सामान्य धारणा यही रही है कि न्याय का एकमात्र स्रोत तर्क ही है| तर्क विशुद्ध रूप में एक वैचारिक प्रबुद्धता है और भाव विशुद्ध रूप से संवेदना का नैसर्गिक स्पंदन है| धारणागत रूप से इनमें से कोई भी न्याय नहीं है – ये केवल न्याय तक पहुँचाने के साधन हो सकते हैं| (Quoted ) P M Lakhotia -FB
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