वो शख्स उस से बद्तमीजी कर रहा था, सैकड़ों लोग वहां मौजूद थे। सभी उसे देख रहे थे लेकिन मदद के लिए कोई भी आगे नहीं आया। फिर भी वो डरी नहीं निडर होकर उस मनचले का मुकाबला किया। उसे मारा और पकड़ कर घसीटते हुए पुलिस के पास ले गई--------
क्या यह हमारा भी दायित्व नहीं था -- साक्षी बोध नहीं था हमारे पास - हम दर्शक भाव वाले शिखंडी भर है -----
तभी तो हम सब कहीं न कहीं कभी न कभी सब कुछ देख कर , दिखाए जाने पर भी सार्वजनिक रूप से कह जाते है -- इसे रोकना हमारे बस की बात नहीं , और हमें लज्जा भी नहीं आती
तभी तो हम सब कहीं न कहीं कभी न कभी सब कुछ देख कर , दिखाए जाने पर भी सार्वजनिक रूप से कह जाते है -- इसे रोकना हमारे बस की बात नहीं , और हमें लज्जा भी नहीं आती
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