एक चिनीमट्टी का २८ रूपयें का चाय का कप पिछले तीन साल से चाय पी रहा था , निसंदेह अच्छा कप था ,सुन्दर भी था -- आज एकाएक साफ-सफाई के दौरान काम करने के क्रम में मुझसे टूट ही गया - क्या करूँ - अपने आप को कोसता रहूँ - भारी नुकसान हो गया - मैं देख कर , संभल कर साधारण काम करने की स्लईयत भी नहीं रहता - मैं निहायत निकम्मा हूँ , मैंने अपने ही नुकसान कर दिया - मैं लापरवाह हूँ -मैनें जान बूझ कर उसे तोड़ दिया क्योंकि वह कप मेरी श्रीमती जी को प्रिय था - मेरे ससुराल से आया था इस लिए मुझे मोह -ममता नहीं थी -----
कितने आयाम हो सकते है-----
यदि यह कप मेरे डोमेस्टिक हेल्प ,या पड़ोसी के बच्चे से टूट जाता तो
आखिर इतनी बड़ी घटना नहीं थी की उसपर पूरा एक अध्याय लिख ही दिया जाये .
जीवन में बहुत बड़ी बड़ी घटनाएँ होती रहती है -- उससे आगे बढिये
इस कप की डिजायन कैसी है ?इस तरह के प्रश्नों में कितनी देर उलझना है यह तो आपको ही तय करना पड़ेगा
छोटे छोटे प्रश्न, परिस्थिति का कितना चिंतन करना है ,करना भी है या नहीं करना है ,क्या करना इतना आवश्यक ही है -- यह तो आपको तय करना है .
कितने आयाम हो सकते है-----
यदि यह कप मेरे डोमेस्टिक हेल्प ,या पड़ोसी के बच्चे से टूट जाता तो
आखिर इतनी बड़ी घटना नहीं थी की उसपर पूरा एक अध्याय लिख ही दिया जाये .
जीवन में बहुत बड़ी बड़ी घटनाएँ होती रहती है -- उससे आगे बढिये
इस कप की डिजायन कैसी है ?इस तरह के प्रश्नों में कितनी देर उलझना है यह तो आपको ही तय करना पड़ेगा
छोटे छोटे प्रश्न, परिस्थिति का कितना चिंतन करना है ,करना भी है या नहीं करना है ,क्या करना इतना आवश्यक ही है -- यह तो आपको तय करना है .
No comments:
Post a Comment