Monday, 30 March 2015

सेल्स टैक्स प्रेक्तिस्नर से लेकर एक बड़े सपने के दरवाजे तक बार बार झांक आना ,और बहुत से छोटे बड़े सपने  देखना ,उनका सामने प्रत्यक्ष होना , उगना ,कुछ का उगते उगते छिप सा जाना .
उगे हुए ,पूरा हुए सपने  याद नहीं रह पाते ,रुक गया ,झटका खाया ही याद रह जाता है .
खुशियाँ बेपनाह हम भूल जाते है पर उदास होते रहते हैं उन खुशियों के न आने से जो शायद किसी कारण  अपने पुरे सबब में नहीं आये .

No comments:

Post a Comment