साक्षी सदा सत्य सापेक्ष होता है , साक्षी कर्ताब्याधीन होता है, साक्षी न तो मात्र दर्शक न ही चिन्तक -विचारक न ही न्यायाधीश . साक्षी दर्शक भाव में जब तक रहता है तब तक वह साक्षी नहीं होता - साक्षी का काम मंथन करना नहीं है साक्षी विश्लेषण नहीं करता अपना भी--- साक्षी न्याय की आँख होता है -- यह एक कर्तब्य भाव है - यह दायित्व बोध है ----- आजकल चिन्तक ,विश्लेषक , आलोचक , दर्शक तो मिलते हैं - साक्षी कम---- साक्षी को सत्य के लिये असत्य और तर्क विलास से लड़ना होता है----- मिडिया थोडा बहुत कभी कभार साक्षी भाव से समाज के साथ -सत्य के साथ न्याय के साथ खड़ी होती है--- मिडिया न्याय या चिंतन या विश्लेषण नहीं करती - वह यथारूप सत्य -यथार्थ वर्णन भर करती है ------ यही साक्षी भाव है
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