यहीं पर मैं उल्लेख कर दूँ सन १९७२ के आसपास भी और उसके पहले भी कागजों पर कई संस्थाएँ चला करती थी और आज भी चलती है .कागजी जमा खर्च दुरुस्त .सर जमीन पर कुछ .रसीदें कटती रहती है ,दिखावे के रजिस्टर बनते रहते हैं , दिखावे के रजिस्ट्री कागज तक बन जाते हैं . कागजों पर इन सब की जाँच भी करी कराई , करवाई जाती है .प्रतिवेदन दिये दिलाये जाते हैं .कागजी करवाई को ,बनाये कागजों के माध्यम से आगे बढ़ाये जाते हैं .पर कुछ भी असली नहीं ,सब कुछ कागज पर ,कागज मोहर ,दस्तखत भी असली हो -जरूरी नहीं .पर सब चलता है .यह सब कुछ वैसे ही जैसे गाँव में लडके की शादी के लिये यदि बात चित करने जायेंगें तो संभावित रिश्तेदार अपने दरवाजे पर आस पास के चार-पांच जोड़े बैल बाँध या बंधवा देता या दिया जाता है .अब ट्रेक्टर ,मोटर सायकिल , जीप दरवाजे पर खड़ी रखने की फैशन हो गई है .यदि आप उनके दरवाजे पर सम्बन्ध करने की बात करने जाईये तो दरवाजे या सहन पर बन्दुक या राईफल साफ करते हुए एक दो नई ऊम्र के युवक मिल जायेंगें .संपत्ति के बारे में पूछने पर एक मधेश सा आदमी हाथ दिखाकर बधार की ओर इशारा कर ब तायेगा की यह सारा बधार - कुछ घरों की ओर इशारा कर जोर से बतायेगाकि यह सब घर , खेत , मकान अपना ही है .फिर खलिहानों की और हाथ दिखाते कहेगा - यह सारा खलिहान अपना हीही.
जी हाँ गाँव के अन्य लोगों से भी पूछ ताछ करेंगें तोसभी एक ही स्वर में बोलेंगें .यह सब इसलियेकी अगली बार जब कोई दूसरा परिवार दुसरे घर में लडके की जाँच करने आवे तो फिर उसे भी सब अपना ही बताया जा सके .
ठीक इसी प्रकार कागजों पर इंजीनियरिंग कालेज ,मेडिकल कालेज , बी-एड कालेज , आई टी आई , मेनेजमेंट कालेज , नर्सिंग कालेज ,( आजकल नया चलन - योग और होमियोपैथी कालेज .) डिग्री कालेज, यहाँ तक की यूनिवर्सिटी ,लिमिटेड कम्पनी ,फैक्ट्री तक कागजों पर कागजी ,शक्ल तक भी कागजों पर , इन्फ्रास्त्र्कचर भी कागजों पर , बैंक बैलेंस भी नकली कागजों पर मिल जाएगी .
कागज पर रजिस्ट्री कागज , कागज पर जमीन , कागज पर रसीद, कब्जा का प्रमाण , नक्शा , बिल्डिंग की फोटो , लाईब्रेरी ,लबोरेतरी ,शिक्षक , प्रशिक्षक ,प्रिंसिपल , विद्यार्थी ,स्टाफ , रिजल्ट ,रजिस्टर ,प्रमाण-पत्र , प्रसंसा पत्र , विजिटर बुक , बड़े बड़े लोगों की अभुक्तियाँ , रसीदें -सब कागज पर .आफिस,एड्रेस ,त्र्नोवर ,स्टाक , उत्पादन , स्टाक ,बैंक स्टेटमेंट , अकौन्ट्स ,, मोहर सब मिलेगा - कागजी .जब मर्जी नाम बदल दिया ,बोर्ड बदल दिया - कभी कभी टेक दिन में एक से अधिक बार यह होता है . इस विद्या के प्रवीण लोगों की बड़ी मांग होती है .जब चाह एक को दो , एक को चार , दो को एक , चार -पांच को एक -यह सब चलता रहता है .इनसे नमी गिरामी खादी वाला , टोपीवाला ,वर्दी वाला ,थैलिवाला ,कोट-बैंड वाला ,आला-नश्तर वाला , बंदूक तमंचे वाला , नौकर शाह सभी जुड़े मिलेंगें .कुछ तो इसी रस्ते चल महामहिम ,माननीय हो चुके - कुछ होने वाले होते है . गाहे बिगाहे सरकारी मेहमान-खाने रह कर आये लोग भी इस महान योजनाबद्ध कार्य प्रणाली के अभिन्न हिस्से के रूप में दिखेंगें .कुछ हरदम पर्दे के पीछे ही रहते है .कुछ महान बुद्धिजीवी होते है इस लिये यह सब सोचते रहते है - कैसे किया जाये - कैसे करवाया जाये ,कैसे बचा जाये ,कैसे बचाया या बचवाया जाये , कुछ उलझने के कौर त्रिकोण पर भी अपनी बौद्धिक क्षमता लुटाते है . यदि आपके पास काज आदि एकदम नहीं है तो भी घबड़ाने की कोई बात नहीं है - सब हो जाये गा - बड़े बड़े कानूनी दिमाग ले बैठे है - उनकी मुट्ठी में ही तो है -सब कुछ .
