Friday, 20 March 2015



कोई तो है जो आज भी इन पुरानी जड़ों को पुष्टिवर्धक जल से सींचे जा रहा है , अब भी कहीं से तों नयी उर्जा आ तो रही ही है न.
अपनी उर्जा का यथोचित सम्मान करते हुए उसका फोकस नई पीढ़ी के प्रति कर देना ही अब इस अवस्था का सम्यक पुरुषार्थ है .
वक्त अब अभी तक लिये का हिसाब कर वापस देने का है .
जो लिया या जो मिला उसके आलावा आभार पक्त करते हुए पुरानों को भी उनके प्रतिदान के लिये कुछ तो देना ही बनता है .
नये की जोभी जैसी भी उम्मीदें मुझसे हैं उसके अनुरूप एवं नये को समझाते हुए उसे भी तोसंतुष्ट करना ही न है .
नये के भविष्य के मार्ग में एक-दो दीये तो मुझे जलाना लाजमी लगता है .
भाई मई तो अपने पुरानों को सश्रद्धा प्रतिदान के लिये तथा अपने नयों को सप्रेम उत्साह्दंके लिये कतिबद्ध हूँ
मिला था जो सनेह आपसे हमे वह कुछ और बढ़ा आगे किया --आपका चला हम आगे चले अब आगे चले को उन्हें आगे चलता किया .
बस यही क्रम चलता रहे

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