Monday, 27 August 2018

लेखकों , कवियों, बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग  वे  हैं जो लेखकों या बुद्धिजीवियों  की सहज क्रांतिकारी या यशलिप्सु प्रवृत्ति वश हर ब्यवस्था आलोचना समारोह, महोत्सव में अपना नाम चमकाने और लोकप्रियता हासिल करने के लिए (जैसा कि हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक प्रो. नामवर सिंह ने कहा है) शामिल हो जाते है और नाखूनों पर खून चमका कर शहीद हुआ चाहते है, या शहादत का तमगा, पदक, स्टाइपेंड, मानदेय या पुरुस्कार ले अपने आने वाली पीढ़ियों के दायित्व से मुक्त हो लेना चाहते हैं कि आगे उन्हें उनकी आने वाली पीढ़ी केवल शब्द विलासी कह कर उलाहना न दे । 
अक्सर यह होता है। 
क्रांतिकारी होने का लोभ, बनने का लोभ, जाने जाने का लोभ, मान लिये जाने के लिये उद्यम और मानव देने के लिये पैरवी।
भविष्य में किसी पद की संभावना तलाशना।
या अभी ही पलटनीया मार कहीं किसी कुर्सी से जा चिपकना। 
लगातार खोज, जोगाड़, जुगत, सेटिंग जारी रहती है।

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