बचपन सभी का बचपन ही होता है . पचपन भी सभी का पचपन ही होता है .बचपन और पचपन के बीच फासला था ,है और रहेगा .देखने-दिखाने का , समझने -समझाने का , करने का ,कहने का , उफान का ,तूफ़ान का ,दूरी का ,धुरी का , जरूरी का ,मजबूरी का , लाचारी का , आचार का -विचार का .यह फासला या तो भोग कर ,बचपन से पचपन तक चल कर ,गिर पड़ कर , पार करे या बडो के संसर्ग से जान समझ कर .
इस यात्रा के बीच कई पड़ाव होते हैं .उत्सुकता ,जिज्ञासा ,अनभिज्ञता ,नासमझी ,लापरवाही , उद्वेग ,उत्तेजना ,परिश्रम , प्रायश्चित , निन्दा ,अभिनंदन ,पुरस्कार ,आशा ,निराशा ,हिंसा ,स्वीकृति , आवेश ,अवज्ञा ,,आकांक्षा , काम ,क्रोध ,अहंकार ,लोभ ,मोह एवं इनकी तेज अथवा धीमी पड्ती गति,इनका उपर उठना अथवा नीचे गिरना .
बचपन से पचपन की यात्रा लगभग सभी की इसी उहापोह के बीच चलती रहती है .कोई अधिक तेज चल लेता है तो कोई धीरे . किसी की यात्रा में कोई पड़ाव लम्बा खींच जाता है तो किसी की यात्रा में यह पड़ाव छोटा हो जाता है .
कुछ लोग कुछ पड़ावों पर अटक जाते हैं , तो कुछ लोग भटक जाते है , कुछ किसी किसी पड़ाव पर रुकते ही नहीं . पर मोटे तौर पर सभी एक जैसी ही यात्रा किया करते हैं .
यात्रा के विभिन्न चरणों में स्वाभाविक आश्चर्य भी होता है .थकान होती है ,विश्राम को जी चाहता है .उर्जा की खोज होती रहती है . किसी को अतिरिक्र उर्जा मिल भी जाया करती है .
यात्रा के क्रम में दिशा -देश -वेश - खान -पान -ब्यवहार- धर्म -कर्म,निति -अनीति ,उचित -अनुचित भ्रम होता है , कई बार किंकर्त्ब्य विमूढ़ जैसी स्थिति आती है .आपात काल आते है.सामाजिक ब्यवस्था सम्बन्धी प्रश्न पैदा होते हैं .
सभी को इन प्रश्नों से निपटना ही पड़ता है .
बचपन से पचपन की यात्रा को बिरले ही सच सच पूरा खोल कर बता पाते है
इस यात्रा के बीच कई पड़ाव होते हैं .उत्सुकता ,जिज्ञासा ,अनभिज्ञता ,नासमझी ,लापरवाही , उद्वेग ,उत्तेजना ,परिश्रम , प्रायश्चित , निन्दा ,अभिनंदन ,पुरस्कार ,आशा ,निराशा ,हिंसा ,स्वीकृति , आवेश ,अवज्ञा ,,आकांक्षा , काम ,क्रोध ,अहंकार ,लोभ ,मोह एवं इनकी तेज अथवा धीमी पड्ती गति,इनका उपर उठना अथवा नीचे गिरना .
बचपन से पचपन की यात्रा लगभग सभी की इसी उहापोह के बीच चलती रहती है .कोई अधिक तेज चल लेता है तो कोई धीरे . किसी की यात्रा में कोई पड़ाव लम्बा खींच जाता है तो किसी की यात्रा में यह पड़ाव छोटा हो जाता है .
कुछ लोग कुछ पड़ावों पर अटक जाते हैं , तो कुछ लोग भटक जाते है , कुछ किसी किसी पड़ाव पर रुकते ही नहीं . पर मोटे तौर पर सभी एक जैसी ही यात्रा किया करते हैं .
यात्रा के विभिन्न चरणों में स्वाभाविक आश्चर्य भी होता है .थकान होती है ,विश्राम को जी चाहता है .उर्जा की खोज होती रहती है . किसी को अतिरिक्र उर्जा मिल भी जाया करती है .
यात्रा के क्रम में दिशा -देश -वेश - खान -पान -ब्यवहार- धर्म -कर्म,निति -अनीति ,उचित -अनुचित भ्रम होता है , कई बार किंकर्त्ब्य विमूढ़ जैसी स्थिति आती है .आपात काल आते है.सामाजिक ब्यवस्था सम्बन्धी प्रश्न पैदा होते हैं .
सभी को इन प्रश्नों से निपटना ही पड़ता है .
बचपन से पचपन की यात्रा को बिरले ही सच सच पूरा खोल कर बता पाते है
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