Friday, 31 August 2018

Tanya Sabha Membership, Legislative Council Membership, Commission-Board-Authority etc chairmanship or membership -  what ever is within the discretion zone of politicians are parrenial source of corruption and sheer favouritism, open nepotism.
If you earn a nexus, are ready to be a blue eyed boy for some one, can quietly serve someone's greed, lust, whim, perversion, you are the right person.
Now wait for your turn and time.
There are numerous who have taken this path, willingly, voluntarily, strategically or under compulsion, coercion, undue influence, misrepresentation, mistakenly.
You will have to compete with them.
There is bitter struggle for survival and life.
That is not so easy.
Try, if you want to stoop, surrender and win.

Thursday, 30 August 2018

एक ही कहानी का वादा किया था
Picking up a Prime Minister for India is simplest job - a five minute job - Lalu Prasad..
 Picking up a gangman , group D employee for Railway may take nationwide half year exercise.
Convicts from jail or waiting for jail are the search engines for President or Prme Minister, 

Wednesday, 29 August 2018

बहुत सी लड़कियों ने वह सब कुछ अचीव किया था जिसे पाने का सपना मेरे जैसी न जाने कितनी लड़कियां देखती हैं। 
इतनी उपलब्धियों के बावजूद वे एक ‘व्यक्ति’ नहीं बन पाईं, एक व्यक्ति जो अपनी जिंदगी के फैसले लेने के लिए आजाद होता है। 
आर्थिक स्वतंत्रता को महिलाओं के सशक्तीकरण का पहला और बेहद अहम हिस्सा माना जाता है। लेकिन आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के बावजूद महिलाएं गुलाम हैं, कम से कम कईघटना जो जब न तब लगातार घट जा रही है और भारतीय महिलाओं के पराश्रित  या पुरुष आश्रित के प्रमाण देती रहती हैं,  से तो यही साबित होता है।
नित्य नई यात्रा के लिये नये गंतब्य ढूंढ लेना एक महती पुरुषार्थ है। वैसे यह है खतरे भरा। नये लोग मिलते हैं, अनजान भी होते हैं  खतरा हो सकता है, कोई अपराधी भी हो सकता है।
फुटपाथ, झोपड़ी के नंगे बचपन को उतरन की हाफपैंट पहना घोषणा कर रहे हो कि हमने गरीबी दूर कर दी। अभी भी उसी घर से बासी सब्जी की खट्टी खट्टी गन्ध आ रही है, बच्चे अभी भी उसे देख अन्टी बांध दूर भाग रहे है , स्कूल में उसके बगल वाली सीट, बैंच, जगह हर समय खाली ही रहती है। उसके पानी पीने का गिलास उस कोने में अकेला ही दिखता रहा।
लैपटॉप एक पूरी दुनिया नहीं हुआ करता,
न ही चन्द की में सिमटती जाती ये दुनिया।
इस स्क्रीन, माउस, डिलीट, इण्टर, सेव, ऑल्ट
बहुत बड़ी है कायनात इन सब के परे भी।
दीवारें बोलती रहेगी, हवा का हर झोंका देगा गवाही,
हर पाखी चीखेगा, चिल्लायेगा, देख ये रात की स्याही।

इस देश में बुद्धि जीवियों, कल्पनाजीवियों, कलमजीवियों और श्रमजीवियों के बीच इतने फासले क्यों ?
ये कलम जीवी अपने को सारे समाज का कर्णधार समझते हैं,  और सब को महा बुद्धू। ढोर बकरी समझते हैं।खुद को महानतम युग प्रवर्तक सनझने वाले ये विचारजीवी ।

Tuesday, 28 August 2018

यदि राजनेता का विरोध करने का आपका अधिकार है तो  राजनेता को भी अधिकार मिलना चाहिये कि वह राजनैतिक तरीकों से आपको समझाये, अपने पक्ष में मिलाये ओर आपका विरोध करें। यदि राजनैतिक दृष्टि से मुखर, प्रखर,प्रभावी कोई भी हो, आपको उसका सब विधि विरोध करना ही है, बुद्धिजीवी होने के नाते कोई भी आपकी आलोचना से परे नहीं है, और यह आलोचना आपकी अपनी समझ, पसन्द, नापसन्द,आपके अपने हितों के आधार पर या जिसे आप उचित समझे उसी आधार पर तो वही अधिकार राजनीतिज्ञ को भी आपको देना होगा।
यदि कोई राजनीतिज्ञ आपकी स्वेच्छाचारी आलोचना से परे नहीं, आपके वैचारिक भयादोहन से दूर नहीं, आपके विचार गठबंधन के परे नही तो आप केवल बुद्धिजीवी होने के कारण अबाध्य होने का दावा नहीं कर सकते। 
इत्ते भारी निवेश, खर्च ,अनुसन्धान आदि क्यों ? इत्ती भारी सेना, सैन्य तैयारी, साजो सामान, यह सब ट्रेनिंग, हिसा की नुमाइश, ताकत का नग्न प्रदर्शन- क्यों, किसलिये।
सब हम सब के सामूहिक लोभ, अहंकार, क्रोध, वासना, कामुक उद्वेग की रक्षा, विकास के लिए।
सब कुछ लोभ के कारण, लोभ के लिए लोभ ही से।
सब कुछ संपत्ति। यही तो है आधार, यही कारण, यही कार्य, यही नियति, यही ध्येय।
इसी के लिये लड़ता, लड़वाता, मरता, मरवाता, चीखता चिल्लाता।

Monday, 27 August 2018

धन सम्पत्ति के लिये सब कुछ दाँव पर लगा देते है, स्वाभिमान, जन, तन, मन, सब कुछ।
धन सम्पत्ति के लिये लोग प्राण, प्रतिष्ठा, प्रेम, प्यार, प्रण सभी कुछ का त्याग कर डालते हैं।
मिल के खोजो ईंट , उठाओ रोड़े,
भानुमति का कभी तो कुनबा जोड़े।
ब्यापक सोच, दृष्टि, चिंतन एक दिन की चीज नहीं है। यह एक दिन में पैदा भी नहीं हो पाती। इसमे एक अतिरिक्त तीखापन, पैनापन, धार होती है जो अतरिक्त तप बल घर्षण से ही हासिल हो सकता है।
समग्र उपलब्ध पटल को एक साथ एक बार में देखना, समझना और उसके अनन्त आयाम के बारे में वास्तविक तर्कसंगत निष्कर्ष निकाल सब के सामने रख देना, उन्हें समझ देना और उनको सहमति के विंदु तक ले आना सहज कार्य नहीं है।
सारा समाज, विभिन्न सामाजिक आकांक्षाऐं सम्प्रति घनघोर विरोधाभाषों से पटी पड़ी है, परस्पर संघर्षरत है। अधिकांश हिस्सा आवृत है, अनजान है, अनदेखा है, अदृश्य है, जतन पूर्वक छिपाया गया है। उसको देखना, देखने की इच्छा रखना, देखने का प्रयास करना भी एक दुर्दान्त दुस्साहस है, तमाम अनिष्टकारी सम्भववनाओं से भरा है, भयंकर विरोध, गतिरोध को खुला आमंत्रण है, हिंसा-प्रतिकार बल को बुलावा है, आत्मोत्सर्ग की तैयारी की घोषणा है।
अब इतने के बाद सफलता की कामना दुर्जेय महत्वाकांक्षा ही है। इसके लिए अनन्त प्रयास, सर्वकालिक सर्वतोमुखी प्रयास करना ही होगा।
यह सभी के चिंतन तक में नहीं आ पाता। कर्तब्य पथ तो बहुत दूर की बात है।
पर कभी कभी, कोई किसी प्रकार ऐसा कर जाते है।
वे ही युगपुरुष, दूरदृष्टा कहलाते है ।





कवि अशोक वाजपेयी बोले- 'मोदी पाखंड शिरोमणि और राहुल गांधी अपरिपक्व नेता'

मशहूर कवि अशोक वाजपेयी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पाखंड शिरोमणी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को अपरिपक्व नेता करार दिया है.

