सत्य को किसी प्रकार के संयम की आवश्यकता नहीं होती . सत्य स्वयं -प्रेरित होता है सत्य का अपना प्रवाह होता है .सत्य का अपना स्वतन्त्र अस्तित्व होता है, रहता है .सत्य सदैव सर्व हितकारी ही होता है .
संयम सदैव स्वार्थ-पोषक होता है .संयम सदैव सच्चाई को छिपाने का प्रयास होता है .सत्य का तात्कालिक लाभ कोई भी क्यों न हो ,सर्वकालिक रूप से वह सत्य को शंका के क्षेत्र में प्रतिष्ठित करता है .ब्याक्तिगत रूप से मैं किसी भी अशुभ विचार का विरोधी हूँ जो दीखता तो शुभ है पर वह सत्य पर पर्दा डालता है .
व्यक्तिगत रूप से मैनें सत्य को कष्टकारी जरूर पाया है पर अनिष्टकारी नहीं .
सच तो यह है कि सच का आभास भी सुखकारी है .यदि सच की छाया भी शीतलता देती है तो कभी कभी सोचता हूँ की सच कितना शीतल होगा .
संयम सदैव स्वार्थ-पोषक होता है .संयम सदैव सच्चाई को छिपाने का प्रयास होता है .सत्य का तात्कालिक लाभ कोई भी क्यों न हो ,सर्वकालिक रूप से वह सत्य को शंका के क्षेत्र में प्रतिष्ठित करता है .ब्याक्तिगत रूप से मैं किसी भी अशुभ विचार का विरोधी हूँ जो दीखता तो शुभ है पर वह सत्य पर पर्दा डालता है .
व्यक्तिगत रूप से मैनें सत्य को कष्टकारी जरूर पाया है पर अनिष्टकारी नहीं .
सच तो यह है कि सच का आभास भी सुखकारी है .यदि सच की छाया भी शीतलता देती है तो कभी कभी सोचता हूँ की सच कितना शीतल होगा .
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