1910 को डा. लोहिया का जन्म एक मारवाड़ी माहेश्वरी परिवार में होता है और वह देश के दलितों व पिछड़ी जातियों को सामाजिक - राजनीतिक भागीदारी दिलाने के लिए आजीवन संघर्ष के रास्ते पर चलते रहे . वे जाने जाते थे , जाने जाते है और जाने जाते रहेंगे --
मौलिकत
उग्रता
प्रखरता
दूरदर्शिता
विद्वता
राजनैतिक विचार
आर्थिक विचार
सामाजिक विचार
दार्शनिक विचार
दृष्टिकोण
साहित्य
प्रखर लेखन
त्वरित लेखन
चिंतन
राष्ट्र निर्माता
देश-काल सीमा बंध के परे
स्वाधीनता-सेनानी
विचारधारा
स्वप्नद्रष्ट
लग्न
ओजस्विता
संगठनकर्ता
सुचिता
सादगी
कर्मवीर
विस्तार
विद्रोही
क्रन्तिकारी
अहिंसावादी
आधुनिकतावादी
समतावादी
सत्याग्रही
घोर प्रजातांत्रिक
घोर राष्ट्रवादी
रचनात्मक
प्रयासवादी
सचेत
स्पष्टवादी
चैतन्य चेतनावादी
महान संघर्ष वादी
सप्त क्रांति वादी
असमानता-विरोधी
पिछड़ावादी
जाती-प्रथा भंजक
उपनिवेशवाद-विरोधी
गाँधीवादीनेहरु-कुटिलता विरोधी
अभिजात्य-षड्यंत्र विरोधी
नीजी पूँजी-विषमता-घालमेल विरोधी
अष्ट्र -शस्त्र विरोधी
लोकतंत्री
झुझारू
अखंड-प्रयोग वादी
नवनिर्माण वादी
निरंतर संसोधन वादी
यथास्थिवाद-विरोधी
भारतीय संस्कृति-वादी
आध्यात्मिक
विज्ञान तथा आध्यात्म के संयोगवादी
सर्व-समाज समृद्धि-समर्थक
निर्मम
कठोर
निदानवादी
अजीबोगरीब
सदा हितकारी
गंभीर चिन्तकगंभीर वक्ता
विरोधवादी
कर्मठ
ब्यक्तिगत मर्यादावादी
क्ल्प्नावादी
प्रतिभावादी
परम्परा-विरोधी
अन्याय विरोधी
धनपतियो के षड्यंत्र के शिकर
अपने ही समाज से उपेक्षित
अपने ही लोगो से प्रताड़ित
अहर्निश-सध्नावादी
कर्मयोगी
आसानी से नहीं समझ में आने वाले
अपने समय से बहुत आगे
आजतक भेद-भाव के शिकार
बौद्धिक इर्ष्या के शिकार
तीब्रतम प्रतिकारवादी
आर्थिक अन्याय के धुर विरोधी
सामाजिक अन्याय के घोर विरोधी
विश्लेषक
निडर
स्थिर स्वर्थ्वाली प्रभावशाली शक्तियों के क्रोध के शिकार
लगातार निराधार अभियोगों के अभियुक्त
हमलावर
शासक वर्ग के आलोचक
अनुचित कार्य-प्रणाली के तीब्र आलोचक
लीक से हट कर चलने वाले
नित्य प्रवाह मान
प्रचलित प्रवाह के उलटे तैरने वाले
उपेक्षा के शिकार
भ्रामक विरुद्ध लेखन के शिकार
कालजयी
प्रभावशाली
तत्कालीन मीडिया के असहयोग के ,षड्यंत्र के , धन -शक्ति -विरोध के शिकार
नष्ट नही हो सकेगा जो वह ब्यक्तित्व
नष्ट नही किया जा सकेगा उस विचार के प्रणेता
विचार से विचारधारा तक की यात्रा
लेखकीय प्रकाशन तंत्र के षड्यंत्र के शिकार
नेहरु के षड्यंत्र के शिकार
वे और हनुमान प्रसाद जी पोद्दार - एक अपनों द्वारा तिरष्कृत दूसरों ने सर पर बैठाया , दूसरा - अपने समाज में तो स्विकरी तक तो था म्हिमा मण्डित नहीं किया गया और अन्य लोगों ने जन बूझ कर उनकी उपेक्षा की .
यदि समाज इन दोनोके पीछइ खड़ा होता तो हमारे समाज में भी राकृष्ण परमहंस और नेहरु से बड़ी विभूति ये दो ओ स्पष्ट थी .
पर शायद हम विचार नहीं पदार्थ के ही आदि है - गहराई नही छिछले पन के ही आदि है ,शायद हम सतही है , पान पराग बनाने -खाने वाले लोग हैं ,क्रिकेट खेल का धंधा करने वाले लोग है , अपने ही लोगों द्वारा ,अपने ही पैसे से बनाई गयी फिल्मों में खुद को गलियां दे-दिला कर , खुद को अपमानित करा कर धन कमाने वाले लोग हैं .
शायद हम सम्मान के भूखे हैं ही नहीं - हम बदम की क्त्लियों में ही मगन लोग हैं हम सम्मान के लिये तप नहीं सकते , भूखे नहीं रह सकते .
