Wednesday, 25 March 2015

कडुआ ,कठोर ,बेस्वाद बने रहने में मेहनत बहुत थी
शर्म भी आती थी ,पर थी कुछ जीने  की मजबूरियां
हर शख्स की आस ,सांस और विश्वास  की कील था
सरल नरम स्वादिष्ट होता तो उखाड़ ही दिया जाता

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