्रेम और अभी भी उसीके प्रति " पुनर्जन्म लो , बढ़ो , रक्तबीज बनो " ,आपका यह आशीर्वाद भी रियेक्सन कर उसे शक्ति देता है।
 आपका विश्वास है " काला ही बना रहेगा " - उसका प्रयास है " काला को जाना ही होगा "।
टुकड़े , आजादी और काला , इन्हीं के प्रति अपने प्रेम के कारण आप उससे घृणा करते हो।
अपनों के प्रति विद्वेष के कारण आप केवल खुद से प्रेम करते हो।
केवल खुद से प्रेम के चक्कर में और सब से घृणा करते हो , खुद के आलावा सब का विरोध करते हो !
बस आपके इसी विरोध हुए घृणा से वह मजबूत हुआ जाता है।
" काला "  के आपके आग्रह -प्रेम के कारण ही प्रकाश चाहने वाले उससे प्रेम करते हैं। 
धीरे धीरे यह धरती नेतागिरी  और सरकारी नौकरी के लायक या सरकारी नौकरों या नेता  के लायक नहीं रह जाएगी।  
आज भी उग रहा अरुणाभ बच्चा सूरज कुछ उम्मीद बाँधे कुछ कह रहा
सुनूँ तो और देर हो जाएगी , अनसुनी कर निष्ठुर बन अब तक कब रहा ?
GST और Computerisation  तथा Online  से  ऑफिसर्स को सबसे अधिक परेशानी होने जा रही है।  सरकारी नौकरी का सारा चार्म ही खत्म  हो जायेगा।
सारे लैंड रेकर्ड कम्प्यूटराइज्ड  , सारे सर्टिफिकेट कम्प्यूटराइज्ड , पासपोर्ट कम्प्यूटराइज्ड , रेल -हवाई -सिनेमा -होटल , सब सेवा कम्प्यूटराइज्ड।  बैंक सेवा  कम्प्यूटराइज्ड।
अफसर और दलाल की तो हो गयी ऐसी की तैसी। 
प्रतिदिन लगभग बीस लाख ट्रक विभिन्न सेल्स-ऑक्ट्राय  आदि चेक पोस्ट से क्रॉस करते थे और एक परम्परा सी बन गई थी चेकपोस्ट खर्च -थोड़ा  सा जल्दी , नहीं तो घंटो इंतजार।  बीस लाख ट्रक x कम से कम १०० रूपये = २००००००००  x वर्ष के ३६५ दिन = ७३००००००००० साल का कम से कम ७३०० करोड़ का सिम्पल ब्लीक ब्लैक  मनी , लगभग इससे दस गुना ब्लैक मनी  स्पेशल ग्रेड के , राज्यों के टैक्स रेट डिफ़रेंस के कारण।  लगभग एक से दो लाख करोड़ ब्लेक मनी के मुख द्वार इस निगोड़े जी एस टी ने बन्द  क्र दिये। 
पहले बनो तो सही हिन्दू ,   तुमको तो हम  पाँव- प्रसिद्ध पातकी घोषित कर और खुद को मस्तक -पाप-पुंज-हारी बना ही लेंगे।
चरणामृत तो पि ला कर  ही छोड़ेंगे।
चरण-रज का तुम्हारे माथे पर तिलक तो लगा ही डालेंगें। 
जी एस टी आया , चेक पोस्ट संस्कृति ही हुई विदा ,
इससे किसका कितना फायदा , नुकसान
कोई वाहनमालिक -वाहनचालक , ब्यवसायिक - नौकरशाह  अर्थशास्त्री बतावें। 

