Friday, 26 December 2014

राज्य (राजा ) प्रजा के प्रत्येक उपयोगिता सृजन के प्रयास को गिद्ध दृष्टि से ताकता है ,ललचाई नजर रखता है - कम से कम पवित्र भाव तो नहीं ही रखता ..
राज्य प्रजा के प्रयास को अपनी मिल्कियत समझता है .
शायद इसी से राज्य कर लगाने का ,कर उगाहने का अधिकार स्वयं अपने पर आरोपित कर लेता है और फिर उस अधिकार की रक्षा केलिए अपनी शक्ति -सामर्थ्य का प्रयोग करता है .
जो भी हो ,इससे जहाँ  वास्तविक सामाजिक उपयोगिता के सृजन के प्रयास हतोत्साहित होते है वहीं अनुपयोगी उपयोगिता का कृत्रिम निर्माण कर कलुषित वृत्ति वाला तत्व राज्य के साथ सांठ -गाँठ कर समाज का वास्तविक अहित करने में सफल हो जाता है .
इस तरह के तत्व राजा और राज्य के संरक्षण   में रहते हैं और राजा अथवा राज्य के लोभ का भरण -पोषण -वरण -लालन - पालन करते हुए समाज को भारी क्षति पहुंचा डालते हैं . 

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