Saturday, 14 March 2015

नभ का एक कोना अभी भी अनछुआ है
बस एक बार और मन से  डोल रे  पाखी
उड़ जा उस छोर जिसे तुम्हारी ही चाह है
अनछुए उस कोने की शायद यही चाह है .

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