Tuesday, 3 March 2015

हे प्रभु , आपने मुझे इतना कुछ दिया ,बहुत कुछ , जिसका मैंने न स्वप्न देखा था , न मैं अधिकारी था - यह सब मुझे दिखता क्यों नहीं ? मैं आपको धन्यवाद क्यों नहीं कह पाता . 
मेरी आँखें वही क्यों देख रही है जिसे केवल आपको ही देखने का अधिकार है .
मैं तो आपके हाथों में आनन्द से सुरक्षित बढ़ता ही जा रहा हूँ .
प्रभु , प्रणाम !

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