Monday, 3 July 2017

आपकी जिंदगी आपसे बेहतर कौन जान सकता है , जरा बताते तो जाईये अपना किया कराया ! है हिम्मत तो बताईये !!
खुद ही तोड़ डाले अपने खिलौने हमने , नये की जो तलब हुई।
खेल लिया , मन भर गया , तोड़ दिया जब नये की तलब हुई। 
वक्त वक्त की बात रही , वक्त जो कहे वही है सही।
जिन जिन खिलोनो के लिये जब जब हम थे यूँ रोये
वक्त बदलते वे खिलौने तोड़े हमींने , नये की तलब !
केवल तलब ऐ स्वाद बदला ,वक्त की कही अब न रही। 
अधिकांश के पास गौरवशाली विस्तृत चमचमाता इतिहास था , है  !
मेरे पास तो न था , न है , न होगा , बस  मैं और मेरे ये दिन दो चार !!
अपनी चादर अपने बूनी , अपने धोई , अपने पसारी , अपने ही ओढ़ी
बूनी ,ओढ़ी , धोई ,  पसारी  चादर , साफ चमचमाती रहे , विश्वास है !
पाकिस्तान के सिवा और भी बहुत कुछ है इस  दुनिया में ऐ मोदी !
ऐ पाकिस्तान तुमने लगा क्यों दी सारी ताकत खिलाफ ए  मोदी !!
नमक का दरोगा वंशीधर 
अस्सी नब्बे साल से पालल  पोषल इत्ता मोटायल  भैंसियाँ गैइल पानी मैं , पगहा भी हाथे नाही ,
वंशीधर मिलता कहाँ  है ?
फिर वंशीधर की सफलता - अलोपीदीन का विरोध करना , हारना  या अलोपीदीन द्वारा वंशीधर का अभिनन्दन ही वंशीधर का जीतना। ... 
कुछ ही कायदे के दमदार लोग है जो हिम्मत से कभी कभार काम ले लिया करते है
जमाने में लोग तो कौरवों की ससमुह वीर सभा और स्खलित शौर्य पांडव  से रहते है  
ए एन राय  हैं विस्मृत लघु कथा
खन्ना हो गए अमर चित्र कथा 

Sunday, 2 July 2017

चोरी राजधर्म और समाज -वृत्ति हो जाये एवं जब चोरों को मंदिर में प्रतिष्ठित कर चोर पुजारी भोली जनता से चोरों की जय जय कार करवावे - यह सब बर्दास्त करने वाले हम क्या हैं 
सारे  जुगाड़ थे , सब धरे के धरे रह गये , कुछ काम न आया , न कैम्पस , न आजादी , न टुकड़े , न मौत की अफवाह ।  कुछ भी नहीं चली। 
ये पब्लिक है - सब जानती है। 
लंगोट बाँध जरा कायदे से हिम्मत बाँध ,साँस थाम , आँख खोल , दिमाग लड़ा ;लड़ जाओ।
लड़ोगे तो ही न जीतोगे और जिओगे। 
जिस दिन पुलिस , जज , वकील , सी ए  और डाक्टर बदल जायेंगे ,केवल राष्ट्रिय हित  में काम करेंगें , सब कुछ एकदम से सुधर जायेगा।
वैसे यह भी सही है की अभी जो कुछ बचा हुआ  है वह  भी इन्हीं की देन  है। 
जो सड़ा  है या जो सड़ रहा है वह  भी बाहर से नहीं आया है।
यदि आप मुझ पर , मेरे होने पर , मेरी प्रगति पर , मेरी उपलब्धि पर गर्व तो छोड़िये , संतोष भी अनुभव नहीं करते , मेरा होना -उगना -बढ़ना तक सार्वजनिक रूप से स्वीकार, बर्दाश्त  नहीं करते, कभी भूल क्र भी मेरे लिए प्रार्थना नहीं करते , तो मैं क्यों आपमें आस्था या गर्व आरोपित करूं ?
कोई ऍप ऐसा भी हो जो मुझे आपको और आपको मुझे मुकम्मल हमाम में दिखाए - ये मास्क दर  मास्क से अब अरुचि हो चली है। 
मैं वैसा दिखना चाहता हूँ जैसा हूँ। 
मेरे में और आप में साहस है क्या  की बिना मुखौटा के दिखे -   दिखाएँ  ?
http://marwarihistory.blogspot.in/

