असल में जो लोग सुप्रीम कोर्ट में अपने व्यापारिक या कहें प्रोफेशनल हित रखते है उन्हें इस मुद्दे पर चुप ही रहना चाहिए. क्योंकि जिन विधिवेत्ताओं की सुप्रीम कोर्ट में करोड़ों रुपये साल की प्रैक्टिस है, वो आज इस मुद्दे पर बोलते है तो उन पर ऐसे आरोप लग सकते है कि उन्हें अपने व्यापारिक हित के चलते फिक्र हो रही है. जैसे मंदिर के पुजारी के, चर्च के पादरी, मस्जिद के इमाम आदि के बदनाम होने पर वहां बैठने वाले दुकानदार को अपने धंधे की फिक्र हो जाती है; इसलिए, वो उसके पक्ष में बोलता है.
हमें देखना यह है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खतरा किससे है? विपक्ष के महाभियोग प्रस्ताव से या सत्तापक्ष में न्यायपालिका के दखल से?
No comments:
Post a Comment