Saturday, 20 December 2014

विचारों में ,मनोभावों में ,गति है , झंकार है . विचारों में प्रकार है .विचार आते जाते प्रतीत होते  हैं  विचार सम्प्रेश्नीय है ,ग्राह्य है .मुझे लगता है कि विचारों का भी एक स्थूल रूप होता है और विचारों का भी एक मूर्त रूप होता है .विचार धारण किया जा सकता हूँ ,विचार का त्याग किया जा सकता है .विचारों में मनोभावों में जो गति है वह घटाई बढ़ाई जा सकती है .विचारों की दशा -दिशा भी बदली जा सकती है .
विचारों के आगम और निर्गम का भी एक माध्यम है .
वे कौन सी तरंग है जोविचारों को धारण करती है , लेती , लाती ,ले जाती ,यह तो मेरे सामने अभी स्पष्ट नहीं है . पर मैंने १९७२ से आज तक कई बार विचारों का विस्फोट ,विचारों का विदोह ,विचारों का उफान ,विचारों की लडाई , छीना -झपट  को देखा है ,महसूस किया है .मैनें स्वयम महसूस किया है की कैसे एक अनजान विचार आकर टकराता है -प्रतिक्रिया करता है और तुरंत शेष विचार उसका स्रोत जानने की कोशिश करता है .आते जाते विचारों का स्वरूप ,उद्गम जानना ,जानने की कोशिश करना बड़ा उत्तेजक होता है .
शारीरिक उत्तेजना के किसी  भी आयाम का कोई  भी चरम बिंदु उस उत्तेजना के निम्नतम .निम्नतम बिंदु तक नहीं पहुँच सकता जो विचार क्षेत्र में प्रवेश करने मात्र से उत्पन्न होती है .
जिस प्रकार शारीरिक उत्तेजना के चरम बिंदु तक पहुंचना तो सरल है पर उस शारीरिक उत्तेजना के चरम बिंदु तक ठहरना मुश्किल .
उसी प्रकार विचार उत्तेजना या विचार क्षेत्र के निम्नत विन्दु तक में प्रवेश बड़ा कठिन है पर उस विचार क्षेत्र की उत्तेजना में एक बार प्रवेश करने के बाद ठहरना बड़ा सहज .
और हाँ ,शारीर या बुद्धि विचार क्षेत्र की परिधि में नहीं आता .
विचार क्षेत्र में प्रवेश के लिये शारीर और बुद्धि से आगे जाना होगा .,आगे बढ़ना होगा .
विचार क्षेत्र कितना तरल या कितना विस्तृत है  या उसका स्वरूप क्या हैयह तो मैं अभी नहीं समझ पाया हूँ किन्तु ऐसा लगता है की वर्तमान प्रचलित उर्जा की जाने जानी वाली या समझे जानेंगे} वाली रूप रेखा से भी परे हैं .ऐसा लगता है कि विचार ही ब्रह्मांडीय विस्फोट का कारण रहा होगा .
लगता है कि विचार शायद परब्रह्म होंगे और घनीभूत विचार ,नाद ब्रह्म ,प्रकाश ब्रह्म  अथवा अन्य साकार ब्रह्म होंगे .

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