कवि अशोक वाजपेयी बोले- 'मोदी पाखंड शिरोमणि और राहुल गांधी अपरिपक्व नेता'

मशहूर कवि अशोक वाजपेयी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पाखंड शिरोमणी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को अपरिपक्व नेता करार दिया है.अशोकनगर जिले की चंदेरी में बैजू बावरा ध्रुपद उत्सव में शामिल होने पहुंचे कवि अशोक वाजपेयी ने जेएनयू (जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी) के छात्रों पर देशद्रोह का मामला दर्ज करने को भी गलत बताया. उन्होंने कहा कि ये छात्र-छात्राओं पर ज्यादती है.वहीं, उन्होंने असहिष्णुता के मुद्दे पर अवॉर्ड वापसी की नाटकीयता वाले बयान पर कहा कि कुछ ऐसी नौटंकी करने की जरूरत थी ताकि लोगों का ध्यान आकर्षित हो सके. साथ ही उन्होंने कहा कि किसी कवि ने कभी इस मामले को लेकर एक-दूसरे बात तक नहीं की.दरअसल, जयपुर लिटरेचर सम्मेलन में वाजपेयी ने कहा था कि मीडिया साहित्यकारों के साहित्य, उनके उठाए मुद्दों को स्थान नहीं देता है, इसकी हम भूरी-भूरी निंदा करते हैं.उन्होंने कहा कि जब ध्यान नहीं दिया जाता है तो नाटकीयता करनी पड़ती है. इस पर मीडिया ने पूछा कि 'तो क्या अवॉर्ड वापसी नाटकीयता है तो वाजपेयी ने मुद्दे को घुमा दिया था

ये धर पीपल के पत्ता दायाँ हाथ की हथेली पर और अब ये रोली चावल रख दिया, अब खाओ कसम कि,,,,,
चल मन्दिर में भगवान के सामने कसम खा कर बोल......

  • बड़का इमाम साहेब के फूंका पानी हाथ मे ले बोल ईमान से.....
लोकतंत्र में लेखक को किसी पार्टी का पक्ष लेने और किसी का विरोध करने की स्वतंत्रता है और होनी चाहिए. लेकिन दूसरे लेखकों, बुद्धिजीवियों और देश की जनता को भ्रमित करने की कोशिश उसे नहीं करनी चाहिए. अन्य चीजों की तरह सहिष्णुता भी सापेक्षिक होती है. एक पक्ष यदि सहिष्णु नहीं है तो वह दूसरे को भी उसका उल्लंघन करने को प्रेरित करेगा. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब दूसरों की भावनाओं को चोट पहुंचाना नहीं है. स्वाधीनता हमारे समय की सबसे मूल्यवान चीज है, पर सबसे खतरनाक भी वही है.
असहिष्णुता विरोधी आंदोलन स्वतःस्फूर्त नहीं था, प्रायोजित था, या यूँ कहिये कि एक षड्यंत्र था, बल्कि इसके लिए कुछ लेखकों ने देश व्यापी नेटवर्किंग और अभियान चलाया था जिसके लिये बाकायदा अपवित्र साधनों से फंडिंग की गई थी।
असहिष्णुता आंदोलन वृहत्तर बुद्धिजीवी समाज द्वारा अंततः निंदित हो कर रह गया ।
भाव का अंतर होने से कर्म का स्वरूप और उसका प्रभाव बदल जाता है।
 बिल्ली अपने तेज नुकीले दांतों से अपने नवजात बच्चों को उठाती है और उनकी मुलायम त्वचा पर कोई खरोंच तक नहीं लगती, लेकिन उन्हीं दांतों से वह अपने शिकार को लहूलुहान कर देती है. यह भाव का अंतर है।
लेखकों , कवियों, बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग  वे  हैं जो लेखकों या बुद्धिजीवियों  की सहज क्रांतिकारी या यशलिप्सु प्रवृत्ति वश हर ब्यवस्था आलोचना समारोह, महोत्सव में अपना नाम चमकाने और लोकप्रियता हासिल करने के लिए (जैसा कि हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक प्रो. नामवर सिंह ने कहा है) शामिल हो जाते है और नाखूनों पर खून चमका कर शहीद हुआ चाहते है, या शहादत का तमगा, पदक, स्टाइपेंड, मानदेय या पुरुस्कार ले अपने आने वाली पीढ़ियों के दायित्व से मुक्त हो लेना चाहते हैं कि आगे उन्हें उनकी आने वाली पीढ़ी केवल शब्द विलासी कह कर उलाहना न दे । 
अक्सर यह होता है। 
क्रांतिकारी होने का लोभ, बनने का लोभ, जाने जाने का लोभ, मान लिये जाने के लिये उद्यम और मानव देने के लिये पैरवी।
भविष्य में किसी पद की संभावना तलाशना।
या अभी ही पलटनीया मार कहीं किसी कुर्सी से जा चिपकना। 
लगातार खोज, जोगाड़, जुगत, सेटिंग जारी रहती है।
सत्य की यही विशेषता होती है कि आरंभ में असत्य द्वारा चाहे जितना आच्छादित होता रहे, अंत में वह प्रकट हो जाता है. तो इस समूचे प्रकरण में शिक्षित समुदाय जिस निष्कर्ष पर पहुंचा वह यह था कि पुरस्कार लौटाने वालों का मुख्य प्रयोजन राजनीतिक था. असहिष्णुता का मुद्दा मात्र एक पैसे और 99 पैसे राजनीति. 
सुप्रीम कोर्ट में अधिकतम मामले नागरिक बनाम शासन होते है. इसलिए न्यायपालिका से उसके पक्ष में फैसले की अपेक्षा और उसके लिए प्रयास उस दौर का सत्ता पक्ष करता है; इस सच्चाई से कोई इंकार नहीं कर सकता.
फिर वो कांग्रेस हो या भाजपा।
असल में जो लोग सुप्रीम कोर्ट में अपने व्यापारिक या कहें प्रोफेशनल हित रखते है उन्हें इस मुद्दे पर चुप ही रहना चाहिए. क्योंकि जिन विधिवेत्ताओं की सुप्रीम कोर्ट में करोड़ों रुपये साल की प्रैक्टिस है, वो आज इस मुद्दे पर बोलते है तो उन पर ऐसे आरोप लग सकते है कि उन्हें अपने व्यापारिक हित के चलते फिक्र हो रही है. जैसे मंदिर के पुजारी के, चर्च  के पादरी, मस्जिद के इमाम आदि के        बदनाम होने पर वहां बैठने वाले दुकानदार को अपने धंधे की फिक्र हो जाती है; इसलिए, वो उसके पक्ष में बोलता है.
हमें देखना यह है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खतरा किससे है? विपक्ष के महाभियोग प्रस्ताव से या सत्तापक्ष में न्यायपालिका के दखल से?
जब न्यायपालिका, मीडिया और विधायिका मिल जाएंगे तो फिर एक दूसरे पर नजर कौन रखेगा?
लेकिन जब कोई जज न्याय की कुर्सी पर बैठा होता है तो कई बार उसे नागरिक के तौर पर अपनी पसंद के नेता, राजनीतिक पार्टी यहाँ तक कि सरकार के ख़िलाफ़ भी फ़ैसला करना पड़ सकता है.
इसीलिए हमारी शासकीय प्रणाली में न्यायपालिका को सरकारों से आज़ाद रखा गया है.
न्यायपालिका को सरकार का अंग इसीलिए नहीं माना जाता कि वो सरकार और उसके मुखिया के ख़िलाफ़ भी फ़ैसले करती है.
A royal ambeienc, grooming, dressing and input-output-delivery goal and a perfection level conviction is all that is needed to achieve showcaceable , presentable performance.
A high level performance expectation only lead to optimum investment of all the quality resources proportionately.
Very high, glaringly different well tuned, well managed, all sides really greased and optimum controlled, intelligently guided EQ is required fir any one on a drivers seat and carrying any load or discharging aby duty.
To create awareness about this duty load and ti target enhancement of capability specifically for this targeted purpose is training. 