भाई , ये स्मार्ट फोन , ये नेट -इंटरनेट ने तो मारने का हिसाब लगा दिया - क्या खूब थे वे दिन जब खाता बहियों में लिखते थे - चन , कहते थे हमारे यहाँ मात्रा लिखने की परम्परा नहीं है ,कुछ कहते थे निषेध है छुतका  है , कुछ कहते थे मात्रा लिखनी ही नहीं आती - और जब जो मर्जी हुआ समझते -समझाते थे - चन माने चुना , चीनी , चना।  इस तरह की बहुत सी ट्रिक थी।  
दो बिंदी साफ बही खाता। 
रोकड़ बही महीनों नहीं तोड़ना।
 ओपनिंग स्टॉक या क्लोजिंग स्टॉक  को खाली रखना। 
सेल्स टैक्स वाले के पकड़ने पर सप्लाई वाले से और सप्लाई वाले के पकड़ने पर सेल्स टेक्स वाले से बहियो  का सत्यापन करवा लेना। 
जो बोलते थे की गुजरात के बाहर इसको जनता ही कौन है - जाओ चाय बेचो , दुनिया के नक्से में कौन देश कहाँ  है यह भी नहीं पता इसको वे अब क्या सोच रहे है ? इसको तो वीसा भी नहीं मिलेगा ?
ये कैसा है - ज्यूडिसियरी से तन गया , वकील से भी तना तानी , ब्यापारी को भी आँख दिखाया, राष्ट्र हिट की ब्रह दिखाया  , सी ए  को समझा रहा -राष्ट्र हित  समझा रहा  , पाकिस्तान में घुस क्र मारा , म्यांमार में घुसा , चीन को बराबरी में आँख दिखाता , वानी ऐसे कितनो  को सीधे देख लेता , सीधे कब्रिस्तान और श्मशान दोनों की बराबरी की बात करता।
इतनी सब ने मिल क्र आग लगाई , नोटबंदी पर पब्लिक विरोधियों के साथ न आई।
पर पब्लिक इसके साथ क्यों भाई।
ये कहाँ से कोविन्द  ले आया। 
अब तो जमा खर्ची मिलना भी बन्द।  निगाह रहेगी।  कोई ट्रांजेक्शन ओभरलुक नहीं।

अपनी कमियों को खुद नजरअंदाज कर आप केवल दूसरों की कमजोरियों का कितना लाभ उठायेंगें।
या फिर अपने विरोधियों द्वारा आत्महत्या कर  ही लेने तक का इंतजार करोगे क्या।
आप की अपनी कमियाँ अब छिपी नहीं रह गई है।  आंटे में नमक की तरह भी नहीं तह गयी है। सत्तर अस्सी साल पुराना घुन- दीमक  लगा आपका अपना भी घर है।  आपका घर भी बहुत महक रहा है।
केवल विपक्षी की बहुत बड़ी गलती का इंतजार कब तक करेंगें ? 
नोटबंदी ,ममता , माया ,  (....... ) ,  (......... ) , केजरी , राजा , काजीमोनी ,आधार , बेनामी , सी ए  की जेलबंदी , चीफ सेक्रेटरी पर छापा ,जी एस टी , सी ए कांफ्रेंस में भाषण , में कोई तो कनेक्शन है।
फिर यह एलान की यह आगे ही बढ़ेगा -चलते रहेगा - कितनों की नींद हराम।
निन्यानबे प्रतिशत सुख चैन से।
बाकि अब और प्रखर कडुआ प्रचार में लग जाने को विवश।
ठीक ही वे लोग अपने वाट्सएप में लिख फारवर्ड कर  रहे है - गलती ही हो गई।
पर निन्यानबे प्रतिशत समझ भी रहे है।
अब वे एक प्रतिशत संविधान से भी परेशान।  इस शख्श  से भी परेशान।  शायद पन्द्रह प्रतिशत वालों को उकसावें।
रहा सहा रामनाथ कोविन्द।
काले दिल वालों का और काली पॉकेट  वालों की तो शामत ही आ चली।
सब्सिडी गटक कर  फॉरेन जाने वालों का अब क्या होगा।