यदि आपने मेट्रिक भी नही किया हैतो भी डिग्री, पी जी तक के सारे कागज पक्के मिल जायेंगें .
जी हाँ गाँव के अन्य लोगों से भी पूछ ताछ करेंगें तोसभी एक ही स्वर में बोलेंगें .यह सब इसलियेकी अगली बार जब कोई दूसरा परिवार दुसरे घर में लडके की जाँच करने आवे तो फिर उसे भी सब अपना ही बताया जा सके .
ठीक इसी प्रकार कागजों पर इंजीनियरिंग कालेज ,मेडिकल कालेज , बी-एड कालेज , आई टी आई , मेनेजमेंट कालेज , नर्सिंग कालेज ,( आजकल नया चलन - योग और होमियोपैथी कालेज .) डिग्री कालेज, यहाँ तक की यूनिवर्सिटी ,लिमिटेड कम्पनी ,फैक्ट्री तक कागजों पर कागजी ,शक्ल तक भी कागजों पर , इन्फ्रास्त्र्कचर भी कागजों पर , बैंक बैलेंस भी नकली कागजों पर मिल जाएगी .
कागज पर रजिस्ट्री कागज , कागज पर जमीन , कागज पर रसीद, कब्जा का प्रमाण , नक्शा , बिल्डिंग की फोटो , लाईब्रेरी ,लबोरेतरी ,शिक्षक , प्रशिक्षक ,प्रिंसिपल , विद्यार्थी ,स्टाफ , रिजल्ट ,रजिस्टर ,प्रमाण-पत्र , प्रसंसा पत्र , विजिटर बुक , बड़े बड़े लोगों की अभुक्तियाँ , रसीदें -सब कागज पर .आफिस,एड्रेस ,त्र्नोवर ,स्टाक , उत्पादन , स्टाक ,बैंक स्टेटमेंट , अकौन्ट्स ,, मोहर सब मिलेगा - कागजी .जब मर्जी नाम बदल दिया ,बोर्ड बदल दिया - कभी कभी टेक दिन में एक से अधिक बार यह होता है . इस विद्या के प्रवीण लोगों की बड़ी मांग होती है .जब चाह एक को दो , एक को चार , दो को एक , चार -पांच को एक -यह सब चलता रहता है .इनसे नमी गिरामी खादी वाला , टोपीवाला ,वर्दी वाला ,थैलिवाला ,कोट-बैंड वाला ,आला-नश्तर वाला , बंदूक तमंचे वाला , नौकर शाह सभी जुड़े मिलेंगें .कुछ तो इसी रस्ते चल महामहिम ,माननीय हो चुके - कुछ होने वाले होते है . गाहे बिगाहे सरकारी मेहमान-खाने रह कर आये लोग भी इस महान योजनाबद्ध कार्य प्रणाली के अभिन्न हिस्से के रूप में दिखेंगें .कुछ हरदम पर्दे के पीछे ही रहते है .कुछ महान बुद्धिजीवी होते है इस लिये यह सब सोचते रहते है - कैसे किया जाये - कैसे करवाया जाये ,कैसे बचा जाये ,कैसे बचाया या बचवाया जाये , कुछ उलझने के कौर त्रिकोण पर भी अपनी बौद्धिक क्षमता लुटाते है . यदि आपके पास काज आदि एकदम नहीं है तो भी घबड़ाने की कोई बात नहीं है - सब हो जाये गा - बड़े बड़े कानूनी दिमाग ले बैठे है - उनकी मुट्ठी में ही तो है -सब कुछ .
यदि आपने मेट्रिक भी नही किया हैतो भी डिग्री, पी जी तक के सारे कागज पक्के मिल जायेंगें .
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