सच तो यह है की आंतरिक कठोरता की पवित्र अभिव्यक्ति ही प्रेम है .न्याय के प्रति प्रेम ही न्यायाधीश की भंगिमाओं को कठोर बना देता है वैसे कठोरता सदैव सापेक्ष होती है .
श्रद्धा एवं प्रेम की कमी आपको उचित मात्रा में कठोर नहीं बनने देंगें .श्रद्धा और प्रेम ही आवश्यक और उचित परिश्रम का श्रोत है .
आजकल कालेज के अधिकांश शिक्षक अपने विषय और विद्यार्थी से श्रद्धा नहीं रख पाते -विषय से प्रेम नही , विद्यार्थी से श्रद्धा नहीं .
कुछ इसी तरह की स्थिति अभी भी सामान्य स्कूल -कालेजों के विद्यार्थी के साथ .न शिक्षक के प्रति श्रद्धा , न विषय से प्रेम .
पढ़ाने
पढ़ाने वाले को पढ़ाने का प्रयोजन ही मालूम नहीं . वह तो अपनी रोटी के लिये नौकरी करने यदि म्ज्बूई हुई तो स्कूल, कालेज चला भर जाता है .
इसी प्रकार स्कूल -कालेज जाने वाले किशोर के लिए यह या तो माता पिता के दबाव में होता है ,या रूटीन पिकनिक जैसा है - या घर से फिरंट होने का बहाना , या बस टाईम पास ,
वैसे अपवाद शिक्षकों में भी है -विद्यार्थियों में भी .
श्रद्धा, प्रेम और विश्वास ये सब खास गुण हैं .प्रेम का प्रवाह एक तरफा नहीं होता .श्रद्धा अथवा प्रेम या विह्वास सम्बन्धों के दोनों सिरों पर लगभग एक साथ ही उपजती है
श्रद्धा एवं प्रेम की कमी आपको उचित मात्रा में कठोर नहीं बनने देंगें .श्रद्धा और प्रेम ही आवश्यक और उचित परिश्रम का श्रोत है .
आजकल कालेज के अधिकांश शिक्षक अपने विषय और विद्यार्थी से श्रद्धा नहीं रख पाते -विषय से प्रेम नही , विद्यार्थी से श्रद्धा नहीं .
कुछ इसी तरह की स्थिति अभी भी सामान्य स्कूल -कालेजों के विद्यार्थी के साथ .न शिक्षक के प्रति श्रद्धा , न विषय से प्रेम .
पढ़ाने
पढ़ाने वाले को पढ़ाने का प्रयोजन ही मालूम नहीं . वह तो अपनी रोटी के लिये नौकरी करने यदि म्ज्बूई हुई तो स्कूल, कालेज चला भर जाता है .
इसी प्रकार स्कूल -कालेज जाने वाले किशोर के लिए यह या तो माता पिता के दबाव में होता है ,या रूटीन पिकनिक जैसा है - या घर से फिरंट होने का बहाना , या बस टाईम पास ,
वैसे अपवाद शिक्षकों में भी है -विद्यार्थियों में भी .
श्रद्धा, प्रेम और विश्वास ये सब खास गुण हैं .प्रेम का प्रवाह एक तरफा नहीं होता .श्रद्धा अथवा प्रेम या विह्वास सम्बन्धों के दोनों सिरों पर लगभग एक साथ ही उपजती है
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