समय में वो ताकत होती है जो व्याख्याओं को उलट दे, 
समय सब को साधता है। 
वक्त सभी को बांधता है। 
काल  सभी को ब्यापता है।
तलवार, राजमुकुट, राजसिंहासन को हर समय गर्म खून चाहिये। ठंडा हुआ खून तो तलवार की धार, राजसिंहासन की धमक, राजमुकुट की चमक सब फीकी पड़ जाती है।

  • सोने की चमक और मूल्य कभी भी कम नहीं पड़ती। सोना लोभ, लालच, आवश्यकता को उद्दीपन देता है, ज्ञात भी अज्ञात भी। राजा, प्रजा, कलाकार, योद्धा सब स्वर्णभिमुख होते है। धनोपार्जन-उत्पादन कला प्रवीण कभी राजा,तलवार आदि से आतंकित वस्तुतः नहीं होते बस आतताइयों से दूर रहना चाहते हैं।
अपराध करना या अपराध के प्रति आकर्षण  एक अजीब मनः स्थिति है।अपराध के सारे आयाम एक पूर्ण साहित्य, क्रिया, प्रयोग, प्रशिक्षण, क्रिया-प्रतिक्रिया प्रबन्धन, उतपन्न होने वाले समस्त फलाफ़लों के नियमितिकरण, अध्ययन, प्रदर्शन, अभ्यास का एक पूरा फलक है।
अपराध, अपराधी , अपराध के कारण, अपराध के फलाफल, नियम, कायदे, कानून, अपराधियों के पारस्परिक नियम, बचाव और आक्रमण तकनीक आदि का पूरा ब्रह्माण्ड है।
अनुशासन एक संस्कार है, प्रकृति है , धारणा है, अभ्यास है, संस्कृति है, सदियों से सदियों की यात्रा का मंत्र है, पीढ़ियों के बीच का पारस्परिक विश्वास, समझ और आश्रय है, निरन्तर लम्बे समय तक चलने वाले विकास की नींव -आधार है।
न्यायाधीशीय प्रक्रिया कई कारकों के अधीन होती है। यह एक ओर तो ब्यक्ति या ब्यक्तियों के ब्यक्तित्व, समझ, ज्ञान, प्रशिक्षण, परिवरिश, विश्वास, पूर्वाग्रह, पसन्द, नापसन्द, स्वार्थ, महत्वाकांक्षा, शारीरिक-मानसिक पराक्रम, भनात्मक उफान, उद्वेग के आश्रित  होती है तो दूसरी ओर अनेक नियम , कायदे, मूल्य जो ब्यक्ति, समूह, समाज, सम्प्रदाय द्वारा ब्यक्त या अब्यक्त रूप से स्वीकृत,या अस्वीकृत, घोषित या रद्दीकृत या समाज द्वारा लोकप्रिय अपेक्षा-उपेक्षा, या सामाजिक अथवा शासकीय आकस्मिकता अथवा प्राकृतिक, वैज्ञानिक, मनोवैज्ञनिक , नैतिक बाध्यता से बंधी होने के कारण स्वतन्त्र , निष्पक्ष नहीं रह पाती है और फलस्वरूप अपनी उपादेयता खो देती है।

Sunday, 26 August 2018

Once you land in public domain you are liable to scratching threadbare scrutiny.
Trim your self for public appearances and examination.
Public figures have to bear this.
Those who tend to bear that or volunteer that acid test occupy public space.
और वह सब कुछ एक झटके में छोड़ कर जाने कहाँ चला गया, न कुछ कहा, न कुछ बताया, कुछ बोला-सुना जैसा कुछ भी तो नहीं, न कोई शिकवा, न कोई शिकायत, हममे से किसी की न उससे शिकायत, न उसकी कोई हमसे शिकायत, फिर भी वह चुपचाप ऐसे बिना बताये क्यों, कहाँ चला गया। सब कुछ छोड़ कर।
पता नहीं, 1989 के बाद भी भारतीय वामपंथियों को मार्क्स, लेनिन, स्टॅलिन, ट्राटस्की, माओत्सेतुंग, आदि अधिनायकवादी विचार ही क्यों प्रिय थे। क्या पचास साल किसी राष्ट्र को एक विचारक पैदा करने में, किसी विचार को समझने, समझाने, जानने,जनवाने, मानने, मनवाने के लिए पर्याप्त नहीं होते क्या। क्या जमीनी नेता ज्योतिबसु की उपेक्षा केवल किताबी अथवा मंचीय अथवा विदेशी स्टाइपेंड से पलने वाले नेता या संगठन द्वारा किया जाना किसी भी दृष्टिकोण से उचित थी।
इमानदारी अब सचमुच अजायबघर या म्यूजियम या लेबोरेट्री की चीज हो गई - और ईमानदार बस सार्वजनिक निन्दा - पारिवारिक निन्दा -स्व -निन्दा झेलता निरीह प्राणी - कहते चलता है - जीवन यदि जहर है तो इसे पीना ही पड़ेगा - यह दूसरी बात है की जहर पी कर भी वह चैन और इज्जत से मर भी नहीं सकता - मूल्य बदल गये , मूल्यों की परिभाषा ,स्वरूप बदल गये या बदल दिये गये हैं।


गीदड़ ,लोमड़ी ,भेड़िये ,सियार ,बगुले के जीन  तथा उनकी प्रचलित चारित्रिक विशेषता अब तो क्वालिटी के आवश्यक इन्ग्रेदियेंट के रूप में लगभग स्वीकार कर ही ली गई है .पगुराने वाले भारवाही जीव, दुधारू जानवर , भोजन के हिस्से बनने वाले जानवर-जीव के जीन तथा उनके प्रचलित गुण अब स्वीकृत अवगुण ,अयोग्यता के पारामीटर बन चुके हैं. मूल्यों की परिभाषा तेजी से बदल रही है ,अब भेड़िये द्वारा बकरे की खाल ओढ़ना धोखा देने का प्रयास नहीं ,स्ट्रेटेजी तथा रणनीति कहलाती है ,सीखी और सिखाई जाती है .

