Sunday, 28 December 2014

धन अपने स्रोत से जुड़ा नहीं रहता पर सदैव किसी के अधीन ही होता है - धन आश्रित होता है .
धनवान सबसे पहले धन को अपना बनाता है ,उसे उसके स्रोत से अलग करता है , दूसरों से छिपाता है , धन को अपने पर आश्रित बनाता है . भूल कर भी दूसरों को धन का स्रोत पता ही नहीं लगने देता .
ज्ञान सदैव अपने स्रोत से सदैव जुड़ा रहकर भी लगातार गतिशील होता है ,यह कभी किसी के अधीन नहीं रहता , न हीं यह किसी के आश्रय में रहता है .ज्ञान तो सदा जगता ही रहता है ,पुकारते ही रहता है ,यह न तो छिपता है न इसे छिपाया जा सकता .ज्ञान का स्रोत भी जग जाहिर रहता है .ज्ञान कभी किसी की अधीनता नहीं स्वीकार करता है .
धन उत्तराधिकार में प्राप्त हो सकता है अथवा दान में दिया लिया जा सकता है .
ज्ञान कम से कम उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं ही होता , न हीं दान में लिया-दिया जा सकता है .
धन स्व-अर्जित हो जरूरी नहीं ,पर ज्ञान प्रत्येक ब्यक्ति को अपने ही अर्जित करना पड़ता ही है .

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