Friday, 26 December 2014

टूटा हुआ फेंक दोगे तो बात नहीं बनेगी . क्या नहीं टूटता है ? .टूट फूट तो हर समय हर जगह  हर चीज में लगी रहती ही है .प्रकृति भी बिना तोड़े फोड़े ,बिना छिन्न भिन्न किये कभी भी कुछ भी स्वीकार नहीं करती .तृणचारी , हो या जीव भक्षी - सभी बिना तोड़े फोड़े कुछ भी ग्रहण नहीं करते. सृष्टि की समस्त रचनाएँ तोड़ फोड़ के बाद बने जोड़-योग -संयोग से ही उत्पन्न है .
टूटा हुआ बचा कर रखना ,सम्भाल कर रखना .नई रचना के लिए वही आधार होगा . जो कुछ टूट गया वह सब ब्यर्थ चला गया , यह विचार सही प्रतीत नहीं होता .
टूटे हुए को जोड़ लेना ,जोड़ देना ,उपयोग में  ले लेना ,उपयोगी बना देना ,टूटे हुए को नई उर्जा के साथ ,नये उत्साह के साथ खड़ा कर देना ही पुरुषार्थ है .
जीवन में कुछ भी अखंड नहीं है .यह जीवन स्वयं एक श्रृंखला ही तो है ,अनंत उर्जा भंडारों का योग ही तो है .छोटी छोटी साँसों को जोड़ कर ही तो बनता  है यह जीवन .पुरे जीवन के विचार एक बार में न तो आते हैं , न आ सकते है .पूरा जीवन दर्शन टुकड़ों में ही हमारे समक्ष आता है .उसे जोड़ते तो हम ही है . 

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