Saturday, 1 July 2017

घाव की ही सर्जरी होती है।  शरीर में जो गलत है उसी हिस्से की सर्जरी होती है। 
असली घालमेल तो शीर्ष पर ही परस्पर सलाह मशविरा के बाद शुरू  ही हुआ।  आज यह लगभग एक शताब्दी पुराना  स्वभाव बन चला। 
सी ए  सब बड़ा गुस्सा में है।
ये अकेला ऐसा आया है जो आज के पहले कभी मेरे दरवाजे नहीं आया था , भिखमंगा कहीं  का।  सी ए  की सेवा लेने के लिए पहले लक्ष्मी पुत्र हो कर  आना पड़ता है। तू क्या जाने सी ए  का महत्व।  दो चार ड्रेस  के आलावा तेरे पास है ही क्या ?
 सी ए  पर बोला है न।
कुछ है ही नहीं तो बोल गया।  न तो इतना बोलने पर तोइतना रेड करवा देते की बाप बाप करता।
 भिखमंगे कहीं के , बाल बच्चा परिवार है ही नहीं। 
नकली प्रधानमंत्री - दस साल, कौन ?
नोटबंदी ने जिनको जितना बड़ा कष्ट दिया वे वही जानते है पर वे तो बोलने लायक भी नहीं हैं - ऐसे लोग भारत भर में दो चर लाख ही है - पर उनको बहुत बुरी मार लगी है और वे न रो सकते है , न बोल सकते है।

 केवल एक पन्ने पर नाम लिख कुल बैंक खाता , , बिना पैसे जमा बनता ड्राफ्ट , बिना डॉक्युमेंट बैंक लोन सरकारी रिकार्ड रूम से निकलवा कर  बना दिया - बदल दिया गया सर्वे रिकार्ड , जमींदारी रिटर्न , सेल्स टेक्स रिटर्न , प्राइम मिनिस्टर हॉउस का मुलाकाती रजिस्टर , कोयला आबंटन की फाइल ही गायब , आदर्श घोटाले की फाइलें ही जल जाना , ब्यापम घोटाले के अनेक लोगों की क्रमशः दुर्घटना में मौत , सी एम् की आर्डर शीट पर कागज चिपका  कर लिखा नया  आर्डर शीट , खुले न्यायालय में सबके सामने बोल कर  स्टेनो को लिखवाया फैसला जो चैंबर में जा कर  बदले, फैसला घोषित होने के पहले जिस फैसले की प्रति सुबह से ही कॉरिडोर में बँट गई हो , शिबू शोरेन-रामलखन सिंह वाला फैसला , ए एन राय का महापदधारी बन जाना , सांई प्रशांत निलयम तथा मिश्रा जी महामाननीय - कितनी है भाई 
नकली इन्वॉयस ,सर्टिफिकेट , लाइसेंस ,परमिट ,सील , मोहर , स्टाम्प , पैकिंग ,प्रोडक्ट , फैसला , रिलीज  आर्डर  , पर्चा ,रसीद , बिल , अपॉइंटमेंट , अप्प्पोइंटमेंट लेटर , मीटिंग , मीटिंग के मिनट्स , रिजोल्यूशन , बैंक इंट्री , नकली बैंक लोन , नकली शेयर ट्रांसफर , नकली ट्रांसफर इंट्री , चेकपोस्ट पर नकली पास इंट्री और जो पास हुआ उसकी इंट्री नहीं , नकली एफेडेविट , नकली मुकदमे , नकली बैलेंस  सीट , नकली खाते , बही , नकली लीज , नकली ट्रस्ट , नकली एग्रीमेंट , नकली ट्रांसफर , नकली हाजरी बही , नकली एडमिशन रजिस्टर , नकली आर सी , नकली एन ओ सी , नकली मीटिंग , नकली डायरेक्टर , नकली सी एम् और अंततः नकली पी एम् - यही सब हमारी दैनिक क्रिया कलाप बन गए थे।

