Thursday, 5 March 2015

ठठेरा पञ्च बन गया ,भगवान को शुक्रिया कहने गया ,भगवान ने पहचानने से इंकार करते हुए कहा की यहाँ से दूर चला जा . ठठेरा जो तब पंच बन चूका था अपना सा मुँह ले कर चला आया , उदास .
भक्त ने पूछा -प्रभु आपने इस ठठेरे को पंच बनाया और अब आपने ही ऐसा ब्यवहार किया .
भगवन बोले - मैं नहीं चाहता कभी किसी भी कारण मुँह से निकले - पुनः ठठेरा भव .पन्च से कभी भी कोई भी नाराज हो सकता है क्यों कि वह किसी का पक्ष-धर नहीं होता , निष्पक्ष होने के कारण वह किसी का प्रिय नहीं रह पायेगा ,हो सकता है उसी कारण मैं भी नाराज न हो जाऊं 

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