Saturday, 25 August 2018

हमने न्याय को अधिवक्ता की बहस करने की क्षमता, हमारी फीस देने की क्षमता और जज साहबान के ब्यक्तिगत विवेक, मान्यता और मूड के अधीन बना दिया।
हमने न्याय को अन्तहीन अंधी गली में मिलने वाला फल बना डाला। जो पहले थक गया वह हार गया।
मुझे सलीका ही नहीं , मैं क्षीर -नीर विवेक रखता ही नहीं -शायद मेरे में वह मेधा ही नहीं - इसी लिए मैं कहने योग्य अथवा न कहने योग्य का उचित निर्णय नहीं कर पाता .
शायद मैं वह कह जाता हूँ जो मुझे नहीं कहना चाहिये .
मैं वहाँ कह जाता हूँ जहाँ शायद नहीं कहना चाहिये .
मैं शायद वैसे कह जाता हूँ  जैसे मुझे नहीं कहना चाहिये .
मैं सब कुछ सभी जगह बिना एडिटिंग के सीधे लट्ठमार कहने का दोषी हूँ .
मैं छिपाना क्यों नहीं जानता ?
शायद चाहता ही नहीं ,इसलिये !
जरूरत ही नहीं , इसलिये .
मैं डरता नही या डरना जानता नहीं ,इसलिये ?
छिपाने को कुछ है ही नहीं ,डरने-डराने के लिये कुछ है ही नहीं .,छिपने -छिपाने के लिये कुछ है ही नहीं  बस इसीलिये शायद मैं कहीं भी ,कभी भी , कुछ भी  बोल जाता हूँ , कह जाता हूँ ,सुन-सुना जाता हूँ ,कैसे भी कहीं भी चला जाता हूँ , आ जाता हूँ . डर नहीं लगता . शर्मिंदगी नहीं होती .
 जानता हूँ बिना छिपाये आना-जाना,उठना -बैठना, चलना- चलाना, बोलना -चालना , कहना -सुनना सदैव हितकारी निरापद रहता है .
इसी तरह मैनें सीखा है . किया है . जीया है .
सीखा हुआ ,किया हुआ , जीया हुआ ही तो कहना होता है .इसमें जोड़ घटाव की जरुरत कहाँ ? किसलिये ?
जीवन की लम्बी यात्रा ने  बहुत कुछ दिया।  सच तो यह है की उनका वर्णन नहीं किया जा सकता। मिठास या तीतापन ये शब्द तो लिखे जा सकते हैं।  इन शब्दों को पढ़ने के बाद अनुभवी लोग इन स्वादों की कल्पना भी कर पायेंगें पर मिठास या तीतेपन को लिख कर या कह कर  , सुन - सुना कर समझ या समझा कर  नहीं जाना जा सकता।
जीवन के अनुभव मैं यथा शक्ति , यथा रूप लिखने -कहने की कोशिश कर  रहा हूँ , पर खिन शब्द चूक जाते हैं कहीं मैं खुद  ही चूक जाता हूँ।
अपनी ग़लतियाँ , अपनी मजबूरियाँ , अपने भ्र्म , अपनी नादानियाँ , अपनी बेवकूफियाँ , अपनी ही दुष्टता , अपना ही पाप-पूण्य , अपना किया या न किया , अपना भुला या न भुला - यथारूप कहना -लिखना- बता पाना  इतना भी सहज नहीं होता।
कुछ अनुभव इतने कटु होते है कि उनका पुनः स्मरण जीवन में कडुवाहट को पुनर्जीवित क्र देते है। बुद्धि - विवेक -हृदय का एक अंश ऐसे प्रसंगों से पुनः दो चार होने के लिए तैयार ही नहीं होता।
क्या करूँ ,एक तरफ बुद्धि , दूसरी ओर विवेक  और अलग से द्रवित हृदय - इन सब में रचा  बसा   मेरा अनुभव जो जब भी होगा -आएगा-जायेगा इन्हीं मार्गों से ; और फिर खुद को आपादमस्तक आमूल चूल आप सब के सामने पूर्ण रूपेण खोल देने का मेरा संकल्प।
आप सोच सकते है स्वयम को निरावृत करना कितना कठिन है। 
कभी कभी सोचता हूँ दिगम्बर मुनि महाराजों के दीक्षा के क्षण कैसे होते होंगे।
आज यह सब लिखते समय सोचता हूँ की कृष्ण किस प्रकार अर्जुन के समक्ष दिब्य हुए होंगे।
ब्यक्ति जब आवरण से मुक्त होता है तभी वह दिब्य होता है। 
ईश्वर जीव को बिना आवरण के ही भेजता है और अंततः बिना आवरण के ही वापस ग्रहण करता है।
न्यायाधीश निर्णय की ओर बढ़ते जाता है और अपना चला, चलने का कारण, आधार, दिशा बताता चलता है और निर्णय तक पहुचता है, निर्णय हो जाता है। 
यही सकारण निर्णय  न्यायाधीशीय निर्णय कहलाता है।
यह कारण बताते चलना ही पारदर्शिता है।
यही रतेरिया विवेक, विजन है।
रतेरिया विजन
मूझे मधुमक्खी बने रह जाने दो , शहद बनाने की जो आदत बन पड़ी है वह रह जायेगी
मैं लूंगा तो कुछ नहीं , लेते वक्त भी नवजीवन दूँगा ही, जाते जाते शहद ही दे कर जाउँगा
न्यायाधीश एवं न्यायाधीशीय प्रक्रिया में राजा की स्वेच्छाचारीता और अहंकार, उन्माद, आत्ममुग्धता अलग ही रहे।
नदी और इतिहास की केवल एक ही गति सदैव बनी रहती है।
फारवर्ड आलवेज।नेवर रिटर्न्स। नो रिप्ले। नथिंग preprogrammed। ever new। 


