यदि आप मुझ पर , मेरे होने पर , मेरी प्रगति पर , मेरी उपलब्धि पर गर्व तो छोड़िये , संतोष भी अनुभव नहीं करते , मेरा होना -उगना -बढ़ना तक सार्वजनिक रूप से स्वीकार, बर्दाश्त नहीं करते, कभी भूल क्र भी मेरे लिए प्रार्थना नहीं करते , तो मैं क्यों आपमें आस्था या गर्व आरोपित करूं ?
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