Tuesday, 17 March 2015

साक्षी सदा सत्य सापेक्ष होता है , साक्षी कर्ताब्याधीन होता है,  साक्षी न  तो मात्र  दर्शक न  ही चिन्तक -विचारक  न ही न्यायाधीश  . साक्षी दर्शक  भाव में जब तक  रहता  है  तब तक  वह  साक्षी नहीं  होता  - साक्षी  का  काम  मंथन  करना  नहीं  है  साक्षी  विश्लेषण  नहीं करता  अपना  भी---  साक्षी  न्याय की  आँख  होता  है  -- यह  एक  कर्तब्य  भाव  है - यह  दायित्व बोध  है -----  आजकल  चिन्तक  ,विश्लेषक , आलोचक ,  दर्शक  तो मिलते  हैं  - साक्षी कम---- साक्षी  को सत्य  के लिये  असत्य  और  तर्क विलास से  लड़ना होता  है----- मिडिया  थोडा  बहुत कभी कभार  साक्षी  भाव से  समाज  के साथ  -सत्य  के  साथ  न्याय के साथ खड़ी  होती  है--- मिडिया  न्याय  या  चिंतन  या विश्लेषण  नहीं करती  -  वह यथारूप  सत्य  -यथार्थ  वर्णन  भर  करती है ------ यही  साक्षी  भाव  है 

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