Monday, 22 December 2014

सच की मजबूरी - उसे सक्रिय रहना ही है

सच तो एक मात्र सच है, उसे किसी पैकिंग की,प्रजेन्टेबेलिटी की, मेमोरी या सेव ,एडिट की की जरूरत नहीं,वह प्रदर्शनी या बाजार या आग्रह का भी मोहताज नहीं- पर सच सदा संघर्ष रत रहता है- वह न किसी का दोस्त न दुशमन। मानव के सारे आवेग सच से प्रतियोगिता रखते हैं, इसलिये सच को सदा सक्रिय रहना पड़ता है।

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