लगता तो है ,कुछ इस देश में ऐसा कुछ है जो शायद क्रिकेट-वाले भी नहीं मैनेज कर पाये , शायद क्रिकेट जिन्दा रह पायेगा , शायद डब्बाबंद क्रिकेट हार जायेगा ,शायद क्रिकेट जुआ-घर से बहर आ सके .
वैसे क्रिकेट को लेकर इतनी माथा पच्ची -
इतना योजना बद्ध विज्ञापन बाजी ,
सारे आकाशवाणी को एक समय मुंह मांगे दामों पर खरीद लिया जाना ,सारे राजनेता क्रिकेट से जुड़ने को बेताब , सरे महान अधिवक्ता , पत्रकार इससे जुड़ने की रेस में .
यहाँ तक की पार्लियामेंट को बिच में क्रिक्र्ट मैच का रिजल्ट बताया जाना
- क्या गोरख धंधा है .अभी दस बीस साल पहले तक भारत के आधे कस्बे,तीन चौथाई गाँव क्रिकेट से अनभिग्य रहे थे . क्रिकेट के इतने प्रचार पराशर ,क्रिकेट का शारजाह ,दुबई रिश्ता क्या है .यह सब पिछले ३०-३५ सैलून की कहानी है और हम सब आँख मूंदे बैठे है -- कोइ इसकी छान बीन करने की सोचता ही नही ,सब इस क्रिकेट गंगा के दो-चार लोटे की भीख मांगते दीखते हैं.
कुछ तो है --दल में काला नहीं --उससे बहुत अधिक .
पर इस दिशा में सोचे कौन ,?
इतना योजना बद्ध विज्ञापन बाजी ,
सारे आकाशवाणी को एक समय मुंह मांगे दामों पर खरीद लिया जाना ,सारे राजनेता क्रिकेट से जुड़ने को बेताब , सरे महान अधिवक्ता , पत्रकार इससे जुड़ने की रेस में .
यहाँ तक की पार्लियामेंट को बिच में क्रिक्र्ट मैच का रिजल्ट बताया जाना
- क्या गोरख धंधा है .अभी दस बीस साल पहले तक भारत के आधे कस्बे,तीन चौथाई गाँव क्रिकेट से अनभिग्य रहे थे . क्रिकेट के इतने प्रचार पराशर ,क्रिकेट का शारजाह ,दुबई रिश्ता क्या है .यह सब पिछले ३०-३५ सैलून की कहानी है और हम सब आँख मूंदे बैठे है -- कोइ इसकी छान बीन करने की सोचता ही नही ,सब इस क्रिकेट गंगा के दो-चार लोटे की भीख मांगते दीखते हैं.
कुछ तो है --दल में काला नहीं --उससे बहुत अधिक .
पर इस दिशा में सोचे कौन ,?
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