मुझे दया नहीं अधिकार चाहिए। मैं खाये  बिना , पिये बिना , रह सकता हूँ पर अपनी मर्जी से  सम्मान के साथ खाने-पीने ,रहने- सहने , जीने- मरने  , नाचने - गाने के अधिकार के बिना नहीं रह सकता।  और हाँ , इस अधिकार की ओर आँख उठा कर ताकना मत नहीं तो.……… 
रतेरिया विजन
Every dignified disagreement, difference has thousands of solutions always available and all are as much dignified as the difference itself.
रतेरिया विजन से अभिप्रेत है - अति से निवृत्ति, सर्वोत्तम विवेक का समानुपातिक अग्रसंचालन, अनुगमन, अनुसरण, प्रचार, प्रसार।
सामाजिक प्रश्नों, समस्याओं के समाधान के प्रति चैतन्य यथासम्भव प्रयास, रुचि, प्रशिक्षण,जागरूकता और यथासम्भव उसके लिये स्वार्थ का, साधनों का त्याग। चिंतन लोकपक्षी हो।
प्रयास, कार्य, क्रिया समाजोपयोगी हो। ब्यक्ति की मर्यादा सभी फलकों पर सभी स्थितियों में सामान्य, समान और रुचिकर हो। ब्यक्ति के पास सामाजिक साधनों, उत्पादकता, उपादेयता, उनके विकास, विस्तार तक प्रवेश, पहुंच, उपभोग, का सम्मानजनक अवसर हो। ब्यक्ति के शरीर, श्रम, चिंतन, विचार, बुद्धि, विवेक, मन, गौरव, प्रतिष्ठा, गरिमा का दमन, शोषण, दोहन न हो।
अपमान स्वीकृत न हो। मर्यादा सदैव लोभ, लालच, अहंकार, क्रोध, काम, लिप्सा , प्रदर्शन, शक्ति, हिंसा , प्रतिकार, प्रतिशोध को सीमा में रखने में सक्षम हो, सर्वाधिकृत हो। सभी उसी मर्यादा से बंधे हो।
यही रतेरिया विजन है।
This is Rateria Doctrine.
 RSS is yet to learn to look at females beyond the image of mother, wife and daughter.
RSS seldom endorses them equal status and equal dignity with equal opportunity.
The RSS has been halfhearted in its approach towards empowerment of women. 
For the RSS, it is important that OBCs and Dalits join the organization if it is to become champion of the interests of all Hindus and not just the upper castes. It will also likely to increasingly get its cadre from the OBCs and Dalits. Can its deeply Brahminical leadership convinced of the superiority of the upper castes change itself to accommodate OBCs and Dalits in its leadership? 
They must.
Gone are the old Charnamrit Days.
They will never return. 
The old masters must not attempt a mass sucide or a burial of the Sangh.
However, some of the recent controversies have yet again betrayed the RSS’s upper caste bias. Repeated statements by RSS chief Mohan Bhagwat calling for a review of the caste based reservation policy were slammed even by Bharatiya Janata Party (BJP) members. The BJP and the larger Sangh Pariavar’s mishandling of the suicide of Dalit PhD scholar Rohith Vemula, where its leaders questioned the genuineness of Vemula’s claims of having been a Dalit and even his mental balance, lost them goodwill among the Dalits.
Many young men, particularly from among castes known as OBC and Scheduled Castes, showed interest in joining the RSS because of the rise of Narendra Modi. These young men were inspired that Modi, an OBC and an RSS pracharak, has risen to become the prime minister of India.
But caste continues to remain an albatross around the RSS neck. It continues to remain a Brahmin-Thakur-Bania dominated outfit, although it has tried to change that in recent years.
The RSS statement at the end of the three day consultations of its Akhil Bharatiya Pratinidhi Sabha, its top decision making body, in Nagaur in Rajasthan has surprised many for its relatively modern outlook on the entry of women into temples and its efforts to reach out to Other Backward Castes and Dalits. 
This is not to mention its near revolutionary change – by its own standards – in dropping its khaki shorts ( original thought ) for brown trousers.
It is a compulsive change. It is under duress. It is politically driven shift.
A section of stalwarts have been replaced or displaced or some have been reformed or some have gone irrelevant or under oblivion.
But the change is more than visible and meaningful. 
I think this change cannot be reversed. 
If this is reversed or any attempt for the original idelogy is made, perhaps RSS will rite its summary and will disappear in history. 
A Hindu society without dignity first for OBC, SC, ST and femal cannot be dreamed.

Here is a look at why the RSS is keen to showcase that it can be modernist in its outlook. 
A closer study of the three resolutions would also show how the change for the 90-year-old outfit is more than expected. 
Perhaps it is Modi Shah polifico effect. 
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में आत्मरक्षा के अधिकार को और व्यापक कर दिया है। इसमें साफ कहा है कि यदि किसी को अपनी जान का जरा सा भी खतरा हो तो वह आत्मरक्षा की पहल कर जवाब दे सकता है। यह जरूरी नहीं है कि पीड़ित के साथ कोई घटना हो
कानून का पालन करने वाले लोगों को कायर बनकर रहने की जरूरत नहीं है, खासकर तब, जबकि आपके ऊपर गैरकानूनी तरीके से हमला किया जाए। प्रिंट मीडिया ने इसे कोर्ट का अति-न्यायिक सक्रियता दर्शाने वाला निर्णय भी करार दिया था। कमोबेश यह निर्णय देश के सभी समाचार-पत्रों में प्रकाशित और सभी चैनलों पर प्रसारित हो चुका है और इस निर्णय पर अनेक लेखकों ने अपने-अपने तरीके से अपने-अपने विचार भी व्यक्त किए हैं। लेकिन सभी ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को सीधे तौर पर जानलेवा हमला होने की स्थिति में आत्मरक्षा के अधिकार के रूप में ही उपयोगी माना।
संवाद सहयोगी, किशनगंज : भारतीय संविधान में महिलाओं की सुरक्षा और अधिकार के लिए कई कानून हैं। जिसमें महिलाएं सामाजिक रीति रिवाज के साथ कैरियर के सभी क्षेत्र में पुरुषों के समान अधिकार प्रदान किया गया है । यह जानकारी मंगलवार को जिला एवं सत्र न्यायाधीश रमेश कुमार रतेरिया ने दी। जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री रतेरिया डुमरिया स्थित बालिका उच्च विद्यालय में विधिक जागरुकता शिविर में बालिकाओं को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर श्री रेतरिया ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ग्रहण करने वाली बालिकाएं ही कानून का ज्ञान अर्जन कर सकेगी। इस ज्ञान को प्राप्त करने वाली बालिकाएं स्वयं के साथ अन्य बालिकाओं और महिलाओं के अधिकार की रक्षा के लिए भी अपनी आवाज बुलंद कर सकती है। श्री रतेरिया ने कहा कि वर्तमान समय में बालिकाएं डॉक्टर, इंजीनियर और आर्किटेक्ट तो बनना चाहती हैं लेकिन न्यायिक विभाग में अपना कैरियर बनाने की दिशा में विशेष ध्यान नहीं देती। जबकि बालिकाओं के लिए जरुरी है कि वे कानून का ज्ञान अवश्य अर्जित करें। साथ ही न्यायिक विभाग में भी अधिवक्ता, पीपी, सीजेएम और डीजे बन महिला सशक्तिकरण की दिशा में अपना योगदान अवश्य दें सकती है। कारण यह कि जिस समाज की बालिकाएं व महिलाएं कानून की जानकार होंगी। वह समाज निश्चित ही विकास के पथ पर अग्रसर रहेगा। कानून सभी को सेल्फ डिफेंस राइट प्रदान करता है। इसलिए जरुरी है कि प्रत्येक बालिका कानून का ज्ञान अर्जन करें। वहीं श्री रतेरिया ने बालिकाओं द्वारा कानून से संबंधित पूछे गए प्रश्नों के जवाब भी दिए। इस दौरान मुख्य रुप से सीजेएम बीएन मिश्रा, प्रधानाध्यापिका इंदिरा भौमिक, डा. रियाजुय्दीन, अब्दुल कादिर, मो. रफीक, बिन्दु शर्मा, आलोक कुमार, फरहान नाज और राकेश कुमार सहित बड़ी संख्या में स्कूली छात्राएं मौजूद थी
Continuous judicial education of serving judges is sine qua non for improving their
knowledge and enhancing “delivery of timely justice”. Whether it is appropriate for the
executive to be involved in any way with the curriculum, or what are the most suitable
methods for teaching, or who are best suited to impart this kind of training are some of the
questions explored , discussed by all of us at the earliest in the best interest of society in general and judiciary in particular.
We the people are now a growing mobocracy ?
Is that OK with you and all ?
Do you and can you endorse it ?
Sprouting proves that a seed is gone. Flowering trees declare the farewell of earlier fruit bearing cycle. 
Growth is gradual displacement and replacement of old, stale, worn, torn, expired, spent, finished.
The greatest reward is for risk harnessing, risk managing, risk calculating, risk manipulating, risk forecasting, risk securing.
None knows how the investigation will proceed and investigator would think or probe ?
None can predict how deep or shallow, extensive or showy or nominal the investigation or the trial is going to be ?
Mr lawyer ! Don't tell me what is law and how I am going to suffer.
Just tell me what my money can buy.
Locate the best buy ?

