जीवन में बहुत कुछ अनुदित ,उत्तराधिकार में मिला ,या छाया -रूप ,प्रतिध्वनि , रूपांतरित , पुनर्निर्मित अथवा केवल पुनरावृत्ति भी होता है . सब कुछ सब समय मौलिक ही हो जरूरी नहीं . मौलिक जैसा आभाष हो तो भी सब कुछ पूर्णतः मौलिक ही होगा -शायद यह अपेक्षा बहुत अधिक है , निराश ही करेगी .
मौलिक नहीं आता है ऐसी बात भी नहीं है -पर पुनरावृत्ति जैसा अधिक रहता है - मौलिक कम होता है .और इसी कम मात्रा में मौलिक के कारण तारतम्य बना रहता है ,टूटता नहीं .
विशुद्ध नये के बार बार हस्तक्षेप से लगातार चलने वाली यात्राएं टूट सकती है .
मौलिक नहीं आता है ऐसी बात भी नहीं है -पर पुनरावृत्ति जैसा अधिक रहता है - मौलिक कम होता है .और इसी कम मात्रा में मौलिक के कारण तारतम्य बना रहता है ,टूटता नहीं .
विशुद्ध नये के बार बार हस्तक्षेप से लगातार चलने वाली यात्राएं टूट सकती है .
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