शायद इसी लिये हमारे पूरे समाज के रहते उद्योग -वाणिज्य के क्षेत्र से भारतं रत्न के लिये टाटा को ही चुना जाता है .राष्ट्रिय योजना के लिये टाटा, निल्केरनी को ही चूना जाता है , शायद इसी लिये हम बिमल जालान की फोटो घर घर में नहीं लगा पाते क्यों की हम हल्दीराम ही बने रहना चाहते हैं ,हम भुजियावाला ,ही बना रहना चाहते है , हम फिटकरी किंग ,तेजपत्ता किंग ,ही बने रहना चाहते हैं -
मौलिकत
उग्रता
प्रखरता
दूरदर्शिता
विद्वता
राजनैतिक विचार
आर्थिक विचार
सामाजिक विचार
दार्शनिक विचार
दृष्टिकोण
साहित्य
प्रखर लेखन
त्वरित लेखन
चिंतन
राष्ट्र निर्माता
देश-काल सीमा बंध के परे
स्वाधीनता-सेनानी
विचारधारा
स्वप्नद्रष्ट
लग्न
ओजस्विता
संगठनकर्ता
सुचिता
सादगी
कर्मवीर
विस्तार
विद्रोही
क्रन्तिकारी
अहिंसावादी
आधुनिकतावादी
समतावादी
सत्याग्रही
घोर प्रजातांत्रिक
घोर राष्ट्रवादी
रचनात्मक
प्रयासवादी
सचेत
स्पष्टवादी
चैतन्य चेतनावादी
महान संघर्ष वादी
सप्त क्रांति वादी
असमानता-विरोधी
पिछड़ावादी
जाती-प्रथा भंजक
उपनिवेशवाद-विरोधी
गाँधीवादीनेहरु-कुटिलता विरोधी
अभिजात्य-षड्यंत्र विरोधी
नीजी पूँजी-विषमता-घालमेल विरोधी
अष्ट्र -शस्त्र विरोधी
लोकतंत्री
झुझारू
अखंड-प्रयोग वादी
नवनिर्माण वादी
निरंतर संसोधन वादी
यथास्थिवाद-विरोधी
भारतीय संस्कृति-वादी
आध्यात्मिक
विज्ञान तथा आध्यात्म के संयोगवादी
सर्व-समाज समृद्धि-समर्थक
निर्मम
कठोर
निदानवादी
अजीबोगरीब
सदा हितकारी
गंभीर चिन्तकगंभीर वक्ता
विरोधवादी
कर्मठ
ब्यक्तिगत मर्यादावादी
क्ल्प्नावादी
प्रतिभावादी
परम्परा-विरोधी
अन्याय विरोधी
धनपतियो के षड्यंत्र के शिकर
अपने ही समाज से उपेक्षित
अपने ही लोगो से प्रताड़ित
अहर्निश-सध्नावादी
कर्मयोगी
आसानी से नहीं समझ में आने वाले
अपने समय से बहुत आगे
आजतक भेद-भाव के शिकार
बौद्धिक इर्ष्या के शिकार
तीब्रतम प्रतिकारवादी
आर्थिक अन्याय के धुर विरोधी
सामाजिक अन्याय के घोर विरोधी
विश्लेषक
निडर
स्थिर स्वर्थ्वाली प्रभावशाली शक्तियों के क्रोध के शिकार
लगातार निराधार अभियोगों के अभियुक्त
हमलावर
शासक वर्ग के आलोचक
अनुचित कार्य-प्रणाली के तीब्र आलोचक
लीक से हट कर चलने वाले
नित्य प्रवाह मान
प्रचलित प्रवाह के उलटे तैरने वाले
उपेक्षा के शिकार
भ्रामक विरुद्ध लेखन के शिकार
कालजयी
प्रभावशाली
तत्कालीन मीडिया के असहयोग के ,षड्यंत्र के , धन -शक्ति -विरोध के शिकार
नष्ट नही हो सकेगा जो वह ब्यक्तित्व
नष्ट नही किया जा सकेगा उस विचार के प्रणेता
विचार से विचारधारा तक की यात्रा
लेखकीय प्रकाशन तंत्र के षड्यंत्र के शिकार
नेहरु के षड्यंत्र के शिकार
वे और हनुमान प्रसाद जी पोद्दार - एक अपनों द्वारा तिरष्कृत दूसरों ने सर पर बैठाया , दूसरा - अपने समाज में तो स्विकरी तक तो था म्हिमा मण्डित नहीं किया गया और अन्य लोगों ने जन बूझ कर उनकी उपेक्षा की .
यदि समाज इन दोनोके पीछइ खड़ा होता तो हमारे समाज में भी राकृष्ण परमहंस और नेहरु से बड़ी विभूति ये दो ओ स्पष्ट थी .
पर शायद हम विचार नहीं पदार्थ के ही आदि है - गहराई नही छिछले पन के ही आदि है ,शायद हम सतही है , पान पराग बनाने -खाने वाले लोग हैं ,क्रिकेट खेल का धंधा करने वाले लोग है , अपने ही लोगों द्वारा ,अपने ही पैसे से बनाई गयी फिल्मों में खुद को गलियां दे-दिला कर , खुद को अपमानित करा कर धन कमाने वाले लोग हैं .
शायद हम सम्मान के भूखे हैं ही नहीं - हम बदम की क्त्लियों में ही मगन लोग हैं हम सम्मान के लिये तप नहीं सकते , भूखे नहीं रह सकते .
शायद इसी लिये हमारे पूरे समाज के रहते उद्योग -वाणिज्य के क्षेत्र से भारतं रत्न के लिये टाटा को ही चुना जाता है .राष्ट्रिय योजना के लिये टाटा, निल्केरनी को ही चूना जाता है , शायद इसी लिये हम बिमल जालान की फोटो घर घर में नहीं लगा पाते क्यों की हम हल्दीराम ही बने रहना चाहते हैं ,हम भुजियावाला ,ही बना रहना चाहते है , हम फिटकरी किंग ,तेजपत्ता किंग ,ही बने रहना चाहते हैं -
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