Friday, 24 August 2018

Doctrine of proportionality covers and governs all stream of philosophy, imagination, logic, probability, permutations, law,
Even miracles are referable to proportionality.
Micro analysis would unfold the proportionalty.
RATERIA Vision is doctrine of proportionality. Distances must be manageable. Heights and depths must be corelatable and comprehensible.
Let noting be poles apart.
Even the two poles are inter refereable. Without a refrencre other is nonexistent, extinct.
The whole universe, though unfathomable, unlimited and uncomprehincompr completely, is proportionate.
The proportionality never changes.
Ganja, Bhaang, Opium, Liquor , Tobacco, gambling, Arms, Drugs, flesh trade has been major source of funding of political activities in world and in India.
Left in Tripura, SAD on Punjab, Parties in Bengal, Goa, Kerala are no exception.
Planning a one to one straight fight in forthcoming general election at this junction may be suicidal for opposition.
It will be a vision, thought driven well organised, greased, trained, unifoccused and resourceful army with a proven general Vs hurriedly ganged up untrained unfocussed, multi vision multi-dimensional crowd without even a head ,mind or heart or even a destination - every one trying his individual best to fight an unassailable army and at the same time trying to book the credit for the victory, should it come  in some or any case, for himself and marginalising all others who are with him.
A  misadventure  in all human probability.
I disappear to reappear. My extinction is the rebirth of my creation. I am only  a step forward in the chains of never ending recantations.
A question with in today is the gate way to knowledge tomorrow.
Your disagreement apparent  is the specific use vehicle for forward journey.
The fire within will burn all doubt and you will lead through that firey light.
The newest, the youngest is and has been my best teacher, instructor, igniter, propeller, pusher, inspiration, source of power and energy.
कब, क्या, किससे सीखने को मिल जाये , कौन जानता है, बस सीखने की इच्छा होनी चाहिये।

Thursday, 23 August 2018

मुगलों और अंग्रेजों ने हमें हमारी ही नजर से गिराने का षड्यंत्र सोच समझ कर किया। हमारा आत्मबल कमजोर हुआ। अपने विरुद्ध अत्याचार को देख समझ कर भी हम उसका प्रतिकार नहीं कर सके, करने का साहस नहीं जुटा सके, विरोध तक न किया न करने का सोचा।
ऐसा ही कुछ कांग्रेस ने किया। कांग्रेस विरोधियों के आत्मबल पर कुठाराघात किया।
अब यह सब समझ में आने के बाद बी जे पी कर , करवा रही है।
कांग्रेस का आत्मविश्वास हरण महायज्ञ चल रहा है ।
कांग्रेस को थका देने का कुचक्र। कांग्रेस को दिशाभ्रम का शिकार करने का प्रयास। कांग्रेस को साधन, साध्य, विचार, विचारक, नेता, नेतृत्व , लक्ष्य , कार्यकर्ता, साहस विहीन कर देने की योजना पर काम हो रहा है।
इसी अस्त्र से आगे अनेक लक्ष्य वेधने का कार्यक्रम होगा।
कांग्रेस इसे शायद समझ नहीं पा रही।
यह कांग्रेस नहीं, कांग्रेसियत के खिलाफ आयोजन है।
कांग्रेस में ही भ्र्ष्टाचार , दुराचार, अनाचार, ब्यभिचार है या था ऐसा नहीं था, न है पर उसको जन जन तक समझा, दिखा, फैला, एक विश्वसनीयता का संकट पैदा किया जा रहा है कांग्रेस के खिलाफ।
अपराध की वकालत, उसको उचित , सकारण, तार्किक समझना, जानना, समझाना, उसकी मार्केटिंग, जस्टिफिकेशन ,विज्ञापनबाजी अपराध को उकसाता, महिमामण्डित कर बढ़ावा तो देता ही है।
पटना और आस पास की आपराधिक घटनाओं की स्थिति, अपराधियों के बढ़ते हौसले, अपराध से किसी भी प्रकार का कोई भी संकोच का न होना, अपराध के प्रति बढ़ता आकर्षण , अपराधियो का मिलती सुरक्षा -आश्वस्ति,

Wednesday, 22 August 2018

I don't put on royal attires in my bed room only bwcabec I am King or prince or queen or princess.
Perhaps , I need not.
Let me have some personal space...

सभी के पास कुछ न कुछ जीवन की सीख होती है

घर की खिड़कियों पे पहरा मत बैठाओ,खोल दो,
सूरज को किरणों की बारात हर सुबह लाने दो।
उपन्यास जो बन रहा उसे चौराहे का चुटकला बना डाला, महाकाब्य रचते रचते, बेतुके अनगढ़ मुक्तक में फँसा डाला।

Tuesday, 21 August 2018

क्या सुप्रीमकोर्ट को हम सब मिल सर्वोच्च सलाहकार परिषद के रूप में ही देखना चाहते है ?
एक गरिमामय निर्देशक मण्डल , आवश्यकता पड़ने पर पुलिस, क्रिकेट, पार्लियामेंट, राजनेता का पर्यवेक्षण, अनुश्रवण, एक उच्चस्तरीय मध्यस्थ मण्डल के रूप में ही देख सन्तुष्ट हो जाना ही क्या संविधान का अंतिम दर्शन है ?
क्या सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्र की समस्त चिंताओं , समस्याओं के निदान का अंतिम स्वप्नदृष्टा समाधानकारी संस्था है ?

Monday, 20 August 2018

Faced with a shrinking footprint across the country, the Congress is now battling for survival. 
Faced with a shrinking footprint across the country, 
एक पार्टी के प्रधानमन्त्री, अध्यक्ष ने अपने पूर्व अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री  के निधन के पश्चात क्या ब्यवहार किया समझने के लिये अटल और नरसिम्हा राव की मृत्यु पश्चात ब्यवहार का अध्ययन किया जाना उचित होगा।

Sunday, 19 August 2018

Aerospace materials are materials, frequently metal alloys, that have either been developed for, or have come to prominence through, their use for aerospace purposes.
These uses often require exceptional performance, strength or heat resistance, even at the cost of considerable expense in their production or machining. Others are chosen for their long-term reliability in this safety-conscious field, particularly for their resistance to fatigue.
The field of materials engineering is an important one within aerospace engineering. Its practice is defined by the international standards bodies[1] who maintain standards for the materials and processes involved.[2]Engineers in this field may often have studied for degrees or post-graduate qualifications in it as a speciality.[3]
spacecrafts/airplanes needs deep knowledge of material engineering to produce durable,lightweight,super strong materials to build airframe,spacecraft structure. Without that knowledge we wont be able to fly aircraft’s/spacecraft’s both in air or in space.
spacecrafts/airplanes needs deep knowledge of material engineering to produce durable,lightweight,super strong materials to build airframe,spacecraft structure. Without that knowledge we wont be able to fly aircraft’s/spacecraft’s both in air or in space.