पिछले नब्बे साल से भ्र्ष्टाचार को ही हमने शिष्टाचार , दो - तीन को ब्यवहार और अपराधियों को ही अपने नेता बना लिया था।  बनने ही नहीं दिया बना ही डाला।
क्या मजाल कोई भ्र्ष्टाचार , अपराध , टैक्स चोर , राष्ट्रविरोधियों के बारे में बोले - मुंह खोले।  
जब सौ दो सौ लड़कों को एक कैम्पस या भी आई पी इलाके में नारे लगाने को सुरक्षा का आश्वासन दे उकसा कर इकट्ठा कर फिर उसकी विडीयो बना उसे राष्ट्रब्यापी जन आन्दोलन बता टी वी चैनलों पर चलवते हो तो कौन सा तन्त्र विकसित हो रहा होता है ।
ऐसे शो के प्रोड्यूसर ,डायरेक्टर और उकसाये गये लोग की फन्डींग कौन कर रहा है और क्यों।
ऐसे प्रोग्राम किये सिखाये गए प्रीप्लान शो को प्रचार प्रसार कौन और क्यों गलत लेबल ,डायरेक्शन, सेटअप , रिफरेंस और मैग्नीच्यूड , डिस्परपोस्नेट फैला या सिकोड़ कर किसने और क्यों फैलाया -पब्लिसिटी दी , मनो वही अखिल भारतीय वातावरण हो।
कैसे कैसी शब्दावली गढ़ी जाती थी।
यही पचासों साल से फर्जी कंनियों की जग जाहिर स्थिति थी। कभी इसे किसी ने ब्यापक प्रचार प्रसार क्र इस बिंदु पर जनमत बनाने की कोशिश की ?
इतनी फर्जी घालमेल आर्थिक लेनदेन , बचत , ऋण , चिट फंड , कृषि विनियोग , आदि अदि के बारे में कभी किसी ने आवाज उठाई।
डाक्टरों द्वारा कमीशन खोरी , वकीलों के घाल मेल , चार्टर्ड एकाउंटेंट के घाल मेल , आई ए एस आदि के घाल मेल पर कभी किसी ने कोई बड़ा क्या छोटा भी आंदोलन करने की शुरुआत भी की ?
सुना आपने , अभी अभी !
भाइयों और बहनों !!!
और वह भी काले  के डायरेक्टरों के घर जा कर
अभी और बाकी  है। 
लगभग सब कुछ ऑनलाइन हो जाने से इंस्पेक्टर राज  और हरासमेंट  में कमी तो आएगी क्यों कि  ग्रे एरिया कम होंगी और सब कुछ ट्रांसपेरेंट कम्प्यूटर मॉनीटर्ड होगा।
पर परेशानी ( नुकसान ) उन टैक्स चोरों को तो होगी ही।  जो जनता से कर लेकर भी सरकार को नहीं  देते थे और नेता ब्यापारी  इंस्पेक्टर से मिल कर  बाँट चूंट कर  खा पका जाते थे और दोनों फिर बाहर जा कर  एक दूसरे को गलियां दे के पब्लिक को मुर्ख बनाते थे। 
३० जून २०१७ के रात्रि बारह बजे में जिन मूर्धन्य जीवो ने गंगा लाभ किया उनके पुनर्जीवित होने या पुनर्जन्म लेने की  की कितनी संभावना शेष है ?
कृपया सुधि जन मार्ग दर्शन करें।
तदनुसार कारोबार- उपभोग , सेवा लेने देने में  रद्दोबदल करनी होगी न !
गाँधी और मारवाड़ी