Thursday, 5 March 2015

हम हमाम में ही नंगे क्यों होते हैं ? दुसरे के सामने आते ही पहले हम क्यों दौड़ पड़ते है अपने आप को छिपाने ,सजाने चमकाने ? हमें कोट ,टाई  जूता  मोजा  जांघिया ,ब्रा आदि की जरूरत क्यों पड़ने लगती है .हर आदमी दुसरे के सामने नेक टाई , बो टाई  हैट टोपी साफा , कलंगी अचकन  गुलाब का फूल  पार्कर पेन  ,ब्रेसलेट आदि के पीछे क्यों छिप जाना चाहता है .इसका मतलब तो शायद यह है कि हमारा सब कुछ सच को छिपाने के  लिये ही था ., है . अर्थात आज तक जो भी लिखा पढ़ा गया  जो कुछ मेरे पूर्वजों ने बताया-सुझाया उसमे भी सब कुछ बाहरी आवरण ही होगा .जब वे एक दुसरे से मिलने में इतने आवरण का प्रयोग करते थे तो समाज से मिलने में  समाज के सामने आने में कितने आवरणों का प्रयोग किया होगा .
ऊपर से रंग रोगन , डेंटिंग -पेंटिंग  इतर-फुलेल , तेल-मालिश --- शायद यही सब होगा .
अर्थात सच्चाई का तो कचूमर निकल गया .
इन्सान पैकिंग में , इंसानियत पैकिंग में .इन्सान का ज्ञान भी पैकिंग में ही हो गया .मजा यह कि इन्सान छटांक और पैकिंग सवा मन भर.इंसानियत रत्ती भर नहीं पैकिंग सेर से ज्यादा .
दिमाग ही चकरा जाता है .क्या लक डीके पैकिंग है .प्रिंटिंग सही , पेपर सही , कभर सही ,प्रिफेस सही ,फोरवर्ड सही ,इंडेक्स सही , विज्ञापन सही पर अंडर क्या है -सब कुछ भगवन भरोसे .
क्या मेरे सामने पसरा यह सारा ज्ञान इसी प्रकार का है .पैकिंग में .पैकिंग भी कई परत वाली .
आप इन्हें मुखौटे कह सकते हैं .

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