स्टार्टअप , नया उपक्रम, आत्मनिर्भर, स्वनियोजन, उपस्थित खतरे का सामना कर लेना, खतरे को समझना, मैनेज करना यह सब एक अलग ही अनुभव है, सन्तुष्टि देता है ।


बड़ा सोच बड़े सपने से खुद को पक्की तौर पर बांध लो, फिर देखो हाथ खुद ब खुद चलने लगते है, पैर दौड़ने लगेंगे, थकना भूल जाओगे, झुकने की जरूरत न रह जायेगी, बस एक पक्का इरादा, शुरू से आज तक ,अब ,अभी तक सफ़लता का जूनून।
मैं फरिश्ता बन कर ही क्या करूँगा जो मेरी जिंदगी दरिंदो सी हो।
मुझसे हर वक्त मीठी बातों की उम्मीद मत करना,मुझे खामखाह मुस्कराने को मत कहना, मैं जानदार इंसान हूँ,
अपनी, अपनों की हिफाजत, बेहतरी, सकून, के लिये ही तो-
कुदरत ने ये पंजे, नाखून, दाँत, गुर्राहट,गर्म खून, ये साँसे दी है
हमें बरबाद होने या करने के लिये ज़हर, गोला, बारूद या दुश्मन की जरूरत नहीं,
हम खुद ही खुद से नफरत, दुश्मनी कर अपनी बर्बादी की कहानी लिखने को काफी है।
नदी, नाले, पहाड़, चीखते चिल्लाते क्यूँ है,
 बरसते बादलों का ये करवा यूँ बहकते क्यूँ है
ये कुछ कह रहे है, इनकी कुछ फरियाद है
शिकायत है, सुन सकोगे ?

Saturday, 18 August 2018


प्रकृति द्रौपदी कब तक लुटती रहती कंक्रीट दैत्य के हाथों, अपने जीवन वसन को तो बचा ही नहीं पा रही थी
कैसे, किस किससे बचाती अपनी मानसूनी यौवन की ब्यथा
बांटती, बांचती रही , अपनी दुविधा, आखिर सारा शरीर फुट पड़ा, बह चला अनन्त मवाद से भरा भद्दा पीर भरा घाव।

Friday, 17 August 2018

जगी हुई आँखों से किया पहरा ही पहरा है,
आँख जो मूँदी तो पहरा, पहरा कहाँ रह जाता है।
चढ़ाई पे कभी फिसल ही जाओ तो हिम्मत करना फिर एक बार,
सीढ़ियों पर फिसलन तो होगी, गिर कर फिर से चलना होता है।

Thursday, 16 August 2018

Speechless, शार्ट ऑफ वर्ड्स,
कि वो शब्द कहाँ से लाऊँ, श्रद्धासुमन जिसे बनाऊँ, मैं नहीं जानता।
वक्त ही कितना दिया वक्त ने, हिसाब मांगने के पहले,
तालीम भी तो मुकम्मल न थी, नीन्द से जागने के पहले।
मेरा होना ही पर्याप्त है, मुझे मिटा न सकोगे ताकत से, प्रेम और प्यार  से कह दोगे तो मैं हवा हवाई हो जाऊँगा, उड़ तो जाऊँगा पर जाऊँगा नहीं, हवा, बहार,  पत्ते पत्ते में, ओस की हर बून्द, हर निकलती कोपल में, हर फूटते अंकुर में, कूदते, नाचते, उछलते बचपन, यौवन में समा जाऊँगा, रहूँगा, उगता ही रहता रहा हूँ, रहा करूँगा।
हर साँस में जन्म ले एक नई आश, हर हाथ से हो पूर्ण प्रयास,
टूटे नहीं कभी कहीं कोई विश्वास, चलता जीवन न हो निराश।
अपने विश्वास को टूटने ,खण्डित मत होने देना। विश्वास करने की आदत प्रति क्षण और सम्पुष्ट करते रहना। यह विश्वास ही आश है, पुरुषार्थ है, पराक्रम है, मैं हूँ, मैं कर सकता हूँ, यह मेरा है, यही विश्वास हर आने वाले क्षण का निरन्तर, चिरन्तन का आधार है, रहेगा।
एक पीढ़ी को विश्वासहीन मत होने दो। प्रश्न यह नहीं कि विश्वास किसमें है, प्रश्न है कि विश्वास है या नहीं , विश्वास रहना चाहिये, इसमे या उसमें, विश्वास ही नहीं रहेगा तो सब कुछ लूट जायेगा , हमारा मूल आधार ही नष्ट हो जायेगा। न खुद अपने विश्वास से खेलो, न पूरे समाज के विश्वास से, न विश्वास के बीज से, विश्वास करने की आदत बन रहने दो। में भी कहूँ तो विश्वास करना मत छोड़ना, भूलना तो कत्तई नहीं, कभी कहीं कुछ चूक हो ही जाए तो फिर से वहीं पहुंच समझ विश्वास की डोर थाम लेना , मेरे भाई।

Wednesday, 15 August 2018

A journey or thousands of years past, present and future... Will go on endlessly. Just contribute generously . Do and give your all time best.
Even the best ever is never finally final, fully full, completely complete. Any one can try to improve and can improve. But it is easier to destroy, find fault, trace defects, track weakesswea but really difficult to improve, plug in the wholes, mend and correct if something is missing and support, supply the missing component.
ब्यक्तिगत आग्रह, हित, दृष्टि से संस्थान, ब्यवस्था, सिस्टम, समस्या, परिस्थिति का आकलन अक्सर त्रुटिपूर्ण होता है, सम्पूर्ण फलक सामने आता ही नहीं, पूर्ण दृष्टि बनती ही नहीं, खण्ड दृष्टि या दृष्टिकोण से तो अधूरापन तो आएगा ही।
अपनी किशोरावस्था में मैंने पढ़ा , साहित्य समाज का दर्पण है.. मैंने अपने अनुभवों से , साहित्य को बहुत गहरा पाया.
सत्साहित्य से आग्रह, प्रेम, लगाव, आकर्षण को मैंने परम् शांतिकारक, परोपकारी और पुण्यदायी पाया।
यह अत्यंत तीब्र है जैसे उदर की जठराग्नि।
जिस प्रकार ब्यक्ति को नियमित  सुपाच्य सुभोजन चाहिए, वैसे ही मन मष्तिष्क को हर पल, विचार भोज चाहिए। ये पूर्णतः आप पर निर्भर करता है , विचार भोज में आप क्या परोस रहे हैं , अपने कोमल तंतुओं वाले दिमाग ,और हृदय को. मटर -पनीर या तंदूरी चिकन , दही -छाछ या फ्राई मेढ़क, घी -रबड़ी या आमलेट, गंगाजल या मधुशाला की विषैली हाला.. हम इतने योग्य या काबिल नहीं, हलाहल पी कर ,कंठ में ही रोक लें, और नीलकंठ बनकर जगत में भ्रमण करने लगें. हम तो नीलकंठ के चरणो की धूलि भी नहीं बन सकते. हम रावण जैसा कैलाश उठाकर तांडव गायन भी नहीं कर सकते.. हम तो कलियुगी संसारी जीव,यत्र-तत्र भटक रहे हैं, हम जैसों के लिए सत्साहित्य-- संजीवनी है. --शुक्राचार्य द्वारा अन्वेषित मृत्युंजयी मंत्र है . --बुधकौशिक का रामरक्षास्त्रोत है. --तुलसी का बजरंग बाण है. -- सूर की सारावली है. -- मीरा के पद है. सत्साहित्य नेत्र हीन के -प्रज्ञा चक्षु हैं , मूक-वधिर का -अंतर्नाद है, पंगु की- वैशाखी है, किसान -मजदूर का- मनोविनोद है, शोषित-पीड़ित का -आर्तनाद है. अबला की -शक्ति है . शक्तिवान की- विलियम शेक्सपिअर वाली "दया" है. अधिक क्या - सत्साहित्य में रूचि हो जाना, सत्साहित्य को पढ़ने की प्रवृत्ति हो जाना भी , माँ शारदा, परमगुरु की असीम अनुकम्पा है।
स्वास्थ्य शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कल्याण की स्थिति है। स्वास्थ्य का महत्व सबसे पहले है और बाकी सब कुछ इसके बाद में आता है। अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखना कई कारकों पर निर्भर करता है जैसे हम कैसी हवा में सांस लेते हैं, कैसा पानी पीते हैं, कैसा भोजन खाते हैं, किस तरह के लोगों से हम मिलते हैं और हम कैसा व्यायाम हम करते हैं।

