दुआओं , सहारों , बैसाखियों के सहारे खड़े बस इन सहारों की देखभाल करते गुजर जाते है , ये सहारे ही उन्हें अपने वजूद से भी अधिक प्यारे लगते हैं - और आखिर में बिना किसी निशान , पहचान , वर्तमान चलते नजर आते हैं ,और वे सहारे कोई नया यजमान खोज लेते हैं जो अहर्निश बस त्वमेव-माता -पिता त्वमेव करता फिरे .
No comments:
Post a Comment