Monday, 16 March 2015

 आम तौर पर एक उम्र  होने के साथ अथवा एक मुकाम  पर पहुँचने के बाद लोग सीखना बंद कर देते हैं।
मेरा मामला कुछ  अलग है।  मेरे साथ उल्टा ही हुआ  है।
स्थापित और ऊम्र  होने के बाद और समय के साथ साथ  साथ सीखने की मेरी  चाहत बढ़ती  चली  गई है। इन दिनों मैं अधिक सीखने लगा हूँ । जरूरत पड़ने पर सिखाने को भी तैयार रहने लगा हूँ।  नहीं जानता - अब तक कितना ,कैसा और क्या क्या सीखा !
रही बात सिखाने की। वह तो आप जाने। मैं कुछ सीखा भी पाऊंगा या नहीं और आप कितना -क्या -क्यों सीख भी पायेंगें। . 

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