काम पर पकड़ बनाने के लिए अच्छे सामाजिक और संज्ञानात्मक स्वास्थ्य का आनंद लेना चाहिए।
आज एक व्यक्ति को तब स्वस्थ माना जाता है जब वह अच्छा शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और संज्ञानात्मक स्वास्थ्य का आनंद ले रहा है।
यह भी जरुरी है कि जो लोग सकारात्मकता की सोच से भरे हुए हैं आप उनके साथ रहें और अपने आपको परेशानी में डालने की बजाए बेहतर करने के लिए प्रोत्साहित करें। सामाजिक रूप से सक्रिय होने और लोगों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने के अलावा अपने भीतर भी झांकना जरूरी है। कुछ समय अपने साथ बिताएं ताकि आप अपनी आवश्यकताओं को बेहतर समझ सकें और सही दिशा में अपना जीवन जी सकें। अपने समग्र स्वास्थ्य को बरकरार रखने में यह एक महत्वपूर्ण कदम है।
स्वास्थ्य एक धारणा है जिसका स्वरूप समाज, समय, संदर्भ, स्थिति, साधन, उपयोग के साथ यदि बदलता नहीं भी है तो रूपांतरित तो होता ही रहता है। 
स्वास्थ्य एक सापेक्ष शब्द है। यह एक व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और सामाजिक बेहतरी को संदर्भित करता है। एक व्यक्ति को अच्छे स्वास्थ्य का आनंद लेते हुए तब कहा जाता है जब वह किसी भी शारीरिक बीमारियों, मानसिक तनाव से रहित होता है और अच्छे पारस्परिक संबंधों का मज़ा उठाता है। नितांत ब्यक्तिगत स्तर पर यह अलग दिखेगा। समूह स्तर पर अलग होगा।
पिछले कई दशकों में स्वास्थ्य की परिभाषा काफी विकसित हुई है। हालांकि इससे पहले इसे केवल एक व्यक्ति की भौतिक भलाई से जोड़ा जाता था पर अब यह उस स्थिति को संदर्भित करता है जब कोई व्यक्ति अच्छे मानसिक स्वास्थ्य का आनंद ले रहा है, आध्यात्मिक रूप से जागृत है और एक अच्छा सामाजिक जीवन जी रहा है।
किसी न किसी धड़े के साथ, पक्ष के साथ, विवाद के साथ झुक कर, मिल कर ,दिखते, दिखाते तो चलना ही पड़ेगा। हो सकता है इस प्रकार की पूरी एकाधिक यात्राएँ ही ब्यर्थ हो जाये, या कर दी जाये, या करवा दी जाये, या ऐसा घोषित या प्रचारित करवाया जाये। तब भी पूर्णतः तटस्थ हो कर, निरपेक्ष हो कर न तो रहा जा सकता है , न यह श्रेयस्कर है।

सिस्टम के भीतर जो अपमानित हो कर रह सकते हैं, वे ही  रहते थे. जाहिर है सिस्टम के भीतर स्वाभिमान से जीने वालों के लिए कोई जगह तो है ही नहीं, हां जो चमचागिरी में यकीन रखते हैं वही सिस्टम में  बने रह पाएंगे और ओहदे भी पायेंगे.’
नई पीढ़ी नये उपकरणों ,तकनीक, उत्साह, प्रशिक्षण, से लैस है । सम्भवतः अपनी पहले वाली पीढ़ियों से अधिक सुरक्षित। उन्हें जीवन के रोटी कपड़ा मकान के मूल प्रश्न अब शायद उतना चिंतित नहीं करते। इन परिस्थितियों मे यह पीढ़ी कुछ अधिक ही आतुर, ब्याकुल, उत्तेजित, बेचैन है और अधिकतम प्रयोग करने पर तुली है, और तो और अपने से बड़ों का शिक्षक, प्रशिक्षक, पथप्रदर्शक बनने पर ढीठ हो अड़ सी जाती है, न हो तो अपने से बड़ों को अपराध का शिकार या उन्हें नये अपराध के रास्तों पर प्रशस्त करता फिरता है।

सफलता कितनी ही बड़ी क्यों न हो, यात्रा कितनी भी अद्भुत और लम्बी, उपलब्धियों से सजी सँवरी क्यों न हो, लोग उससे उकता ही जाते है, लोगों का मन भर ही जाता है।लोग भूल जाना ही चाहते है। नये की प्रतीक्षा होने लगती है।
नयापन उत्तेजक होता है। पुराना हुआ नहीं की नीरस होने लगता है।
कभी भी कुछ भी सर्वकालिक नहीं होता।
नये की खोज निरन्तर चालू है।
 पुराने के जाने की प्रतीक्षा है। 
निर्णय केवल दो ही होंगे। हाँ या ना।
निर्णय सही और वही होने पर भी निर्णय के कारण अनन्त हो सकते है। हर ब्यक्ति कारणों से असहमत हो सकता है, किसी न किसी कारण।यदि वह बुद्धिजीवी है तो उसकी असहमति की सम्भावना अनन्त गुना बढ़ जाएगी। याद रहे , यह असहमति कारणों के आधार पर ही होगी, अंतिम निर्णय के आधार पर नहीं। उसका भी अंतिम निर्णय तुम्हारा वाला ही हो सकता है । पर अपनी असहमति दिखाने के लिए वह तुम्हे अंतिम निर्णय विंदु तक जाने ही नहीं देगा, न ही खुद जाएगा। वह बस असहमतियों के कारणों से खिन्न हो असहमतियों के कारण, निर्णय के कारण तक ही तुमको उलझा कर रखेगा। निर्णय की बात ही नहीं करने देगा।