Sunday, 21 December 2014

जो डरे हुए है ,वे चुप हैं .जिन्हें कुछ छिपाना है वे अलग अलग  रहते हैं ,न मिलते हैं , न मिलने देते हैं ,न कुछ छूते  हैं , न छूने देते हैं  जिनकर मन में चोर है - पाप है -भ्रम है - वे दूर दूर रहते हैं , न निकट आते हैं , न आने देते है --- उन्हें डर है कि सब कुछ साफ झलक जायेगा ,सब जान जायेंगें ,पोल खुल जाएगी , चोरी पकड़ी जाएगी , नजरों में आ जायेंगें ,सभी देख -समझ लेंगें .
अपने आप को छिपाने के लिए लोग तरह तरह के बहाने ओढ़ लेते हैं ,लबादे ,बन्धन ,मर्यादा का ढोंग रच लेते हैं
ऐसा नहीं की ये लोग एकदम नहीं बोलते - बंद कमरों में खूब बोलते हैं , या नाप तौल कर भी बोलते दिख जायेंगे ,उनका हर  सेंटेंस एडिटेड है , सच से कोशों दूर .
वे प्रत्यक्ष जितने मर्यादा में दीखते हैं वस्तुतः उतने ही मर्यादा से दूर हैं . उनका दिखने वाला हिस्सा उनके डर के कर्ण सजा , संवार कर हमारे आपके सामने लाया गया है .

No comments:

Post a Comment